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मल्लिकार्जुन खरगे का सियासी हमला – भाजपा व RSS के दफ्तर में कभी वंदे मातरम् नहीं गाया गया

मल्लिकार्जुन खरगे का सियासी हमला – भाजपा व RSS के दफ्तर में कभी वंदे मातरम् नहीं गाया गया

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नई दिल्ली, 7 नवम्बर। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् के साथ कांग्रेस के गहरे जुड़ाव की बात कही है और भारतीय जनता पार्टी (BJP) व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर यह कहते हुए निशाना साधा है कि दोनों संगठनों के दफ्तर में कभी वंदे मातरम् नहीं गाया गया। खरगे ने वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक लंबी पोस्ट में ये बातें कही हैं।

वंदे मातरम् ने हमारे राष्ट्र की सामूहिक आत्मा को जागृत किया

राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने लिखा, ‘वंदे मातरम् ने हमारे राष्ट्र की सामूहिक आत्मा को जागृत किया और स्वतंत्रता का नारा बन गया। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित, वंदे मातरम् हमारी मातृभूमि, भारत माता, यानी भारत के लोगों की भावना का प्रतीक है और भारत की एकता और विविधता का प्रतीक है।

वंदे मातरम् का गौरवशाली ध्वजवाहक रही है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

खरगे ने कहा, ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, वंदे मातरम् का गौरवशाली ध्वजवाहक रही है। 1896 में कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष रहमतुल्लाह सयानी के नेतृत्व में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार सार्वजनिक रूप से वंदे मातरम् गाया था। उस क्षण ने स्वतंत्रता संग्राम में नई जान फूंक दी।’

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मातरम् एक देशभक्ति के गीत के रूप में उभरा

अपनी पोस्ट में खरगे ने आगे लिखा कि कांग्रेस समझ गई थी कि ब्रिटिश साम्राज्य की फूट डालो और राज करो की नीति, धार्मिक, जातिगत और क्षेत्रीय पहचानों का दुरुपयोग करके, भारत की एकता को तोड़ने के लिए रची गई थी। इसके विरुद्ध, वंदे मातरम् एक देशभक्ति के गीत के रूप में उभरा, जिसने सभी भारतीयों को भारत माता की मुक्ति के लिए एकजुट किया।

वंदे मातरम् की लोकप्रियता से भयभीत होकर अंग्रेजों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया

उन्होंने कहा, ‘1905 में बंगाल विभाजन से लेकर हमारे वीर क्रांतिकारियों की अंतिम सांसों तक, वंदे मातरम् पूरे देश में गूंजता रहा। यह लाला लाजपत राय के प्रकाशन का शीर्षक था, जर्मनी में फहराए गए भीकाजी कामा के झंडे पर अंकित था और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की क्रांति गीतांजलि में भी पाया जाता है। इसकी लोकप्रियता से भयभीत होकर, अंग्रेजों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन बन गया था।’

बंटवारे के दिनों में बंगाल के हिन्दू-मुसलमानों का युद्धघोष बना

कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे लिखा, “महात्मा गांधी ने 1915 में लिखा था कि वंदे मातरम् बंटवारे के दिनों में बंगाल के हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सबसे शक्तिशाली युद्धघोष बन गया था। यह एक साम्राज्यवाद-विरोधी नारा था। बचपन में, जब मैं ‘आनंद मठ’ या इसके अमर रचयिता बंकिम के बारे में कुछ नहीं जानता था, तब भी वंदे मातरम ने मुझे जकड़ लिया था, और जब मैंने इसे पहली बार गाया, तो मैं मंत्रमुग्ध हो गया। मैंने इसे अपनी शुद्धतम राष्ट्रीय भावना से जोड़ लिया।”

खरगे ने लिखा, “पंडित नेहरू ने 1938 में लिखा कि पिछले 30 वर्षों से भी अधिक समय से यह गीत सीधे तौर पर भारतीय राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ है। ऐसे ‘जनता के गीत’ न तो किसी के मन पर थोपे जाते हैं और न ही अपनी मर्जी से। ये अपने आप ही ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं।”

विविधता में एकता का प्रतीक

उन्होंने कहा कि 1937 में, उत्तर प्रदेश विधानसभा ने वंदे मातरम् का पाठ शुरू किया, जब पुरुषोत्तम दास टंडन इसके अध्यक्ष थे। उसी वर्ष, पंडित नेहरू, मौलाना आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस, रवींद्रनाथ टैगोर और आचार्य नरेंद्र देव के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने औपचारिक रूप से वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी, जिससे भारत की विविधता में एकता के प्रतीक के रूप में इसकी स्थिति की पुष्टि हुई।

आरएसएस ने अपनी स्थापना काल से ही वंदे मातरम् से परहेज किया है

खरगे ने अपनी पोस्ट के अंत में भाजपा व आरएसएस पर हमला करते हुए लिखा, “यह बेहद विडंबनापूर्ण है कि जो लोग आज राष्ट्रवाद के स्वयंभू संरक्षक होने का दावा करते हैं – आरएसएस और भाजपा – उन्होंने अपनी शाखाओं या कार्यालयों में कभी वंदे मातरम् या हमारा राष्ट्रगान जन गण मन नहीं गाया। इसके बजाय, वे ‘नमस्ते सदा वत्सले’ गाते रहते हैं, जो राष्ट्र का नहीं, बल्कि उनके संगठनों का महिमामंडन करने वाला गीत है। 1925 में अपनी स्थापना के बाद से, आरएसएस ने अपनी सार्वभौमिक श्रद्धा के बावजूद, वंदे मातरम् से परहेज किया है। इसके ग्रंथों या साहित्य में एक बार भी इस गीत का उल्लेख नहीं मिलता।”

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