
सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म की कोशिश के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी पर जताई नाराजगी, फैसले पर लगाई रोक
नई दिल्ली, 26 मार्च। सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से दिए गए आदेश पर नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को असंवेदनशील और अमानवीय करार देते हुए उसपर रोक भी लगा दी।
‘फैसला लिखने वालों में संवेदनशीलता नहीं है’
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इससे पहले कहा था ‘नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना रेप नहीं।’ अब इस मामले पर जस्टिस बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने बुधवार को सुनवाई करते हुए कहा, ‘हमें ये देखकर दुख हो रहा है कि फैसला लिखने वालों में संवेदनशीलता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की केंद्र को नोटिस
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिन मंगलवार को हाई कोर्ट के फैसले पर स्वतः संज्ञान लिया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से प्रतिक्रिया मांगी है। कोर्ट ने उन्हें इसके लिए नोटिस जारी की है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के अहम तथ्य
- सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कुछ फैसले ऐसे होते हैं कि उन पर रोक लगाना जरूरी हो जाता है।
- इस फैसले के पैराग्राफ 21, 24 और 26 में जिस तरह की बातें लिखी हैं, उनसे लोगों में बहुत गलत मैसेज गया है।
- हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी यह देखना चाहिए कि इस जज को संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने न दिया जाए।
- जजों ने कहा कि यह फैसला तुरंत नहीं लिया गया, बल्कि सुरक्षित रखने के चार माह बाद सुनाया गया। यानी पूरे विचार के बाद फैसला दिया गया है।
- फैसले में कहीं गई कई बातें कानून की दृष्टि से गलत और अमानवीय लगती हैं। ऐसे में हम इस फैसले पर रोक लगा रहे हैं और सभी पक्षों को नोटिस जारी कर रहे हैं।
11 वर्ष की लड़की से जुड़ा है मामला
गौरतलब है कि गत 17 मार्च को आए इस फैसले में हाई कोर्ट ने कहा था कि पीड़िता को खींच कर पुलिया के नीचे ले जाना, उसके ब्रेस्ट को पकड़ना और पायजामे की डोरी को तोड़ना रेप की कोशिश नहीं कहलाएगा। 11 वर्ष की लड़की के साथ हुई इस घटना के बारे में हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा का निष्कर्ष था कि यह महिला की गरिमा पर आघात का मामला है। इसे रेप या रेप की कोशिश नहीं कह सकते।