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उत्तर प्रदेश: विवादों से पुराना नाता रहा है बाघंबरी मठ का, जानें क्या है इसका इतिहास

उत्तर प्रदेश: विवादों से पुराना नाता रहा है बाघंबरी मठ का, जानें क्या है इसका इतिहास

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प्रयागराज, 29 सितंबर। बाघंबरी गद्दी मठ के महंत नरेन्द्र गिरि की संदेहास्पद परिस्थितियों में हुई मौत को लेकर केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अपने काम को अंजाम दे रही है, हालांकि जानकारों का मानना है कि श्री बाघंबरी गद्दी मठ अक्सर विवादों में घिरा रहा है। कभी गद्दी पर दावेदारी, अदालती कार्यवाही, जमीन जायदाद बेचने को लेकर तो कभी रहस्यमय मौतों को लेकर यह मठ पहले भी चर्चा का विषय बना है। बाघंबरी मठ के पहले महंत के बारे में लोगों के पास कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। कुछ लोग बाबा बालकेसर गिरि महाराज द्वारा मठ की स्थापना बताते हैं।

बाघंबरी गद्दी के अधीन जमीन-जायदाद का संचालन एक अर्से तक ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन उसके बाद विवादों में घिरा रहा। कभी गद्दी पर दावेदारी को लेकर तो कभी जमीन जायदाद को लेकर तो कभी रहस्यमय मौतों को लेकर। करीब 300 साल पुरानी अल्लापुर स्थित बाघंबरी मठ दशनाम संन्यासी परंपरा के गिरि नाम के संन्यासियों की गद्दी है। बताया जाता है बाबा बाल केसर गिरि महाराज के बाद अनेक संत इस गद्दी पर विराजमान हुए। वर्ष 1978 में महंत विचारानंद गिरि महाराज इस गद्दी के महंत थे। उनकी भी मौत संदिग्ध परिस्थितयों में हरिद्वार से लौटते समय ट्रेन में जहर के सेवन से हुई थी। उनसे पूर्व महंत पुरूषोत्तमानंद बाघम्बरी गद्दी पर महंत थे।

महंत विचारानंद की मृत्यु के बाद श्रीमहंत बलदेव गिरि बाघंबरी गद्दी के उत्तराधिकारी हुए। महंत विचारानंद के निधन के बाद से ही विवाद शुरू होगया था। वर्ष 2004 में अखाड़े के संतों ने महंत बलदेव गिरि पर गद्दी छोड़ने का दबाव बनाया। बलदेव गिरि फक्कड़ संत थे, संतो के दबाव देने से मठ छोड़ कर चल दिए। इसके बाद आए महंत भगवान गिरि। भगवान गिरी को गले में कैंसर का रोग हो गया और उनकी मृत्यु के बाद श्रीमहंत नरेंद्र गिरि ने वर्ष 2004 में अपना दावा पेश किया और अखाड़े का महंत बन गए।

श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी पर महंती के दावे के समय नरेंद्र गिरि के गुरु हरगोविंद पुरी के गुरु भाई मुलतानी मढ़ी के बालकिशन पुरी ने नरेंद्र पुरी को गद्दी का महंत बनाए जाने का विरोध किया। उनका कहना था कि बाघम्बरी गद्दी गिरि नामक संन्यासियों की है। ऐसे में पुरी नामा संन्यासी का महंत बनना उचित नहीं है। महंत नरेंद्र गिरि ने अपने लोगों के साथ मिलकर उनके साथ झगड़ा किया। अपमान से क्षुब्ध बालकिशन पुरी मठ छोड़कर तत्काल वहां से हट गए और राजस्थान के खिरम में धूनी रमाई।

हरगोविंद पुरी के शिष्य नरेंद्र पुरी से नरेन्द्र गिरि बन कर बाघंबरी मठ के पीठाधीश्वर और बड़े हनुमान मंदिर के महंत का कार्यभार संभाला। इसके बाद से ही बाघंबरी मठ की जमीनों को बेचने और अवैध पट्टे पर देने का सिलसिला शुरू हो गया। कई बार अयोग्य लोगों को महामंडलेश्वर बनाने को लेकर भी महंत नरेंद्र गिरी विवादों में रहे। दाती महाराज और सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर बनाए जाने पर संत समाज ही उनके खिलाफ खड़ा हो गया। उसके बाद नरेंद्र गिरि के शिष्य आशीष गिरि के रहस्यमय ढंग से कथित तौर पर आत्महत्या करने को लेकर भी विवाद छिड़ा था। पुलिस को उनके कमरे से पिस्टल बरामद हुई थी।

श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी के अधीन कितने करोड़ की संपत्ति है, इसका सही सही आंकलन नहीं बताया जा सकता लेकिन उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों में भी एक अनुमान के अनुसार कई हजार करोड़ की संपत्ति है। महंत नरेन्द्र गिरि का 20 सितंबर को संदिग्ध परिस्थितियों में निधन हो गया जिसकी केन्द्रीय जांच ब्यूरो जांच कर रही है।

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