नीतीश सरकार की जीत – पटना हाई कोर्ट ने बिहार में जातीय जनगणना ‘सर्वे’ की तरह कराने की अनुमति दी
पटना, 1 अगस्त। बिहार के नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार की अदालत में बड़ी जीत हुई है। पटना उच्च न्यायालय ने मंगलवार को राज्य सरकार द्वारा बिहार में कराए जा रही ‘जातीय गणना’ को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने इसी क्रम में बिहार सरकार को यह गणना ‘सर्वे’ की तरह कराने की अनुमति प्रदान कर दी।
मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली पीठ का इस मामले में फैसला आने के बाद याचिकाकर्ताओं के वकील दीनू कुमार ने अदालत के बाहर पत्रकारों से कहा कि वह आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख करेंगे।
गौरतलब है कि बिहार में यह जाति सर्वेक्षण दो चरणों में किया जाना है। पहला चरण इस साल सात से 21 जनवरी में आयोजित किया गया था, जिसके तहत घरेलू गिनती की गई थी। सर्वेक्षण का दूसरा चरण 15 अप्रैल को शुरू हुआ, जिसमें लोगों की जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित डेटा इकट्ठा किया जाना था। पूरी प्रक्रिया इस साल मई तक पूरी करने की योजना थी।
पटना हाई कोर्ट ने ही पहले लगाई थी रोक
हालांकि पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार द्वारा कराई जा रही जाति आधारित गणना पर चार मई को यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि राज्य के पास जाति आधारित जनगणना करने की कोई शक्ति नहीं है और ऐसा करना संघ की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण होगा। अदालत ने साथ ही इस सर्वेक्षण अभियान के तहत अब तक एकत्र किए गए आंकडों को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था।
यह मामला सु्प्रीम कोर्ट भी पहुंचा था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार कोई कोई राहत देने से इनकार किया था। बिहार सरकार ने दलील दी थी मौजूदा कवायद जनगणना नहीं है, बल्कि केवल एक स्वैच्छिक सर्वेक्षण है। बिहार सरकार की ओर से दोनों के अंतर को समझाने की कोशिश करते हुए कहा गया था कि सर्वेक्षण एक निश्चित गुणवत्ता का होता है, जो एक निश्चित अवधि के लिए होता है।
बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी थी कि उच्च न्यायालय का फैसला त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मौजूदा कवायद जनगणना नहीं है, बल्कि केवल एक स्वैच्छिक सर्वेक्षण है। हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार से उच्च न्यायालय के समक्ष मामले पर दलीलों को रखने के लिए कहा था।