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रूस का चंद्र मिशन लूना-25 विफल, तकनीकी गड़बड़ी के चलते लैंडिंग से ठीक पहले हुआ क्रैश

रूस का चंद्र मिशन लूना-25 विफल, तकनीकी गड़बड़ी के चलते लैंडिंग से ठीक पहले हुआ क्रैश

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मॉस्को, 20 अगस्त। रूस का ताजा स्पेस मिशन लूना-25 विफल हो गया और रविवार को चंद्रमा की सतह पर लैंडिग से ठीक पहले क्रैश हो गया। इससे पहले शनिवार को लूना-25 में तकनीकी गड़बड़ी की बात सामने आई थी। सोमवार से बुधवार के बीच लूना-25 को चंद्रमा की सतह पर लैंड कराया जाना था। सबसे ज्यादा संभावना अगले 24 घंटे के भीतर ही थी।

मानवरहित रोबोट लैंडर अनियंत्रित कक्षा में घूमने के बाद दुर्घटनाग्रस्त

रूसी स्पेस एजेंसी ‘रोसकॉसमॉस’ को पूरा विश्वास था कि उसका मून मिशन सफल रहेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। रोसकॉसमॉस ने यान के क्रैश होने की वजह भी बताई है। उसने बताया कि रूस का मानवरहित रोबोट लैंडर अनियंत्रित कक्षा में घूमने के बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

एजेंसी ने कहा कि लैंडिंग से पहले की तैयारी के दौरान किसी समस्या के आने के बाद शनिवार को अंतरिक्ष यान से उसका संपर्क टूट गया था। अंतरिक्ष एजेंसी के रविवार के बयान में कहा गया, ‘वह अप्रत्याशित कक्षा में चला गया और चंद्रमा की सतह से टकराव के वजह से उसका अस्तित्व समाप्त हो गया।’

चंद्रयान-3 के बाद रूस ने 10 अगस्त को लॉन्च किया था लूना-25

दुनियाभर में चांद के जिन दो मिशन की सबसे ज्यादा चर्चा थी, उसमें पिछले महीने 14 जुलाई को लॉन्च किया गया भारत का चंद्रयान-3 और दूसरा रूस का लूना-25 था। रूस ने अपना अंतरिक्ष यान 10 अगस्त को लॉन्च किया था। हालांकि, इसकी लैंडिंग भारत के चंद्रयान-3 से दो दिन पहले होनी थी। माना जा रहा था कि 21 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर लूना-25 उतर जाएगा, लेकिन उससे पहले ही रविवार को यह क्रैश हो गया। वहीं, चंद्रयान-3 की लैंडिंग 23 अगस्त की शाम को छह बजकर चार मिनट पर होनी है।

रूसी अंतरिक्ष यान में लैंडिंग से पहले शनिवार को आ गई थी तकनीकी खराबी

लूना-25 अंतरिक्ष यान में लैंडिंग से पहले शनिवार को तकनीकी खराबी आ गई थी। रोसकॉसमॉस ने बताया था कि अंतरिक्ष यान में लैंडिंग से पहले की कक्षा में प्रवेश करने की कोशिश करते वक्त खराबी आ गई और वैज्ञानिक स्थिति का आकलन कर रहे हैं। अंतरिक्ष एजेंसी ने टेलीग्राम पर एक पोस्ट में कहा था, ‘अभियान के दौरान स्वचालित स्टेशन में एक असामान्य स्थिति उत्पन्न हो गई, जिससे मानकों के साथ निर्धारित प्रक्रिया को अंजाम नहीं दिया जा सका।’

रूसी अंतरिक्ष यान ने शनिवार को अपने पहले नतीजे भी जारी किए थे। रोसकॉसमॉस ने बताया था कि वह सूचना का विश्लेषण कर रहा है लेकिन एजेंसी ने बताया कि प्रारंभिक आंकड़ों से चंद्रमा की मिट्टी में रासायनिक तत्व मिलने की जानकारी मिली है। चंद्र अन्वेषण में रूस महत्वपूर्ण वापसी कर रहा है।

47 वर्षों बाद रूस ने लॉन्च किया था मून मिशन

रूस ने 1976 के सोवियत काल के बाद पहली बार इस महीने की शुरुआत में अपना चंद्र मिशन भेजा था। लूना-25 का भार 1,750 किलोग्राम था। चंद्रयान-3 की तुलना में कम वजन के चलते लूना-25 ईंधन भंडारण क्षमता और ईंधन दक्षता से जुड़ी चिंताओं को दूर करता है, जिसकी वजह से यह सीधे चंद्रमा की ओर बढ़ सका जबकि भारत का चंद्रयान-3 ने चंद्रमा तक पहुंचने के लिए घुमावदार रास्ते को चुना।

लूना-25 का क्रैश होना रूस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। दरअसल, पिछले लंबे समय से रूस कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहा है, जहां पर उसे आर्थिक रूस से भी नुकसान झेलना पड़ रहा है। पिछले साल की शुरुआत में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ गया, जिससे अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देश उसके खिलाफ हो गए। तमाम प्रतिबंधों की वजह से रूस को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। इसके बावजूद 47 वर्षों के बाद अपना मून मिशन लूना-25 को लॉन्च किया, लेकिन सतह पर उतरने से ठीक पहले वह भी क्रैश हो गया।

इसरो को चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग की पूरी उम्मीद

इस बीच लूना-25 के क्रैश होने की खबरों के बीच इसरो को पूरी उम्मीद है कि उसका चंद्रयान-3 सफल होगा। 23 अगस्त की शाम छह बजकर चार मिनट पर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करवाई जाएगी। अब तक केवल पूर्ववर्ती सोवियत संघ, अमेरिका और चीन ने चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में कामयाबी हासिल की है जबकि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अब तक कोई देश नहीं पहुंच सका है।

इसरो ने चंद्रयान-2 की विफलता के बाद इस बार चंद्रयान में इंजन समेत तमाम तरह के बदलाव किए हैं, जिससे पिछले मिशन की तरह इसका अंजाम नहीं हो। चंद्रयान-3 लॉन्चिंग से अब तक पूरी तरह से सफल साबित रहा है। फिर चाहे पृथ्वी की कक्षा के चक्कर लगाना हो या फिर डिबूस्टिंग हो।

महीनेभर से ज्यादा समय तक सबकुछ सही रहने से भी इसरो वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लैंडिंग के दौरान भी इसमें कोई दिक्कत नहीं आएगी। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को लेकर वैज्ञानिकों की विशेष रुचि है जिसके बारे में माना जाता है कि वहां बने गड्ढे हमेशा अंधेरे में रहते हैं और उनमें पानी होने की उम्मीद है। चट्टानों में जमी अवस्था में मौजूद पानी का इस्तेमाल भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए वायु और रॉकेट के ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

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