कोलकाता- पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने रविवार को भले ही शानदार जीत हासिल की और दो तिहाई से ज्यादा बहुमत के साथ लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए तैयार है। लेकिन सबसे हॉट सीट नंदीग्राम में सबसे बड़ा उलटफेर देखने को मिला, जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नाटकीय अंदाज में चुनाव हार गयी हैं।
कभी ममता के खास सहयोगी रहे और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी ने कांटे की टक्कर में 1,736 वोटों से जीत हासिल की। सच पूछें तो मतगणना के दौरान लगातार उठापटक देखने को मिली। शुरुआती रुझानों में अधिकारी जहां ममता से आगे निकल गए वहीं बाद में ममता ने बढ़त बनायी.
मतगणना के 16वें राउंड की समाप्ति के बाद शुभेंदु को सिर्फ छह वोटों की बढ़त थी। शाम लगभग पांच बजे खबर आई कि ममता ने शुभेंदु को 1200 वोटों से मात दे दी है। लेकिन करीब एक घंटे बाद पता चला कि ममता हार गयी हैं।
फिलहाल पराजय के बाद ममता ने आरोप लगाया है कि चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद कुछ हेरफेर की गयी है। इसे लेकर वह कोर्ट जाएंगी और जल्द इसका खुलासा करेंगी। परिणाम आने के बाद मीडिया से मुखातिब ममता ने अपनी हार स्वीकारने के साथ कहा, ‘नंदीग्राम में भूल जाओ, क्या हुआ। नंदीग्राम के बारे में चिंता मत करो। नंदीग्राम के लोग जो भी जनादेश देंगे, मैं उसे स्वीकार करती हूं। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैंने नंदीग्राम में सघंर्ष किया क्योंकि मैं एक आंदोलन लड़ी। हमने 221 से अधिक सीटें जीतीं और भाजपा चुनाव हार गई है।’
मतदान प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग पर लगातार प्रहार करने वालीं ममता ने कहा कि नंदीग्राम की लड़ाई उनके संघर्ष का हिस्सा है। निर्वाचन आयोग ने नंदीग्राम में हमेशा भाजपा के प्रवक्ता के रूप में काम किया और पूरे चुनाव भाजपा ने गंदी राजनीति की है।
ज्ञातव्य है कि शुभेंदु के भाजपा में जाने के बाद ममता ने अपनी परंपरागत भवानीपुर सीट छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी और पूरे चुनाव के दौरान यह सीट सर्वाधिक चर्चा के केंद्र में रही।
प्रशांत किशोर ने लिया संन्यास, बोले – इतना पक्षपाती निर्वाचन आयोग पहले कभी नहीं देखा
इस बीच तृणमूल कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने टीएमसी की रिकॉर्डतोड़ जीत के बाद इस पेशे से संन्यास की घोषणा कर दी है। लेकिन साथ ही उन्होंने केंद्रीय निर्वाचन आयोग पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा है कि उन्होंने इतना पक्षपात करने वाला चुनाव आयोग पहले कभी नहीं देखा और सभी राजनीतिक दलों को एक साथ आकर आयोग पर खुद ही सुधार के लिए दबाव बनाना चाहिए।