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नरेंद्र मोदी: कार्यकर्ता और राष्ट्रनेता

नरेंद्र मोदी: कार्यकर्ता और राष्ट्रनेता

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(विजय चौथाईवाले)

 इस लेख का शीर्षक “कार्यकर्ता और राष्ट्रनेता” है। “कार्यकर्ता से राष्ट्रनेता” नहीं। क्योंकि मेरी दृष्टि में मोदी जी भले ही राष्ट्रनेता बन चुके हों, लेकिन उनके हृदय में कार्यकर्तापन आज भी उतना ही जीवित है। एक दृष्टि से यह यात्रा कार्यकर्ता से राष्ट्रनेता तक की दिखाई देती है, लेकिन उनके मन में कार्यकर्ता की भावना आज भी जागृत है। जैसे कोई निपुण गायक ऊँचे स्वर लेता हो, पर उसका कान हमेशा तानपुरे पर लगा रहता है। वैज्ञानिक जब प्रयोग करते हैं, तो सबसे पहले यंत्रों की ‘बेसलाइन’ ठीक है या नहीं, इसकी परीक्षा करते हैं। उसी प्रकार मोदी जी राष्ट्रनेता बने हैं तो भी उनका कार्यकर्ताभाव सिर्फ जागरूक ही नहीं, बल्कि उनकी हर क्रिया में उसका प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देता है।इस कार्यकर्ताभाव के निर्माण के पीछे मोदी जी के व्यक्तित्व पर पहले रामकृष्ण मिशन और उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। उनके रामकृष्ण मिशन में ठहरने के बारे में बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। बाद में जब वे संघ के प्रचारक बने, तब उस समय के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के जीवन से प्रेरणा लेकर उन्होंने अपने व्यक्तित्व की घड़ाई की। उन्हीं संघ संस्कारों की छाप उनके द्वारा लिखित ‘ज्योतिर्पुंज’ पुस्तक में प्रकट होती है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान लिखी गई इस पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाले कुछ वरिष्ठ संघ प्रचारकों के जीवन का चित्रण किया है। इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2008 में मोहनराव भागवत की प्रमुख उपस्थिति में हुआ था। पुस्तक की प्रस्तावना में मोदी जी ने अपने संघ‑प्रवास को “संस्कार साधना” कहा है। इस पुस्तक में वे स्वयं कहीं उपस्थित नहीं हैं। (मोहनराव भागवत ने अपने भाषण में कहा था, “यह वर्णन उन्होंने किया है, लेकिन उसमें वे स्वयं नहीं हैं।” यह बात बिल्कुल सटीक थी।) कई वर्षों बाद, इसी वर्ष नागपुर में माधव नेत्रालय के शिलान्यास समारोह में, संघ‑कार्य का उल्लेख करते हुए मोदी जी ने “सेवा साधना” शब्द का उपयोग किया। (मेरा सौभाग्य रहा कि मैं इन दोनों कार्यक्रमों में उपस्थित था।) उन्होंने कहा कि संघ एक ऐसा संस्कार‑यज्ञ है जो अंतर्दृष्टि और बाह्यदृष्टि, दोनों पर काम करता है।कार्यकर्ता के निर्माण में संघ‑संस्कारों का बहुत बड़ा योगदान है। मातृभूमि के प्रति अगाध श्रद्धा, अपनी सांस्कृतिक परंपरा का गर्व, शाश्वत मूल्यों की रक्षा हेतु सतत तत्परता, सटीक और पूर्ण कार्यशैली, ऊँचे लक्ष्य पर केंद्रित रहते हुए सूक्ष्म विवरण पर ध्यान देने की अद्भुत क्षमता, सहृदयता और कार्यकर्ताओं की अनुपम देखभाल—इन सभी गुणों का स्रोत संघ संस्कारों में मिलता है।

मोदीजी के जीवन-चित्र में कार्यकर्ता और राष्ट्रनेता, दोनों के ही एक साथ दर्शन होते हैं। अंग्रेजी कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने अपनी प्रसिद्ध कविता “To the Skylark” में लिखा है:

“Type of the wise who soar, but never roam;

True to the kindred points of Heaven and Home!”

कवि की दृष्टि में स्कायलार्क पक्षी ‘स्वर्ग (अत्युच्च शिखर)’ और ‘घर’—इन दोनों के पूर्ण मिलन का प्रतीक है—वह ऊँची उड़ान भरता है, पर कभी अपनी जड़ से नहीं कटता। ठीक उसी प्रकार, मोदीजी के हृदय में कार्यकर्ता की भावना और राष्ट्रीय नेतृत्व, दोनों का अद्भुत संगम नजर आता है।मोदीजी के संघ प्रचारक काल के कई उदाहरण उनकी गुण-विशेषताओं को उजागर करते हैं। विभाग प्रचारक रहते समय जब वे किसी नए स्वयंसेवक के घर भोजन के लिए जाते थे, तब उस परिवार के प्रत्येक सदस्य का विवरण वे अपनी डायरी में नोट करते थे। इतना ही नहीं, वे उस परिवार की मुख्य महिला के मायके की जानकारी भी जानने को प्रयासरत रहते। वर्षों बाद, जब वे मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने कुछ वरिष्ठ महिला कार्यकर्ताओं को अपने घर भोजन के लिए बुलाया। एक कार्यकर्ता ने जब इसका कारण पूछा तो मोदीजी ने बताया कि प्रचारक रहते हुए मैंने आपके-आपके हर घर में कई बार भोजन किया है। उन सभी के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए ही यह कार्यक्रम है।ऐसे उदाहरण असंख्य हैं। हाल ही में उनकी सिडनी यात्रा के पहले हमें एक वृद्ध महिला का पता लगाने के लिए कहा गया, जो अपने बच्चों के साथ वहां बस गई थी। उसका नाम इतना आम गुजराती था कि बहुत कोशिशों के बाद, स्थानीय लोग उसके परिवार को ढूंढ़ पाए। दुर्भाग्यवश, कुछ समय पहले ही उस महिला का निधन हो चुका था। मोदीजी ने अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालकर उसके परिवार से मुलाकात की। कारण सिर्फ इतना था कि आपातकाल (1975-77) के दौरान, जब मोदीजी भूमिगत थे, वे वडोदरा में उसी परिवार के साथ रहे थे।

यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारी सनातन संस्कृति के संरक्षण, पुनरुत्थान और प्रसार के लिए अहिल्याबाई होळकर के बाद मोदी सरकार सबसे प्रभावी शासन रहा है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर जैसे उदाहरण तो हैं ही, लेकिन काशी-तमिल संगम, श्रीराम सर्किट, बुद्ध सर्किट जैसे अनेक परियोजनाओं के माध्यम से हमारी परंपरा को संजोने और उसके बीच के सांस्कृतिक संबंध को सुदृढ़ करने का सफल प्रयास मोदीजी ने किया है। संसद की नई इमारत में पवित्र तमिल प्रतीकों से सुसज्जित ‘सेंगोल’ भारत के न्याय, समृद्धि और प्रगति के सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक है।मोदी ने न केवल भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों का दर्शन किया, बल्कि नेपाल, बांग्लादेश, जापान, श्रीलंका, म्यांमार, मॉरिशस, ओमान, मंगोलिया, कनाडा, इंडोनेशिया और यूएई जैसे अनेक देशों में संरक्षित या स्थापित मंदिरों, गुरुद्वारों और बौद्ध विहारों का भी दर्शन किया। 2014 से 2025 की अवधि में भारत ने 642 प्राचीन वस्तुएँ वापस प्राप्त कीं, जो अवैध रूप से विदेशों तक पहुँची थीं, जबकि 1955 से 2014 तक केवल 13 वस्तुएँ ही वापस लाई जा सकी थीं।देश के भीतर ही नहीं, बल्कि क्षेत्र में आई प्राकृतिक और मानवजनित आपदाओं का सामना करते समय मोदी सरकार ने जिस तत्परता का परिचय दिया, उसकी तुलना नहीं की जा सकती। यह सब सरकार की त्वरित और योजनाबद्ध कार्यप्रणाली के कारण संभव हुआ। केवल संकट के समय ही नहीं, बल्कि हर सरकारी योजना के क्रियान्वयन में भी बारीकियों पर ध्यान देने का स्पष्ट निर्देश रहने से अनेक बड़ी योजनाएँ सुचारू रूप से पूरी की जा सकीं।जब यूक्रेन-रूस युद्ध शुरू हुआ, तब हजारों भारतीय छात्रों को यूक्रेन से निकालकर पूर्वी यूरोपीय देशों में पहुँचाया गया और वहाँ से विमानों द्वारा भारत लौटाने की व्यवस्था की गई। परंतु मोदी की नजर केवल इस स्थानांतरण तक सीमित नहीं थी। उस समय सर्दियों का मौसम था और इन देशों से उड़ानों में एक-दो दिन की देरी की संभावना थी। प्रधानमंत्री को चिंता थी कि उन छात्रों को ताजा और सात्विक भोजन कैसे मिलेगा। उस समय एक रात देर से उनका फोन मुझे आया। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की और सुझाव दिया कि उन देशों में सक्रिय सेवा इंटरनेशनल, इस्कॉन, स्वामीनारायण, गुरुद्वारा और मंदिर जैसी सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से संपर्क कर समन्वय किया जाए ताकि उन छात्रों को ताजा और सात्विक भोजन उपलब्ध हो सके। बाद में पता चला कि उस रात उन्होंने इसी विषय पर कई लोगों से देर रात तक फोन पर बात की थी।

कार्यकर्ताओं के स्वास्थ्य की चिंता मोदीजी का अत्यंत मर्मस्पर्शी विषय है। प्रचारक रहते समय उन्होंने कई कार्यकर्ताओं को गुड़खा और तंबाकू की लत छोड़ने के लिए प्रेरित किया। आज भी जब कोई कार्यकर्ता अत्यधिक वजन बढ़ाता है, तो वे उसे सार्वजनिक रूप से इस पर सीधे सुझाव देने से पीछे नहीं हटते। कोविड के दौरान मोदीजी ने असंख्य कार्यकर्ताओं को फोन कर उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली, साथ ही अस्पताल में भर्ती होने से हिचकिचा रहे कई कार्यकर्ताओं को अस्पताल में भर्ती होने का स्पष्ट आदेश दिया। उस समय मेरा परिवार कोविड पॉजिटिव हुआ और हमने अस्पताल में इलाज लिया। कुछ दिनों बाद एक फोन पर मोदीजी ने पूछा, “क्या आप सब अस्पताल से बाहर आ गए हैं?”मोदीजी आज भी हजारों कार्यकर्ताओं को उनके घरों में सुख-दुख की घड़ी में व्यक्तिगत पत्र भेजते हैं। ये पत्र केवल उपचार का माध्यम नहीं बल्कि उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का सजीव अनुभव प्रस्तुत करते हैं।

वसंतराव चिपळूणकर गुजरात के एक वरिष्ठ संघ प्रचारक थे, जो अपने आनंदित और सदैव हंसमुख स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे। 2007 में मोदीजी ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उसी दिन वसंतराव का निधन हो गया। मोदीजी ने गुजराती भाषा में वसंतराव के लिए एक भावपूर्ण लेख लिखा जिसका शीर्षक था “पानगळी शिवाय वसंत”। वसंतराव की श्रद्धांजलि सभा में उन्होंने आँसू बहाने के बजाय कहा, “वसंतराव के बारे में हँसी और हँसी के बिना बात नहीं हो सकती, उनके जाने के लिए दुःखी होने के बजाय उनके जीवन का उत्सव मनाएं।” उन्होंने वसंतराव के साथ हुए कई सुखद यादगार वार्तालाप भी साझा किए।तल्ख कार्यकर्ता से पहली बार मिलते समय उनका पहला वाक्य ऐसा होता है कि सामने वाला महसूस करता है कि वे एक-दूसरे को वर्षों से जानते हैं। स्विट्ज़रलैंड के एक उत्साही मराठी दंपती ने स्विस आल्प्स के अत्युच्च चोटियों पर योग दिवस मनाया। जब वे मोदीजी से मिले, उनका पहला वाक्य था, “योग के लिए आपने बहुत अच्छा काम किया है।”

मोदीजी की सहृदयता केवल भारतवासियों तक सीमित नहीं है, बल्कि वे विश्वबंधुत्व की अभिव्यक्ति करते हैं। उन्होंने यह माना है कि जहाँ भी दुनिया में कोई मानव संकट में हो, भारत उसकी मदद करने वाला एक मित्र है। “वैक्सीन मैत्री” इस दायित्व की एक उदाहरण है, जिसमें जरूरतमंद देशों को भारतीय टीके प्रदान किए गए। आश्चर्य की बात नहीं कि ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने भारतीय वैक्सीन के पार्सल की तुलना लक्ष्मण द्वारा हनुमान से लायी गई “संजीवनी” से की।मोदीजी जीवन के सभी स्तरों के लोगों से सहज संवाद करते हैं, क्योंकि वे हमेशा प्रामाणिक प्रतिक्रियाएँ, सुझाव और नई कल्पनाएँ प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहते हैं। प्रबंधन के सिद्धांतों में इसे “सॉफ्ट सिग्नल” कहा जाता है। शांति से सुनने की उनकी अद्भुत क्षमता के कारण वे अलग-अलग स्रोतों से अनेक विचार एकत्र कर सकते हैं। कभी-कभी विरोधाभासी सुझावों से भी वे “समृद्ध चित्र” बनाकर एक संगठित विचारशृंखला तैयार करते हैं, जिसे ध्यानपूर्वक लागू करते हैं। उन्होंने किसी भी विचार के सूक्ष्म पहलुओं पर काम करने की कला प्राप्त की है, जो गुजरात में प्रचारक रहते हुए उनकी कार्यशैली से साबित होता है।कार्यकर्ता बनने की प्रक्रिया में संघ संस्कारों का एक पहलू है और सेवा भावना दूसरा। देशसेवा की प्रतिज्ञा, जो मोदीजी ने संघ कार्य करते हुए ली, मुख्यमंत्री और बाद में प्रधानमंत्री रहते हुए अनेक रूपों में प्रकट हुई। अंततः देश की प्रगति का परिणाम देश के लोगों तक पहुंचना चाहिए। और जो समाज का वह वर्ग आज भी गरीब और वंचित है, उन्हें इस प्रगति का मुख्य भागीदार बनाना मोदीजी का मूल आग्रह है। यह अवधारणा पंडित दीनदयाल जी के अंत्योदय विचार में स्पष्ट है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बारे में जो कथन किए हैं, उन्हें सरकार की कई मुख्य नीतियों से जोड़ा गया है, जो “एकात्म मानववाद” और “अंत्योदय” के तत्त्वों पर आधारित हैं। उपाध्याय जी के “अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुँचाने” के विचार को मोदी सरकार ने अनेक कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा है, जैसे प्रधानमंत्री जनधन योजना जो आर्थिक समावेशन को बढ़ावा देती है, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जो गरीब परिवारों को ऊर्जा सहायता प्रदान करती है, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और आयुष्मान भारत योजना जैसी स्वास्थ्य योजनाएँ इनमें शामिल हैं।“स्वदेशी” और “स्वावलंबन” की भावना मोदी सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ (2020) में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इस अभियान ने देशी उत्पादों, रक्षा उत्पादन और लघु उद्योगों को मजबूती देने पर जोर दिया। साथ ही इस अभियान के अंतर्गत मेक इन इंडिया, मुद्रा योजना, स्टैंड-अप इंडिया, और पीएम विश्वकर्मा योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए, जिनमें सूक्ष्म उद्योगों, महिलाओं, दलित समाज और पारंपरिक कारीगरों को आर्थिक सहायता और प्रशिक्षण दिया गया।मोदीजी ने उपाध्याय जी की “भारतीय जीवनदृष्टि” को नीतिगत स्वरूप दिया है। नई शिक्षा नीति (2020) में भारतीय भाषाओं और प्राचीन ज्ञान पर बल दिया गया है। “विकास ही और वारसा ही” नीति के माध्यम से विकास और सांस्कृतिक संरक्षण का संतुलन बनाया जा रहा है। न्याय व्यवस्था में भी भारतीय दृष्टिकोण को शामिल किया गया है। ये नीतिगत बदलाव मोदीजी की दूरदर्शिता को दर्शाते हैं।मोदी सरकार की समग्र विकास, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की नीतियाँ सीधे “अंतिम व्यक्ति तक विकास” और “राष्ट्राधारित स्वावलंबन” की भावना से जुड़ी हैं। 2016 को दीनदयाल जी का जन्म शताब्दी वर्ष घोषित किया गया और इसे गरीब कल्याण वर्ष माना गया। उसी वर्ष कई गरीब कल्याण योजनाएं घोषित की गईं। इस अवसर पर मोदीजी ने जनसंघ-भाजपा के “विपक्ष से विकल्प तक” के सफर में दीनदयाल जी के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला और उनके द्वारा बताई गयी “सप्त जान्हवी” का उल्लेख किया।

देश का नेतृत्व करने और चुनाव जीतने के लिए मतदाताओं के बीच नेता की लोकप्रियता अत्यंत आवश्यक है। लेकिन नेतृत्व केवल लोकप्रियता की दौड़ नहीं है। प्रभावी नेतृत्व में कठोर निर्णय लेना पड़ता है, जो अल्पकालीन असुविधा या अप्रियता का कारण बन सकते हैं, परंतु दीर्घकाल में देश के लिए लाभकारी होते हैं। जब देश संकट में होता है, तब ऐसे निर्णय तुलनात्मक रूप से आसानी से लागू हो जाते हैं क्योंकि विकल्प कम होते हैं और लोक उन्हें अनिच्छा से स्वीकार भी करते हैं।लेकिन शांति के समय, जब लोग अपनी व्यवहारिक आदतों और प्रणाली से संतुष्ट होते हैं, तब ऐसे निर्णय लागू करना चुनौतीपूर्ण होता है। तथापि, दूरदर्शी नेता स्थिति को चुनौती देते हुए कठोर निर्णय ले सकते हैं। ये निर्णय जो लोग तत्काल नहीं चाहते, कभी-कभी शुरुआती दौर में अलोकप्रिय हो सकते हैं। परिवर्तन निश्चित ही अनिश्चितता लाता है। मोदी जैसे नेता इस अनिश्चितता का सामना कर नए आदर्श स्थापित करने में सक्षम होते हैं।प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल के दो ऐसे निर्णय हैं—नोटबंदी और जीएसटी लागू करना। नोटबंदी के कारण निश्चित ही जनता को असुविधा हुई। जीएसटी शुरू में व्यापार के लिए कठिन रहा, पर अब इसके फायदे सबके सामने हैं।प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की एक प्रमुख विशेषता देश के सामान्य नागरिकों के प्रति “सहानुभूति” है। इस सहानुभूति के कारण वे तरह-तरह की परिस्थितियों को देखते हुए निर्णय लेते हैं, जिससे निर्णय लगभग त्रुटिरहित होते हैं। साथ ही, वे अपने दिल की सहानुभूति और कार्यक्षमता की कमी न होने दें, इसका पूरा ध्यान रखते हैं। उनके दिल की सहानुभूति और कठोरता एक-दूसरे की पूरक हैं; निर्णय लेने, ध्यान केंद्रित करने और कार्रवाई का स्पष्ट मार्ग चुनने के लिए ये आवश्यक हैं। प्रबंधन विशेषज्ञ इसे “कठोर सहानुभूति” (tough empathy) कहते हैं।गरजों और इच्छाओं के बीच फर्क करने से मोदीजी को अर्थव्यवस्था पर अधिक बोझ डाले बिना समाज के कमजोर वर्गों को उपयुक्त आर्थिक, खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने में मदद मिली। मोदी अनियंत्रित लोकप्रियता की प्रवृत्तियों को “रेवड़ी संस्कृति” कहते हैं।

कठोर सहानुभूति का एक और महत्वपूर्ण पहलू है कार्य और व्यक्ति के प्रति सम्मान के बीच संतुलन। मोदीजी सार्वजनिक और निजी दोनों स्तरों पर कठोर संदेश देने से नहीं हिचकते। जिन्होंने उनके साथ कभी व्यक्तिगत संवाद किया है, वे इस बात की पुष्टि करेंगे। परंतु वे समस्या के आधार पर कठोर संदेश देने और व्यक्ति की भावनाओं को आहत न करने में अंतर समझते हैं।अपने कर्मों से उदाहरण प्रस्तुत करना मोदीजी की नेतृत्व शैली की एक विशेषता है। उन्होंने देश को स्वच्छता अभियान में भाग लेने का आह्वान किया और स्वयं सड़क किनारे कूड़ा साफ किया। एक पुस्तक विमोचन समारोह में उन्होंने पुस्तक के कवर पर उपयोग किए गए कागज को सावधानीपूर्वक मोड़कर अपने जेब में रखा और फिर उपस्थित लोगों को पुस्तक दिखाई। एक बार एक छोटी सभा में वे समय से पहले पहुँचे और हर कुर्सी के सामने रखे पेन काम कर रहे हैं या नहीं, इसकी जांच की। इस तरह के सामान्य और छोटे-छोटे कार्य लोगों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। पार्टी की बैठकों में कई बार वे अन्य लोगों से पहले अपनी सीट पर पहुँच जाते हैं।चार्ल्स डी गॉल के अनुसार, “नेतृत्व की कीमत होती है लगातार स्व- अनुशासन”। डैनियल गोलमेन इसे “स्व-नियमन” कहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी इसका जीवंत उदाहरण हैं।

मोदीजी ने पुराने विचारों को नई भाषा में इस तरह प्रस्तुत किया कि लोग आसानी से समझ सकें। अंत्योदय को “सबका साथ सबका विकास” के रूप में, स्वदेशी को “वोकल फॉर लोकल” और परम् वैभवम् को “विकसित भारत” से जोड़ा। इसी प्रकार, अंडमान के कई द्वीपों के नाम स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रखे, भारतीय नौसेना के झंडे पर छत्रपति शिवराय की मुद्रा स्थापित की और राजपथ का नाम कर्तव्यपथ रखा, जिससे उनकी विचारधारा की विशिष्टता स्पष्ट हुई।मोदीजी लगातार समाज के विभिन्न वर्गों से मिलते हैं। स्कूल के बच्चों के साथ गीत गाना, उनसे जिज्ञासु प्रश्न पूछना, ढोल वादकों के साथ ताल मिलाना, नवउद्यमियों के साथ चर्चा करके जनसाधारण के लिए नई तकनीक के उपयोग के बारे में विचार-विमर्श करना, विश्व नेताओं से वैश्विक मुद्दों पर संवाद करना, निर्माण मजदूरों के पैर धोना, वृद्ध महिला को चप्पल पहनाने में मदद करना, भीड़ में पुराने मित्र को देखते ही नाम लेकर पुकारना, मंदिरों में प्रार्थना और ध्यान करना, और विरोधियों पर तीखा भाषण देते हुए बड़ी सभा को संबोधित करना—इन सभी कार्यों में वे पूरी तरह से लगे रहते हैं।इसलिए उनके सभी उपक्रमों में लोग दिल से भाग लेते हैं। ऊपर वर्णित प्रत्येक कार्य में एक ही व्यक्ति नजर आता है, लेकिन उनकी व्यक्तित्व की विभिन्न और कभी-कभी पहले अनदेखी पक्ष झलके। उच्च स्तर के नेता के रूप में खुद को किसी एक फ्रेम या स्टेरियोटाइप में बाँधना असंभव है। उन्हें अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग व्यवहार करना पड़ता है, अलग-अलग लोगों से अलग-अलग स्वर में बात करनी पड़ती है। एक उद्यमी ने ठीक कहा था, “मुझे अपने आप को उसी रूप में रहना है, लेकिन संदर्भानुसार खुद का कुछ हिस्सा बदलना पड़ता है।” इसे उन्होंने आत्मसात किया है।

प्रामाणिकता जन्मजात नहीं होती, न ही यह इस बात पर निर्भर करती है कि कोई किस परिवार से है या कितना शक्तिशाली या अमीर है। केवल अपने घोषणापत्र से कोई प्रामाणिक नहीं बनता। अल्पकालीन लोकप्रियता के लिए प्रचलित जीवनशैली अपना लेने से भी प्रामाणिकता प्राप्त नहीं होती। प्रामाणिकता ऐसी चीज है जिसे अनुयायियों और व्यापक जनताओं को अनुभव करना होता है। लोगों को एक “सच्चे” व्यक्ति का नेतृत्व चाहिए होता है।मोदी को उनके विरोधियों से अलग करने वाले यही गुण हैं। मोदीजी के शब्द और कर्म लोगों को “प्रामाणिक” क्यों लगते हैं, पर उनके विरोधी इन्हें “नाटक” या “संधी साधू” क्यों मानते हैं, इसका जवाब भी यही है।दत्तोपंत ठेंगड़ी की पुस्तक “कार्यकर्ता” में गीता के अठारहवें अध्याय के एक श्लोक का कई बार उल्लेख किया गया है:

“अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्।

विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्॥ १८-१४॥”

किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अधिष्ठान (आधार), कर्ता (कर्त्ता), अनेक प्रकार के साधन, प्रयास और परमेश्वर का आशीर्वाद—इन पांच चीजों की आवश्यकता बताई है।मोदीजी के नेतृत्व में संघ संस्कारों का अधिष्ठान, नेतृत्व गुणों के साथ विभिन्न साधनों और अथक परिश्रम का अद्भुत तालमेल साफ़ दिखाई देता है। समर्थ के शब्दों में, “सामर्थ्य है चळवळीचे; जो जो करील तयाचे; परंतु तेथे भगवंताचे अधिष्ठान पाहिजे।” उनकी इस साधना पर ईश्वरी आशीर्वाद भी रहें।

मोदीजी ने अपनी कठोर मेहनत, कठिन परिस्थितियों से खुद को निकालते हुए, लगातार सीखकर और अनुभव हासिल करके यह मुकाम प्राप्त किया है। वे कभी भी अपने असली स्वरूप, अपनी निष्ठा और श्रद्धा को व्यक्त करने से पीछे नहीं हटे। महिमा और सफलता के शिखर पर होते हुए भी, वे कभी अपने मूल से, बचपन से, प्रेरणास्थान से और अपने पालन-पोषण से कटे नहीं। मोदीजी के शब्दों में कहें तो, “संघ की तपस्या विकसित भारत का अध्याय लिख रही है।” “अमृत काल” के दौरान भारत को एक सच्चा नेता मिला है, यह हमारा सौभाग्य है।

(लेखक भारतीय जनता पार्टी के विदेश संबंध विभाग के प्रभारी हैं।)

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