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प्रकृति हमारी मां जैसी है, प्रकृति से हमारा रिश्ता मां-बेटे जैसा, प्रकृति है तो हम हैं – भाग्येश झा

प्रकृति हमारी मां जैसी है, प्रकृति से हमारा रिश्ता मां-बेटे जैसा, प्रकृति है तो हम हैं – भाग्येश झा

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प्रकृति हमारे जीवन में वो अहमियत रखती है, जिसका हिसाब हम कभी नहीं लगा सकते। लेकिन उसे महसूस जरूर कर सकते हैं। भारत वर्ष में 29 अगस्त को पर्यावरण-वन एवं सम्पूर्ण जीव सृष्टि के संरक्षण के लिए प्रकृति वंदन का एक विशेष कार्यक्रम होने जा रहा है। उससे पहले हम सबको यह पता होना चाहिए कि पर्यावरण और प्रकृति हमारे जीवन में कितनी अहम है।

29 अगस्त को प्रस्तावित कार्यक्रम से पहले हमने पूर्व आईएएस भाग्येश झा से प्रकृति को लेकर बात की। उन्होंने प्रकृति को लेकर ऐसी बातें बताईं, जो अधिसंख्य लोगो के लिए प्रेरणादायक बन सकती हैं और लोगो को प्रकृति का महत्व भी समझा सकती हैं।

भाग्येश झा ने हमारे जीवन में प्रकृति के महत्व को बहुत ही सरल शब्दो में समझाया। उन्होंने कहा, ‘हमारी संस्कृति है, वो अति प्राचीन संस्कृति है। हमारा प्रकृति से जो संबंध है, वह मां और बेटे के संबंध जैसा है। ये जो भी पेड-पौधे हमारे आसपास हैं, वो सब प्रकृति के प्रतिनिधि हैं। हम सब को पता है कि प्रकृति से हमें पानी, अन्न, हवा, बारिश सबकुछ मिलता है। इस लिहाज से देखें तो प्रकृति से हमारा रिश्ता बहुत पुराना है और हमारा जीवन भी प्रकृतिमय है।’

प्रकृति का वंदन करने पर अपनी राय व्यक्त करते हुए भाग्येश झा ने कहा, ‘कुछ लोग मानते हैं कि प्रकृति हमारे लिए ही है तो उसका शोषण करो। उनके विपरीत ऐसे लोग भी हैं, जो कहते हैं कि प्रकृति हमारी मां जैसी है, हम प्रकृति से पोषण पाते हैं तो हम उसका वंदन करते हैं। हमारे संस्कार हैं कि हम अगर किसी से कुछ भी लेते हैं तो हमें उसका सन्मान अवश्य करना चाहिए। सम्मान का अर्थ यह भी होता है कि जिसको आप सम्मान देते हो, उसका रक्षण भी होना चाहिए।’

भाग्येश ने यह भी कहा, ‘हमारी लापरवाही की वजह से बहुत सारी तकलीफें खड़ी हो रही हैं। मसलन, गर्मी के मौसम में गर्मी बहुत ज्यादा पड रही है। बारिश के मौसम में बारिश भी जरूरत से ज्यादा या तो फिर जरूरत से कम हो रही है। यानी वैश्विक तौर पर हम प्रकृति को जो नुकसान पहुंचा रहे हैं, वो हम सबके लिए अच्छा संकेत नहीं है। पहले सुनामी व भूकंप जैसी घटनाएं अतिरिक्त तौर पर नहीं हुआ करती थीं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ऐसी घटनाएं बढ रहीं है, जो चिंता का विषय बन सकती हैं।’

उन्होंने कहा, ‘यह सब इसलिए हो रहा है कि हमने प्रकृति का सन्मान करने की बजाय उसका शोषण शुरू कर दिया है और हमारे मन से प्रकृति से प्यार की भावनाएं चली गईं। हम प्रकृति को निचोड़-निचोड़ कर खाने लगे है, जिसका हमें त्याग करना चाहिए।’

भाग्येश ने मानव जाति की प्रकृति से तुलना करते हुए कहा, ‘हमारी संस्कृति में प्रकृति और पुरुष को एक जैसा कहा गया है। हम सब प्रकृति के ही भाग हैं। पेड़-पौधे, वन्य जीव, नदी व मनुष्य सब मिला के जो बनता है, उसे हम प्रकृति कहते हैं। हम पंचतत्व से बने हैं और प्रकृति में भी यही है। प्रकृति दृश्यमान है और संस्कृति हमारे संस्कारों का वर्णन है। प्रकृति चक्षु से देखी जा सकती है, लेकिन संस्कृति हमारे आचार-विचार-संस्कार-लेखन-गायन में होती है। संस्कृति हमारा आचरण विज्ञान निश्चित करती है और प्रकृति यह सब तय करती है कि हम कैसे होंगे, क्यां खाएंगे और किस तरह रहेंगे। प्रकृति हमारा निर्माण करती है और संस्कृति हमारा विकास करती है।’

प्रकृति के बारे में अच्छा सुनने से लेकर अच्छा करने तक के संदर्भ में भाग्येश झा ने बताया, ‘ HSSF ने जो भी प्रयास किए हैं, वह हमारी प्राचीन परम्परा को जीवंत करने का प्रयत्न है। हम फिर से आश्रम की और लौटें, हमारे वृक्षों की और लौटें, और उनकी पूजा भी करें। अगर इस प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से जागृति फैलाई जाए तो उसके फायदे हमें आने वाले वर्षों मे देखने को मिल सकते हैं। भारतीय संस्कृति में ऐसे कई विचार हैं। मसलन, प्रकृति के साथ संवाद करना, प्रकृति का वंदन करना, हम गिरे हुए फल खाते हैं और जो पेड़ पर हैं, वो पक्षियों के लिए होते हैं। ये सब हम मानते भी हैं। ऐसा करने से प्राकृतिक वातावरण बदलेगा और जनसामान्य में भी सुधार देखने को मिलेगा।

भाग्येश झा से यह पूछा गया कि HSSF के इस प्रयास से आगे चलकर विश्व कल्याणकारी संस्कृति का कैसे विकास होगा? इस पर उन्होंने बडे विनम्र भाव से बताया कि यह प्रतीकात्मक कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का मकसद इवेंट से लेकल मूवमेंट तक का है। उन्होंने यह भी कहा, ‘मैं अगर प्रकृति का सन्मान करुंगा तो मेरे बच्चे भी करेंगे और यह फिर ऐसे ही चलता रहेगा। यह संदेश HSSF के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जा रहा है।’

एक मुहावरे के तौर पर उन्होंने बताया, ‘अगर आप किसी वृक्ष से प्यार करते हैं तो जवाब में वह भी आपको प्यार करेगी और प्रकृति का यही नियम है। आप प्रकृति से प्यार करोगे तो वो खिल जाएगी और अगर नहीं करोगे तो मुरझा जाएगी। हमारे उपनिषद भी कहते हैं कि ईश्वर प्रकृति में है और प्रकृति हर जगह पर है। पूरे विश्व में HSSF द्वारा जागृति का माहौल खड़ा किया गया है, वह अच्छा है और हमें आने वाले वर्षों में उसका बहुत फायदा होगा।’

भाग्येश ने अंत में बताया, ‘सरकार भी इस पर बहुत अच्छा काम कर रही है। हम सबको अपना दायित्व स्वीकार करके सरकार का सहयोग करना चाहिए और सरकार को भी लोगों का सहयोगी लेना चाहिए। समाज और सरकार दोनों को प्रकृति के जतन और उसकी रक्षा के बारे में सोचना चाहिए।’

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