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बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की यूपी सरकार को फटकार, प्रयागराज में 5 पीड़ितों को 10-10 लाख हर्जाना देने का निर्देश

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की यूपी सरकार को फटकार, प्रयागराज में 5 पीड़ितों को 10-10 लाख हर्जाना देने का निर्देश

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नई दिल्ली, 1 अप्रैल। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सहित देशभर में बुलडोजर एक्शन को लेकर सख्त रुख अख्तियार कर रखा है। इस क्रम में शीर्ष अदालत में प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन महिला याचिकाकर्ताओं के घरों को 2021 में बुलडोजर से ध्वस्त किए जाने के मामले की मंगलवार को सुनवाई करते हुए यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि घर गिराने की प्रक्रिया न सिर्फ असंवैधानिक थी वरन यह मनमानी प्रक्रिया नागरिक अधिकारों का असंवेदनशील तरीके से हनन भी है।

ऐसा एक्शन हमारी अंतरात्मा को झकझोरता है

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, ‘यह हमारी अंतरात्मा को झकझोरता है और राइट टू शेल्टर नाम की भी कोई चीज होती है। नोटिस और अन्य समुचित प्रक्रिया नाम की भी कोई चीज होती है, जिसका पालन नहीं हुआ।’ सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को आदेश दिया है कि पांचों पीड़ितों को 10-10 लाख रुपये का हर्जाना दिया जाए।

इस तरह से तोड़फोड़ करना असंवेदनशीलता दर्शाता है

सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि जिस तरह से तोड़फोड़ की गई, उस अमानवीय और गैरकानूनी काररवाई की वजह से मुआवजा लगाया जा रहा है। तोड़फोड़ की काररवाई पूरी तरह से अवैध थी और आश्रय के अधिकार का उल्लंघन है। इस तरह से तोड़फोड़ करना प्रयागराज विकास प्राधिकरण की असंवेदनशीलता दर्शाता है।

इसी मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस उज्जल भुइयां ने यूपी के अंबेडकर नगर में गत 24 मार्च को हुई घटना का जिक्र करते हुए कहा कि अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान एक तरफ झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा था तो दूसरी तरफ आठ वर्ष की एक बच्ची अपनी किताबें लेकर भाग रही थी। इस तस्वीर ने सबको हैरान कर दिया। ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, जहां अवैध रूप से तोड़फोड़ की जा रही है और इसमें शामिल लोगों के पास निर्माण कार्य करने तक की क्षमता नहीं है।

नोटिस के 24 घंटे बाद चला बुलडोजर

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनको एक्शन से पहले कोई नोटिस नहीं मिली। यहां तक कि नोटिस भेजने के 24 घंटे के भीतर ही बुलडोजर चला दिया गया। याचिकाकर्ताओं के मुताबिक वर्ष 2021 में पहले एक मार्च को उन्हें नोटिस जारी की गई थी, उन्हें छह मार्च को नोटिस मिली। फिर अगले ही दिन सात मार्च को मकानों पर बुलडोजर एक्शन लिया गया।

अधिवक्ता जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य लोगों की याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की, जिनके मकान ध्वस्त कर दिए गए थे। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि प्रशासन और शासन को ये लगा कि ये संपत्ति गैंगस्टर और राजनीतिक पार्टी के नेता अतीक अहमद की है। इन सभी लोगों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में फरियाद की थी। लेकिन हाईकोर्ट ने घर गिराए जाने की काररवाई को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

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