सादगी की मिसाल : बेटा केंद्रीय मंत्री, माता-पिता अब भी मेहनत-मजदूरी से कर रहे जीविकोपार्जन
नमक्कल (तमिलनाडु), 18 जुलाई। बालासोर के सांसद प्रताप चंद्र सांरगी की सादगी से तो आप सभी परिचित हैं, जिन्होंने ओडिशा की झोपड़ियों से निकलकर मोदी सरकार के पिछले मंत्रिमंडल में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय और पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन राज्य मंत्री तक का सफर तय किया था। अब केंद्र की नई मंत्रिपरिषद में शामिल तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष डॉ. एल. मुरुगन के परिवार की जो तस्वीर सामने आई है, वह भी आपका दिल जीतने के लिए पर्याप्त है।
दरअसल, यह कहानी तमिलनाडु की राजधानी चेन्नै से लगभग 400 किलोमीटर नमक्कल जिले के कोनूर गांव निवासी 68 वर्षीय लोगनाथन और उम्र में नौ वर्ष छोटी उनकी पत्नी वरुदम्मल की है, जिन्हें अपने बेटे की शोहरत से कोई फर्क नहीं पड़ा और जो अपने नैसर्गिक अंदाज में सादगीभरा जीवन गुजार देना चाहते हैं। शायद यही वजह है कि यह दम्पति अब भी दूसरे के खेतों में मेहनत-मजदूरी कर जीविकोपार्जन करता है।
झोपड़ी में रहते हैं राज्य मंत्री डॉ. मुरुगन के माता-पिता
देश के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार में राज्यइ मंत्री एल. मुरुगन के माता-पिता को इस बात की खुशी तो है कि बेटा इतने ऊंचे मुकाम तक पहुंचा है, लेकिन वे आखिरी दम तक अपनी मेहनत की कमाई खाना चाहते हैं। वरुदम्मजल को अपने बेटे के मोदी कैबिनेट का हिस्साह होने पर गर्व तो है, लेकिन वह इसका श्रेय नहीं लेना चाहतीं। उन्होंहने कहा, ‘हमने उसके (करिअर) लिए कुछ नहीं किया।’
रिपोर्ट के अनुसार अरुणथथियार समुदाय से आने वाले मुरुगन के माता-पिता के पास अपनी कोई जमीन नहीं है और वे एजबेस्टस की छत वाली झोपड़ी में रहते हैं। कभी कुली का काम करते हैं तो कभी खेतों में। कुल मिलाकर रोज कमाकर खाने की इस दम्पति की दिनचर्या है। पांच वर्ष पहले छोटे बेटे की मौत हो गई थी, तब से बहू और बच्चों की जिम्मेेदारी भी वे ही संभालते हैं।
मुरुगन के पास दो मंत्रालयों का प्रभार
गौरतलब है कि इसी वर्ष विधानसभा चुनाव में डीएमके उम्मीदवार से हारे डॉ. मुरुगन ने गत सात जुलाई को केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार व फेरबदल के तहत अन्य मंत्रियों के साथ शपथ ली थी। उनके पास मत्य्न्य पालन, पशुपालन और सूचना तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय है। उन्हें् दोनों विभागों में राज्य मंत्री बनाया गया है।
दिलचस्प तो यह रहा कि मुरुगन को केंद्रीय मंत्री बनाए जाने की खबर जब पड़ोसियों से मिली तो भी लोगनाथन व वरुदम्मल निर्विकार भाव से खेतों में काम कर रहे थे। ऐसा ही नजारा पिछले वर्ष भी दिखा था, जब मार्च में तमिलनाडु बीजेपी की कमान संभालने के बाद मुरुगन माता-पिता से मिलने कोनूर आए थे। समर्थकों की भीड़ और पुलिस सुरक्षा के बावजूद लोगनाथन व वरुदम्मल ने सादगी से बेटे का स्वारगत किया था।
लोगनाथन-वरुदम्मल को रास नहीं आती बेटे की व्यस्त जीवनशैली
लोगनाथन ने बेटे के बारे में बताया, ‘पह पढ़ाई में बहुत तेज था। चेन्नै के अंबेडकर लॉ कॉलेज में उसकी पढ़ाई के लिए मुझे दोस्तोंव से रुपये उधार लेने पड़े थे। मुरुगन बार-बार हमसे कहता कि चेन्नैं आकर उसके साथ रहें।’ वरुदम्मरल बोलीं, ‘हम कभी-कभार जाते और वहां चार दिन तक उसके साथ रहते। हम उसकी व्य्स्त जीवनशैली में फिट नहीं हो पाए और कोनूर लौटना ज्यायदा सही लगा।’
मुरुगन ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद माता-पिता से फोन पर बात की थी। दोनों ने खुशी जाहिर करने के बाद उनसे पूछा कि यह पद राज्या बीजेपी प्रमुख से बड़ा है या नहीं। हद तो तब हो गई, जब कोविड काल में राशन वितरण के दौरान लोगनाथन ने लोगों के कहने के बावजूद कतार में ही लगकर अपनी बारी आने का इंतजार किया।