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श्री काशी विश्वनाथ मंदिर :  187 वर्षों में पहली बार मंदिर के गर्भगृह में सोने के पत्रों की मढ़ाई हुई

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर : 187 वर्षों में पहली बार मंदिर के गर्भगृह में सोने के पत्रों की मढ़ाई हुई

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वाराणसी, 1 मार्च। धर्म नगरी काशी में महाशिवरात्रि पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की दीवारें स्वर्ण मंडन ने दमक उठी हैं। मंलगवार को श्रद्धालुओं की भीड़ भगवान शिव के दर्शनों के लिए उमड़ रही है। देशभर से श्रद्धालु शिव की पूजा-अर्चना के लिए आ रहे हैं और भोलेनाथ का आशीर्वाद ले रहे हैं।

वस्तुतः 187 वर्षों में पहली बार श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में सोने के पत्रों की मढ़ाई हुई है। मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी का कहना है कि मंदिर के गर्भगृह के अंदर और बाहर की दीवारों को स्वर्ण से सजाने के लिए 10 सदस्यीय टीम दो चरणों में कार्य कर रही है, जो अंतिम चरण है।

मंदिर को सोने से सजाने वाली संस्था के मुकुंद लाल का बताया कि पहले चरण में प्लास्टिक के सांचे का काम पूरा किया गया था और दूसरे फेज में तांबे के सांचे का कार्य हुआ। इसके बाद तीसरे चरण में सोना का पत्र लगने का कार्य पूरा किया गया।

मुगल काल में कई बार लूटा गया श्री काशी विश्वनाथ मंदिर

मुगल काल में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर कई बार लूटा गया था। औरंगजेब ने मंदिर को नष्ट कर दिया था और वहां मस्जिद का निर्माण कराया था, जिसका नाम ज्ञानवापी मस्जिद है। वर्तमान में बना मंदिर का निर्माण इंदौर की रानी महान रानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा एनडीए सरकार ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

रानी अहिल्या बाई होल्कर के सपने में आए थे भगवान शिव

किंवदंती है कि रानी अहिल्या बाई होल्कर के सपने में भगवान शिव प्रकट हुए थे, जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया। महाराजा रणजीत सिंह ने भी 15.5 मीटर खंभों के चार सोने के खंबों के निर्माण के लिए लगभग एक टन सोने का योगदान दिया था। बताया जाता है कि औरंगजेब से शिवलिंग बचाने और उसे छिपाने के लिए पंडितों ने कुएं में छलांग लगा दी थी।

वर्ष 1194 में मुहम्मद गोरी ने लूट बाद श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वा दिया था। इसके बाद स्थानीय लोगों ने मिलकर फिर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने फिर से मंदिर को तोड़ा। 1585 में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट द्वारा फिर से मंदिर बनवाया गया। शाहजहां ने भी 1632 में इस मंदिर को तोड़ने के लिए सेना भेजी थी, लेकिन हिन्दुओं के विरोध पर मंदिर तोड़ा नहीं जा सका, लेकिन 63 अन्य मंदिरों को तोड़ दिया गया।

औरंगजेब की सेना ने वर्ष 1669 में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त कर दिया था

इसके बाद औरंगजेब ने वर्ष 1669 में फरमान जारी कर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया। 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था, जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया था।

पौराणिक कथा

स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार काशी भगवान शिव और माता पार्वती का आदिस्थान है। इसलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को प्रथम लिंग माना गया है, जिसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी मिलता है। कहा जाता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है। यहां करीब 30 करोड़ देवी देवताओं का वास है।

स्कंद पुराण में वर्णित कथा के मुताबिक एक बार श्रीहरि भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच इस बात को लेकर बहस हो गई कि कौन अधिक शक्तिशाली है? विवाद बढ़ने के बाद भगवान शिव को मध्यस्थता करनी पड़ी और उन्होंने विशाल ज्योर्तिलिंग का रूप धारण कर लिया और भगवान विष्णु और बह्मा जी से इसके स्रोत और ऊंचाई का पता लगाने के लिए कहा। कई युगों तक दोनों ज्योर्तिलिंग के स्रोत और अंत का पता लगाने की कोशिश करते रहे। अंत में विष्णु जी हार मानकर भगवान शिव के इस रूप के सामने नतमस्तक हो गए जबकि ब्रह्मा जी ने हार स्वीकार नहीं की और झूठ बोल दिया कि उन्होंने इस स्तंभ के अंत का पता लगा लिया है। इसे सुन भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि उनकी कभी पूजा नहीं होगी।

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