कर्नाटक में भाजपा सरकार का फैसला – 300 वर्षों से चल रही ऐतिहासिक ‘सलाम आरती’ की परंपरा खत्म
बेंगलुरु, 11 दिसम्बर। कर्नाटक में 300 वर्षों से चली आ रही ऐतिहासिक सलाम आरती की परंपरा को खत्म कर दिया गया है। सूबे की भाजपा सरकार ने 18वीं सदी में तत्कालीन मैसूर के शासक टीपू सुल्तान द्वारा शुरू की गई मंदिरों में ‘सलाम आरती’ को बदलने का फैसला किया है। इस सलाम आरती को ‘सलाम मंगल आरती’ या फिर ‘दीवतिगे सलाम’ जैसे नामों से भी जाना जाता है।
हिन्दूवादी संगठनों की मांग पर बोम्मई सरकार का निर्णय
प्राप्त जानकारी के अनुसार बसवराज बोम्मई सरकार ने यह फैसला हिन्दूवादी संगठनों की मांग पर किया है। दरअसल, कई संगठनों ने विचार व्यक्त किया था कि चूंकि मैसूर शासक टीपू सुल्तान इस्लाम धर्म को मानने वाले थे, इसलिए उनके द्वारा शुरू की गई सलाम आरती परंपरा को बंद कर दिया जाना चाहिए।
टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी में मैसूर के मंदिरों में शुरू की थी सलाम आरती का परंपरा
इस संबंध में मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी में मैसूर के मंदिरों में होने वाली आरती का नामकरण सलाम आरती के तौर पर किया था। कथित तौर पर ऐसा माना जाता है कि टीपू सुल्तान की इच्छा थी कि मंदिर के पुजारी उसके ‘सम्मान’ में इस आरती को करें। सबसे पहले यह प्रथा कोल्लूर के मंदिरों में शरू की गई, उसके बाद मेलकोट मंदिर में हर शाम में ‘सलाम आरती की जाने लगी।
बताया जा रहा है कि कुछ हिन्दू संगठनों इस सलाम आरती का विरोध करते हुए इसे बंद करने की मांग की, जिसके बाद कई मंदिरों ने सलाम आरती का नाम बदल दिया और इसे ‘आरती नमस्कार’ के नाम से कर रहे थे।
इस विवाद में कर्नाटक धर्मिका परिषद के सदस्य कशेकोडि सूर्यनारायण भट ने कहा, ‘हिन्दुओं की मांग एकदम सही है, सलाम हम हिन्दुओं का नहीं बल्कि टीपू सुल्तान का दिया शब्द है और चूंकि वो मुस्लिम शासक थे, इसलिए हमें इस तरह की प्रथा को नहीं निभाना चाहिए।’
मंत्री शशिकला जोले ने स्पष्ट की सरकार की स्थिति
आरती का नाम बदलने पर हो रही इस सियासत में सूबे की मंत्री शशिकला जोले ने सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए शनिवार को कहा कि सरकार ने सलाम आरती जैसे रिवाज को इसलिए बदलने का फैसला किया कि यह हिन्दुओं के मंदिर से संबंधित था और इसलिए हिन्दुओं को पूरा अधिकार है कि वो अपनी पूजा-पाठ की पद्धति का स्वयं निर्धारण करें।
सिर्फ ‘सलाम आरती‘ का नाम बदलने का फैसला
शशिकला जोले ने कहा कि इसे राजनीति के चश्मे से नहीं बल्कि धर्म के नजरिये से देखे जाने की आवश्यकता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सरकार इन रीति-रिवाजों को बंद करने के पक्ष में नहीं है, सरकार ने केवल इनके नाम बदलने की बात कही है, जिसका हिन्दू पक्ष द्वारा स्वागत किया गया है।