बरेली, 7 जुलाई। राजस्थान में उदयपुर मर्डर के बाद सुन्नी बरेलवी मसलक ने फतवा जारी किया है। आला हजरत इमाम अहमद रजा खां फाजिले बरेलवी के फतवे का हवाला देते हुए मुफ्ती सलीम नूरी ने कहा कि इस्लाम में सिर धर से जुदा करना जुर्म है। कत्ल की धमकी देना इस्लाम में नाजायज है।दरगाह से उर्दू पत्रिका जुलाई 2022 के अंक में फतवे के बारे में पूरी जानकारी दी गई है।
दरगाह आला हजरत के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया दरगाह के मदरसा मंजरे इस्लाम के वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी ने माहनामा आला हजरत दरगाह आला हजरत बरेली नामी मासिक उर्दू पत्रिका के जुलाई 2022 के अंक में बुधवार को लेख प्रकाशित किया है। मुफ्ती सलीम नूरी ने कहा कि जनता में से जो शख्स इस्लामिक देश अथवा गैर इस्लामिक देश में कानून अपने हाथ में लेकर किसी को कत्ल करे वो शरीयत की रौशनी में मुजरिम और सजा का हकदार है। कानून को हाथ में लेने वाला गुनहगार है।
उन्होंने अपने धार्मिक विचारों से पूरी दुनिया खास कर हिन्दुस्तान में अमन-चैन और शान्ति की स्थापना में बहुत अहम किरदार अदा किया है। उन्होंने कहा कि आज कुछ लोग बाहरी नारों और गलत विचारों से प्रभावित होकर यह समझ बैठे हैं कि हमारे पैगंबर की शान में गुस्ताखी करने वाले को मारना, उसका सर तन से जुदा करना या उसकी हत्या करना यह एक इस्लामिक,धार्मिक और सवाब का कार्य है। ऐसा करने पर उन्हें जन्नत मिलेगी।
जबकि आला हजरत के फतवे के हिसाब से किसी मुजरिम का भी कत्ल करना और कानून हाथ में लेकर किसी आम नागरिक द्वारा किसी की हत्या करना खुद जुर्म है। ऐसा व्यक्ति इस्लाम धर्म की रौशनी में मुजरिम और गुनहगार है जिसे न्याय पालिका सजा देगी। आला हजरत ने यह भी स्पष्ट किया कि हमारे पैगंबर की शान में गुस्ताखी की सजा उन देशों में कि जहां इस्लामिक कानून हैं, वहां मौत की सजा है। जैसे हमारे हिन्दुस्तान में बहुत से जुर्म में मौत की सजा का प्रावधान है, परंतु यह सजा कोई आम आदमी या नागरिक नहीं दे सकता बल्कि अदालतें देंगी।
मुफ्ती सलीम नूरी ने बताया कि आला हजरत ने फतवे में यह भी बताया कि हमारा काम और जिम्मेदारी लोकतान्त्रिक देशों में केवल इतनी है कि हम मुजरिम के जुर्म से घृणा करें। उसके साथ रहने से आम लोगों को बचाये। कुख्यात मुजरिम के जुर्म से लोग दूर रहे। न्यायपालिका और न्याय प्रणाली द्वारा उसे सजा दिलाने का प्रयास करें।
आला हजरत का यह स्पष्ट फतवा उनकी पुस्तक हुसामुल हरामैन के पृष्ठ संख्या 137 पर अरबी भाषा में है। मुफ्ती सलीम नूरी ने बताया कि आला हजरत का फतवा मदरसा मंजर-ए-इस्लाम दरगाह आला हजरत बरेली ने उर्दू, हिन्दी, नेपाली और अन्य भाषाओं में प्रकाशित किया है।
- 1924 में सऊदी अरब में दिया था फतवा
दरगाह मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि 1924 और 25 में दो बार हज के दौरान आला हजरत से सऊदी अरब में एक शख्स ने इस मसले पर सवाल किया था। पूछा था कि पैगंबर-ए-इस्लाम की शान में गुस्ताखी करने वाले के लिए कोई कत्ल करने का ऐलान करता है तो शरीयत का हुक्म क्या है। इस पर फतवा दिया गया था।