राजनीति का वह अनोखा किस्सा – दाएं-बाएं बैठे 2-2 सीएम और पेशाब रोक कुर्सी पर जमे थे केशरीनाथ त्रिपाठी
लखनऊ, 8 जनवरी। यूपी की राजनीति का दिग्गज चेहरा और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता केशरी नाथ त्रिपाठी का रविवार की सुबह यहां उनके आवास पर लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वैसे तो 88 वर्षीय वयोवृद्ध नेता के साथ कई यादें जुड़ी हैं। लेकिन यूपी विधानसभा अध्यक्ष पर रहते उनसे जुड़ा एक अनोखा वायका बरबस ही याद आता है। यह घटना आज से 25 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा में घटी थी, जब केशरी नाथ त्रिपाठी को सदन में पेशाब रोककर बैठे रहना पड़ा था और उनके दोनों तरफ दो मुख्यमंत्री बैठे हुए थे।
दरअसल, वर्ष 1998 में भाजपा के उत्तर प्रदेश की सत्ता से बेदखल होने के बाद दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी आमरण अनशन पर बैठे थे। राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर रातों रात जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। जगदंबिका पाल लोकतांत्रिक कांग्रेस के सदस्य थे।
आनन-फानन भाजपा के संस्थापक सदस्य अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह पर कल्याण सिंह की अगुआई में भाजपा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कम्पोजिट फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने का न केवल आदेश दिया था बल्कि इसके लिए कुछ नियम भी तय कर दिए थे। आदेश था कि उस दिन विधानसभा की कार्यवाही एक बार शुरू होने के बाद फ्लोर टेस्ट होने के बाद ही स्थगित की जाएगी। साथ ही आदेश था कि स्पीकर केशरी नाथ त्रिपाठी विधानसभा की पूरी कार्यवाही के दौरान अपनी सीट से उठ नहीं सकते।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए त्रिपाठी ने काफी कम पानी पिया था
केशरी नाथ त्रिपाठी किसी बीमारी से ग्रसित थे। इस वजह से उन्हें बार-बार पेशाब करने के लिए जाना होता था। सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि फ्लोर टेस्ट के दौरान बतौर स्पीकर केशरी नाथ त्रिपाठी अपनी चेयर से नहीं उठेंगे। उस दिन यूपी विधानसभा की कार्यवाही अंत होने के बाद ही स्पीकर अपनी चेयर से उठ सकते थे। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का पालन करने के लिए त्रिपाठी ने एक दिन पहले से ही काफी कम पानी पिया, ताकि उन्हें बार-बार पेशाब के लिए नहीं जाना पड़े।
विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने पर इस बात पर बहस शुरू हो गई कि निर्धारित सत्तापक्ष और विपक्ष की सीटों पर किस पक्ष के विधायक बैठेंगे। इस हल यह निकला कि विधानसभा स्पीकर के दाईं और बाईं तरफ एक-एक कुर्सी लगाई जाए और उसपर कल्याण सिंह और जगदंबिका पाल को बैठाकर फ्लोर टेस्ट की प्रक्रिया पूरी की जाए।
कल्याण सिंह और जगदंबिका पाल स्पीकर के दाएं-बाएं बैठे
यही नहीं, इस बात पर भी दोनों पक्षों में बहस शुरू हो गई कि दाएं कौन बैठेगा और बाएं कौन बैठेगा। आखिरकार तय हुआ कि स्पीकर के दाहिने साइड में कल्याण सिंह बैठे और बाएं साइड में जगदंबिका पाल। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह पहला मौका था, जब किसी विधानसभा में एक ही राज्य के दो मुख्यमंत्री थे और दोनों स्पीकर के दाएं-बाएं बैठे।
कम्पोजिट फ्लोर टेस्ट में जीते कल्याण सिंह
कम्पोजिट फ्लोर टेस्ट में कल्याण सिंह की जीत हुई और जगदंबिका पाल की हार हुई। कल्याण सिंह को 225 मत हासिल हुए थे और जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले थे। इस मामले में तत्कालीन स्पीकर केशरी नाथ त्रिपाठी ने 12 सदस्यों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य ठहरा दिया था। उस वक्त उनकी काफी आलोचना हुई थी। जब 12 सदस्यों ने कल्याण सिंह के समर्थन में वोट किया और उनके वोटों को अंत में घटाया गया, तब भी कल्याण सिंह के पास सदन में पूर्ण बहुमत था।