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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला – विवाह जब सिर्फ कागज पर रह जाए तो उसे तोड़ देना बेहतर

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला – विवाह जब सिर्फ कागज पर रह जाए तो उसे तोड़ देना बेहतर

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नई दिल्ली, 16 दिसम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने शादी के 24 वर्ष पुराने एक विवाद में सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तलाक को मंजूरी दे दी है। अपने इस फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया और कहा कि अदालत को ऐसे विवाह को नहीं बचाए रखना चाहिए, जो सिर्फ कागज पर बचे रहते हैं।

सर्वोच्च अदालत ने माना कि वैवाहिक जीवन के प्रति दंपति का दृष्टिकोण मौलिक रूप से अलग था और एक-दूसरे को समझने से लगातार इनकार किया जाना आपसी क्रूरता के समान था, जिसे ठीक नहीं किया जा सकता। इस विवाद में पत्नी व पति दोनों, पिछले 24 वर्षों से अलग-अलग रह रहे थे।

लंबे समय तक अलग रहना क्रूरता

वेबसाइट लाइवलॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि ‘बिना साथ आने की किसी उम्मीद के लंबे समय से अलग रहना, दोनों पक्षों के लिए क्रूरता के बराबर है। जस्टिस मनमोहन और जस्टिस जॉयमाला बागजी की बेंच ने पति की याचिका को स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट से पास तलाक के फैसले को बहाल कर दिया। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया था, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

विवाह को कागज पर बचाने से फायदा नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘इस अदालत का यह भी नजरिया है कि वैवाहिक मुकदमा को लंबे समय तक लंबित रखने से विवाह सिर्फ कागजों में ही बचा रहता है। यह पार्टियों और समाज के हित में है कि यदि मुकदमे बहुत लंबे समय से लंबित हैं, तो पक्षों के बीच संबंध समाप्त कर दिए जाएं। नतीजतन इस अदालत की राय है कि पार्टियों को राहत दिए बिना वैवाहिक मुकदमे को अदालत में लंबित रखने से कोई लाभ नहीं होगा।’

पति-पत्नी के रिश्ते को लेकर गंभीर टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘इस केस में पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन के प्रति दृष्टिकोण को लेकर विचार बहुत मजबूत हैं और लंबे समय से दोनों तालमेल बैठाने से इनकार कर रहे हैं। इसकी वजह से इनका बर्ताव एक-दूसरे के प्रति क्रूरता की तरह है। इस अदालत का मानना है कि दो व्यक्तियों से जुड़े वैवाहिक मामले में पति-पत्नियों के तौर-तरीकों में कौन सही है और कौन गलत, यह तय करना समाज या कोर्ट का काम नहीं है। उनके पक्के विचार और एक-दूसरे को समझने से इनकार करना ही यह है, जो एक-दूसरे के प्रति क्रूरता हो जाता है।’

आर्टिकल 142 का इस्तेमाल कर विवाह भंग

जस्टिस मनमोहन की अगुवाई वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा कि हाई कोर्ट ने जोड़े की गलती तय करने में गलती की। बेंच ने कहा कि जब जोड़ा लगभग 24 वर्षों से अलग रह रहा था और उसकी कोई संतान भी नहीं है, तो उसकी गलती खोजना बेमानी है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए विवाह को खत्म करने का आदेश दिया।

तलाक से जुड़ा है पूरा मामला

इस मामले में याचिकाकर्ता पति और उसकी पत्नी की शादी वर्ष 2000 में हुई थी। नवम्बर, 2001 यानी शादी के लगभग एक साल बाद से ही दोनों अलग-अलग रहने लगे। इस शादी से दोनों के कोई बच्चे भी नहीं हैं। पति ने 2003 में ही तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी दी, लेकिन तब इसे प्रीमैच्योर बताकर खारिज कर दिया गया। 2007 में पति ने ट्रायल कोर्ट में एक और अर्जी दी और इस बार पत्नी ने परित्याग कर दिया है, इस आधार पर पति के पक्ष में फैसला सुना दिया। लेकिन, 2011 में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने यह कहकर फैसला पलट दिया कि पत्नी ने वाजिब कारणों से पति का घर छोड़ा था और पति अपनी गलतियों का फायदा उठाना चाहता है। इसी फैसले के खिलाफ पति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी।

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