उमेश पाल हत्याकांड से जुड़ीं पुलिस मुठभेड़ को न्यायिक आयोग ने ठहराया सही, असद अहमद को मिला था मौका
लखनऊ, 2 अगस्त। उत्तर प्रदेश पुलिस और सनसनीखेज उमेश पाल हत्याकांड के संदिग्धों के बीच हुई तीन मुठभेड़ों की वैधता का पता लगाने के लिए गठित न्यायिक जांच आयोग ने पाया है कि ये घातक गोलीबारी “वास्तविक” थी और “आत्मरक्षा” में की गई थी। इन तीन मुठभेड़ों में से एक में मारे गए संदिग्धों में गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद का बेटा असद अहमद भी शामिल था।
न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट बृहस्पतिवार को उप्र विधानसभा में पेश की गई। वर्ष 2005 में बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की फरवरी 2023 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में उनके आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
राजू पाल की हत्या इलाहाबाद (पश्चिम) विधानसभा सीट से अपने चुनावी पदार्पण में पूर्व सांसद अतीक अहमद के छोटे भाई खालिद अजीम को हराकर जीतने के कुछ महीने बाद की गई थी। राजू पाल हत्याकांड में अतीक अहमद, उसके भाई और पूर्व विधायक अशरफ मुख्य आरोपी थे।
राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने प्रयागराज के धूमनगंज क्षेत्र में 27 फरवरी 2023 को हुई पुलिस मुठभेड़ (जिसमें अरबाज की मौत हो गई थी), प्रयागराज के कौंधियारा क्षेत्र में छह मार्च 2023 को हुई पुलिस मुठभेड़ (जिसमें विजय कुमार चौधरी उर्फ उस्मान की मौत हो गई थी) और झांसी के बड़ागांव क्षेत्र में पुलिस और वांछित अपराधियों के बीच हुई मुठभेड़ (जिसमें असद अहमद और मोहम्मद गुलाम की मौत हो गई थी) की वास्तविकता का पता लगाने के लिए अप्रैल में दो सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग के गठन का आदेश दिया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राजीव लोचन मेहरोत्रा (सेवानिवृत्त) इस आयोग के अध्यक्ष थे और उप्र पुलिस के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक विजय कुमार गुप्ता इसके सदस्य थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि “इन तीनों घटनाओं की सत्यता, फाइल पर उपलब्ध मृतकों की मेडिकल जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट तथा फॉरेंसिक साइंस प्रयोगशाला के परीक्षित वैज्ञानिकों के साक्ष्यों से साबित होती है, जिन्होंने अपने साक्ष्यों में स्पष्ट रूप से कहा है कि मृतकों को लगी चोटें दूर से चलाई गई गोलियों से आई थीं और मृतक आरोपियों से बरामद किए गए तथा घटना में पुलिस पार्टी के पास मौजूद हथियारों का इस्तेमाल वास्तव में गोलीबारी के लिए किया गया था।”
आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, “सभी चिकित्सकों ने अपने साक्ष्यों के माध्यम से यह भी पुष्टि की है कि सभी मृतकों को लगी चोटें सामने से आई थीं और इन घटनाओं में पुलिसकर्मियों को लगी चोटें भी आग्नेयास्त्रों से लगी थीं।” अपनी रिपोर्ट और साक्ष्यों में चिकित्सकों ने पुलिसकर्मियों को लगी चोटों को खुद से लगी चोट नहीं पाया।”
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि घटना के समय आरोपी अरबाज और आरोपी विजय कुमार चौधरी से बरामद हथियारों का इस्तेमाल उमेश पाल की हत्या के मामले में भी किया गया था। ” निस्संदेह, उपरोक्त तीनों मुठभेड़ें उमेश पाल हत्याकांड से संबंधित पुलिस और आरोपियों के बीच हुई हैं। न्यायिक आयोग ने कहा कि उमेश पाल पेशे से वकील थे और उन्होंने शहर में लंबे समय से आपराधिक इतिहास रखने वाले लोगों के खिलाफ अपहरण के मामले में साहसपूर्वक गवाही दी थी।
उमेश पाल के इसी साहस के कारण उनकी हत्या की गई। फाइल पर संकलित सभी मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य और तीनों घटनाओं के घटनास्थल के निरीक्षण के बाद आयोग संतुष्ट है कि उपरोक्त तीनों मामलों में पुलिस की आरोपियों के साथ मुठभेड़ हुई थी, जिसमें आरोपियों ने ही फायरिंग की थी और पुलिस ने उन्हें आत्मसमर्पण करने का पर्याप्त अवसर दिया था और पुलिस ने केवल आत्मरक्षा में आरोपियों पर फायरिंग की, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी की मौत हो गई।
जांच आयोग ने कहा, “पुलिस दलों का यह कृत्य कानून द्वारा उन्हें दिए गए आत्मरक्षा के अधिकार के अंतर्गत आता है। इसलिए आयोग का मानना है कि उपरोक्त तीनों मुठभेड़ों की घटनाएं वास्तविक और संदेह से परे हैं। यह भी स्पष्ट है कि मुठभेड़ में शामिल किसी भी पुलिस दल ने आत्मरक्षा के अधिकार का अतिक्रमण नहीं किया ।” आयोग ने निष्कर्ष निकाला,“जांच के दौरान पुलिसकर्मियों की कोई दुर्भावना, व्यक्तिगत हित, साजिश या गलती नहीं पाई गई।”