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महाकुम्भ में जारी की जाएगी हिन्दू आचार संहिता, कुरीतियों को दूर करने व मर्यादित आचरण को बढ़ावा देने पर जोर

महाकुम्भ में जारी की जाएगी हिन्दू आचार संहिता, कुरीतियों को दूर करने व मर्यादित आचरण को बढ़ावा देने पर जोर

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वाराणसी, 31 दिसम्बर। सैकड़ों वर्षों में हिन्दू धर्मावलंबियों में आई कुरीतियों को दूर करने और मर्यादित आचरण को बढ़ावा देने के लिए समयानुकूल काशी विद्वत परिषद ने एक हिन्दू आचार संहिता (Hindu Code of Conduct) तैयार की है। इसे  प्रयागराज में लगने वाले महाकुम्भ के दौरान जारी किया जाएगा।

काशी विद्वत परिषद ने तैयार की है हिन्दू आचार संहिता

विद्वानों के अनुसार सबसे पहले मनु स्मृति, फिर पाराशर और उसके बाद देवल स्मृति का निर्माण किया गया था। लेकिन पिछले 351 वर्षों से स्मृतियों का निर्माण नहीं हो सका था। काशी विद्वत परिषद द्वारा तैयार धर्म आधारित इस आचार संहिता में मंदिर में बैठने, पूजा-पाठ करने से लेकर शादी-ब्‍याह आदि तमाम संस्‍कारों के लिए सामान्‍य नियम बनाए गए हैं। इसमें महिलाओं को अशौचावस्था को छोड़कर वेद अध्ययन और यज्ञ करने की अनुमति होगी।

4 वर्षों में 70 विद्वानों की टीम ने तैयार किया – रामायण द्विवेदी

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री डॉ. रामनारायण द्विवेदी आचार्य ने बताया कि हिन्‍दू आचार संहिता को चार वर्षों में देशभर के 70 विद्वानों की टीम ने तैयार किया है। काशी विद्वत परिषद ने यह टीम बनाई थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार आचार संहिता को तैयार करने के लिए कर्म और स्‍मृतियों को आधार बनाया गया है। श्रीमद्भागवत गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अंश भी इसमें लिए गए हैं। इसके साथ ही मनु स्‍मृति, पराशर स्‍मृति और देवल स्‍मृति को भी आधार बनाया गया है। पहले चरण में आचार संहिता की करीब एक लाख प्रतियां प्रकाशित की जाएंगी।

धर्म आधारित हिन्‍दू आचार संहिता में व्‍यक्ति के जीवन के तमाम संस्‍कारों और महत्‍वपूर्ण आयोजनों के लिए सामान्‍य नियम हैं। इसमें जन्‍मदिन समारोह जैसे आयोजन में भारतीय परम्‍पराओं के पालन पर जोर है। इसमें विधवा विवाह की व्यवस्था को भी शामिल किया गया है। इसके साथ ही समय के अनुसार षोडश संस्‍कारों को भी सरल बनाया गया है। जैसे मृत्‍यु के बाद दिए जाने वाले भोज के लिए न्‍यूनतम 16 की संख्‍या निर्धारित की गई है।

दिन में विवाह सर्वोत्तम और वैदिक परंपरा के अनुरूप

हिन्दू आचार संहिता ने शादियों में बढ़ती फिजूलखर्चियों तथा तड़क-भड़क को गलत बताते हुए दिन में विवाह को सर्वोत्तम और वैदिक परंपरा के अनुरूप बताया है। इसी तरह, कन्यादान को श्रेष्ठ दान बताते हुए दहेज को निषेध किया है जबकि बड़ी कुरीतियों में से एक कन्या भ्रूण हत्या को पाप बताते हुए पुरुषों के समान महिलाओं के अधिकार स्थापित किए हैं और कहा है कि महिलाएं भी यज्ञ आदि कर सकती हैं।

महिलाएं भी कर सकती हैं यज्ञ

इस आचार संहिता को महाकुम्भ में विश्व हिन्दू परिषद के संत सम्मेलन में देशभर से आए संतों के समक्ष रखा जाएगा। फिर व्यापक विचार-विमर्श के बाद इसे जारी किया जाएगा। विस्तृत हिन्दू आचार संहिता करीब 300 पृष्ठों की है तो संक्षेप 21 पृष्ठ व सारांश दो पृष्ठ का है। इसे धर्म ग्रंथों के अध्ययन के बाद तैयार किया गया है।

हिन्दुओं में माना जाता है शक्ति को सर्वोच्च

संहिता के अनुसार, हिन्दू धर्म में शक्ति की सर्वोच्चता पहले से है। इसलिए सीताराम-राधेश्याम इत्यादि में पहला प्रयोग शक्ति का किया गया है। वह यज्ञ के साथ सभी धार्मिक स्वतंत्रता में वे पूर्ण रूप से विद्वमान हैं।

जाति के आधार पर छुआछूत वैदिक परंपरा नहीं

इसी तरह, मंदिरों में अनुसूचित जाति के लोगों के प्रवेश पर मनाही तथा अस्पृश्यता को शास्त्र सम्मत न बताते हुए कहा गया है कि यह परतंत्रता के चलते कुरीति आई है। उस दौर के साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है, लेकिन उसके पहले के वैदिक ग्रंथों में इसका जिक्र तक नहीं है। इससे स्पष्ट है कि जाति आधारित छूआछूत वैदिक परंपरा नहीं है।

संहिता से तैयार होगी घर वापसी की राह

यहीं नहीं, आचार संहिता से घर वापसी को लेकर भी स्पष्टता दी है। कोई यदि हिन्दू धर्म में वापस आना चाहता है तो वह आसानी से आ सकता है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार जन्म से हर व्यक्ति हिन्दू है। फिर भी वर्तमान में जाति व गौत्र संबंधित अनिश्चितताओं के लिए तय किया गया है कि जो मतातंरण के दौरान जो कार्य करता है और कार्य आधारित हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था में समाहित हो सकता है। उसी तरह, जो भी ब्राह्मण उनकी शुद्धि कराएगा, वह उसे अपना गौत्र देगा। इसी तरह वह विवाह संपन्न करा सकेगा। अन्यथा घर वापसी करने वालों के लिए अलग जाति पर विमर्श पर भी जोर दिया गया है।

संहिता में हिन्दू धर्माचरण को लेकर ढेरों सवालों के जवाब – स्वामी जीतेंद्रानंद

अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि समयानुकूल आचार संहिता तैयार होती रही है, लेकिन दो हजार वर्षों में संहिता नहीं तैयार की जा सकी। वर्तमान समय में लोगों के भीतर हिन्दू धर्माचरण को लेकर तमाम सवाल है, जिसे इस संहिता में उत्तर देने का प्रयास किया गया है। तैयार संहिता पर महाकुम्भ में एक बार फिर संतों के बीच व्यापक विमर्श व संशोधन के बाद इसे जारी किया जाएगा।

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