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‘नेशनल बायोबैंक’ से अब हर भारतीय को मिलेगा व्यक्तिगत इलाज : डॉ. जितेंद्र सिंह

‘नेशनल बायोबैंक’ से अब हर भारतीय को मिलेगा व्यक्तिगत इलाज : डॉ. जितेंद्र सिंह

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नई दिल्ली, 6 जुलाई। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने रविवार को राजधानी दिल्ली स्थित CSIR-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) में अत्याधुनिक फेनोम इंडिया ‘राष्ट्रीय बायोबैंक’ का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि यह पहल भविष्य में हर भारतीय के लिए उनकी आनुवंशिक संरचना, जीवनशैली और पर्यावरण के मुताबिक व्यक्तिगत इलाज को संभव बनाएगी।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा, ‘व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल अब सिर्फ एक सिद्धांत नहीं, बल्कि भारतीय नवाचारों की बदौलत एक सच्चाई बन रही है।’ यह बायोबैंक भारत में पहली बार एक ऐसा लॉन्गिट्यूडिनल हेल्थ डाटाबेस विकसित करेगा, जिसमें देशभर के 10,000 लोगों से जीनोमिक, क्लिनिकल और लाइफस्टाइल डाटा इकट्ठा किया जाएगा। यह प्रणाली यूके के बायोबैंक मॉडल से प्रेरित है, लेकिन इसे भारतीय भूगोल, सामाजिक-आर्थिक विविधताओं को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से अनुकूलित किया गया है।

बायोबैंक कई जटिल व विविध स्वास्थ्य समस्याओं को समझने में मदद करेगा

केंद्रीय मंत्री ने भारतीयों में पाए जाने वाले सेंट्रल ओबेसिटी (कमर के आसपास चर्बी) के मुद्दे को भी उठाया, जो कई बार दुबले दिखने वाले लोगों में भी होता है। उन्होंने कहा, ‘हमारी स्वास्थ्य समस्याएं जटिल और विविध हैं। ऐसे में यह बायोबैंक इन जटिलताओं को समझने में मदद करेगा।’

बायोबैंक के जरिए शोधकर्ता अब डायबिटीज, कैंसर, हृदय रोग और दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों जैसी जटिल बीमारियों का जल्द निदान और बेहतर इलाज विकसित कर सकेंगे। साथ ही, यह डेटा भविष्य में AI आधारित डायग्नोस्टिक्स और जीन गाइडेड थिरेपी को भी सशक्त बनाएगा।

भारत के तेजी से विकसित हो रहे वैज्ञानिक परिदृश्य की सराहना की

डॉ. सिंह ने भारत के तेजी से विकसित हो रहे वैज्ञानिक परिदृश्य की सराहना करते हुए कहा कि अब देश क्वांटम टेक्नोलॉजी, CRISPR-जीन संपादन तकनीक और एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) के खिलाफ लड़ाई में आगे है। उन्होंने यह भी कहा कि बायोबैंक जैसे प्रयासों से अनुसंधान अब केवल लैब तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि समाज और बाजार में भी उपयोगी साबित होगा।

उन्होंने अनुसंधान संस्थानों, जैव प्रौद्योगिकी विभाग और उद्योग जगत के बीच गहरी साझेदारी खासकर AMR और नई दवाओं के विकास के क्षेत्र में जरूरी बताया। वहीं CSIR की महानिदेशक और DSIR की सचिव डॉ. एन. कलैसेल्वी ने इस बायोबैंक की शुरुआत को स्वास्थ्य डेटा में आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत का एक साहसिक कदम बताया।

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