नई दिल्ली, 19 मई। दिल्ली में सत्तारूढ़ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को बड़ा झटका लगा, जब गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा शुरू की गई घर-घर राशन पहुंचाने की योजना रद कर दी। उच्च न्यायालय ने ‘मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना’ को चुनौती वाली राशन दुकानदारों की दो याचिकाओं को मंजूरी दी थी।
हाई कोर्ट ने कहा – चीजें घर पहुंचाने के लिए सरकार कोई और योजना लाने के लिए स्वतंत्र
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन संघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि घर-घर चीजें पहुंचाने के लिए दिल्ली सरकार कोई और योजना लाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन वह केंद्र सरकार की ओर से उपलब्ध कराए गए अनाज का इस्तेमाल घर-घर पहुंचाने की योजना के लिए नहीं कर सकती।
राशन दुकानदारों की दो यूनियनों ने दायर की थीं याचिकाएं
दिल्ली सरकारी राशन डीलर्स संघ और दिल्ली राशन डीलर्स यूनियन की ओर से दायर याचिकाओं पर उच्च न्यायालय ने 10 जनवरी को आदेश सुरक्षित रख लिया था। दिल्ली सरकार ने योजना के बचाव में कहा था कि इस योजना का उद्देश्य उन गरीबों को लाभ पहुंचाना था, जिन्हें उचित मूल्य की दुकानों (एफपीएस) के मालिक घर तक राशन पहुंचाने के विकल्प को छोड़ने के लिए धमकाते हैं।
आम आदमी पार्टी ने पहले कहा था कि यह धारणा पूरी तरह गलत है कि योजना लागू होने से उचित मूल्य की दुकानें खत्म हो जाएंगी। दिल्ली सरकार ने यह भी कहा था कि आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के बेंगलुरु में घर-घर राशन पहुंचाने की योजनाएं चल रही हैं।
वकील मोनिका अरोड़ा ने रखा केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार की वकील मोनिका अरोड़ा ने दिल्ली सरकार की योजना का विरोध करते हुए कहा कि इस योजना के क्रियान्वयन से राज्य, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) की संरचना के प्रभाव को कम कर सकता है। अरोड़ा ने यह भी दलील दी थी कि अदालत को किसी भी राज्य सरकार को एनएफएसए की संरचना में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देना चाहिए। एफपीएस इस कानून का एक अविभाज्य अंग है। केंद्र ने कहा था कि एनएफएसए के अनुसार राज्यों को अनाज दिया जाता है, जो उन्हें भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से लेना होता है और उचित मूल्य की दुकानों को देना होता है ताकि वे लाभार्थियों को उसका वितरण कर सकें।