लखनऊ, 29 अगस्त। सियासत हर पल नया सबक देती है। सपा प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी शायद नए-नए सबक सीख रहे हैं। 2017 में अपनी छवि को सुधारने के लिए उन्होंने जिन बाहुबलियों से किनारा किया था। अब सपा में बैकडोर से उनकी वापसी यही संकेत देती है कि उन्हें ‘नेताजी’ का रास्ता ही भाने लगा है।
मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यकाल के अंतिम दिनों में अखिलेश यादव अपनी छवि सुधारने को बेचैन दिखे। चाहे वह माफिया प्रवृत्ति के लोग हों या फिर भ्रष्टाचारी। ऐसे ही अनेक मुददों को लेकर उनके परिवार में टकराव हुआ था और आखिर वही हुआ जो अखिलेश चाहते थे। लेकिन इसकी कीमत सपा के कई पुराने वफादारों को पार्टी से बाहर होकर चुकानी पड़ी। उसमें खुद चाचा शिवपाल सिंह यादव से लेकर संस्थापक सदस्य अंबिका चौधरी और नारद राय जैसे नाम भी शामिल रहे।
इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में उन्होंने अतीक अहमद को पार्टी से दूर किया तो पूर्वांचल के डॉन मुख्तार अंसारी के परिवार को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। भदोही के विधायक विजय मिश्रा भी ऐसे ही बाहुबलियों में एक रहे जो सपा से बाहर हुए। इसके अलावा कई और बाहुबली भी पार्टी में या तो ठिकाने लग गए या उनका टिकट कट गया। पांच वर्ष विपक्ष की राजनीति करने के बाद अब शायद उनके विचार बदल गए हैं। अंसारी परिवार की वापसी के बाद अतीक परिवार के लिए भी सपा की खिड़की खुली नजर आने लगी है। उधर, प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव पहले ही सपा में आने की हामी भर चुके हैं और हरी झंडी के इंतजार में हैं।
वर्तमान राजनीतिक हालात में सही फैसला : सपा
अखिलेश के विरोध पर ही पार्टी से बाहर हुए अंसारी परिवार के फिर पार्टी में आने के सवाल पर सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति के अनुसार लिया गया फैसला है। हालांकि अतीक अहमद की पार्टी में वापसी के सवाल पर वे साफ कहते हैं कि फिलहाल बात अभी की हो रही है।
अंसारी परिवार ने कर दिया था पार्टी विलय
मुख्तार अंसारी ने कौमी एकता दल नाम से राजनैतिक पार्टी भी बनाई थी। 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले अंसारी परिवार ने कौमी एकता दल का विलय सपा में कर दिया था, लेकिन अखिलेश यादव के विरोध पर पूरे परिवार को बाहर होना पड़ा था। जिसके बाद उन्हें बसपा का दामन थामना पड़ा।