गुवाहाटी, 21 फरवरी। वयोवृद्ध गांधीवादी समाजसेविका शकुंतला चौधरी का 102 वर्ष की उम्र में यहां निधन हो गया। कई दशकों से यहां सरानिया आश्रम में रह रहीं शकुंतला की देखभाल करने वाले लोगों ने बताया कि उम्र संबंधी बीमारियों के कारण उनका पिछले 10 वर्षों से इलाज चल रहा था और रविवार रात को उन्होंने अंतिम सांस ली।
पद्मश्री से सम्मानित शकुंतला चौधरी का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए आश्रम में ही रखा गया था और सोमवार को नबगृह शवदाहगृह में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
पीएम मोदी बोले – गांधीवादी मूल्यों में दृढ़ विश्वास रखने के लिए वह याद की जाएंगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शकुंतला चौधरी के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि गांधीवादी मूल्यों में दृढ़ विश्वास रखने के लिए उन्हें याद किया जाएगा। पीएम मोदी ने ट्वीट किया, ‘शकुंतला चौधरी जी को गांधीवादी मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए उनके जीवनभर के प्रयासों के लिए याद किया जाएगा। सरानिया आश्रम में उनके नेक काम ने कई लोगों की जिंदगियों पर सकारात्मक असर डाला। उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिवार तथा असंख्य प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं। ओम शांति।’
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने भी जताया शोक
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने भी उनके निधन पर शोक जताते हुए ट्वीट किया, ”गांधीवादी और ‘पद्मश्री’ शकुंतला चौधरी के निधन से बहुत दुखी हूं। उनका जीवन सरानिया आश्रम, गुवाहाटी में निस्वार्थ सेवा, सच्चाई, सादगी और अहिंसा के प्रति समर्पित रहा, जहां महात्मा गांधी 1946 में रहे थे। उनकी सद्गति की प्रार्थना करता हूं। ओम शांति।’ राज्य के मंत्रियों केशब महंत और रानोज पेगू ने सरानिया आश्रम में सरकार की ओर से चौधरी के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की।
शकुंतला को प्यार से लोग बैदेव कहकर पुकारते थे
गुवाहाटी में जन्मी शकुंतला को प्यार से ‘बैदेव’ (बड़ी बहन) बुलाया जाता था। वह एक होनहार छात्रा थीं, जो आगे चलकर एक शिक्षिका बनीं और गुवाहाटी के टीसी स्कूल में अपने कार्यकाल के दौरान वह एक अन्य गांधीवादी अमलप्रोवा दास के संपर्क में आईं। अमलप्रोवा दास के पिता ने आश्रम की स्थापना के लिए अपनी सरानिया हिल्स की संपत्ति दान कर दी थी।
अमलप्रोवा दास ने चौधरी से ग्राम सेविका विद्यालय चलाने में मदद करने और कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट (केजीएनएमटी) की असम शाखा का प्रबंधन करने के लिए उनके साथ जुड़ने का आग्रह किया था, जिसके बाद वह कार्यालय सचिव बनीं। उन्हें ट्रस्ट के प्रशासन को चलाने का काम सौंपा गया था।
चौधरी ने 1955 में दास को KGNMT के ‘प्रतिनिधि’ (प्रमुख) के रूप में स्थान दिया और 20 वर्षों तक उन्होंने चीनी आक्रमण, तिब्बती शरणार्थी संकट, 1960 की भाषाई हलचल जैसे कई विकासों को देखते हुए मिशन को आगे बढ़ाया और उन्होंने राहत और सहायता प्रदान करने के लिए अपनी टीम का नेतृत्व किया।
जीवन के मुख्य आकर्षण विनोबा भावे के साथ घनिष्ठ संबंध था
शकुंतला चौधरी के जीवन के मुख्य आकर्षण विनोबा भावे के साथ उनका घनिष्ठ संबंध था और उनके प्रसिद्ध ‘भूदान’ आंदोलन के अंतिम चरण के दौरान असम में डेढ़ साल की ‘पदयात्रा’ में उनकी सक्रिय भागीदारी थी। वह उनके दल का हिस्सा थीं और एक दुभाषिया के रूप में, उन्होंने असमिया में लोगों को अपना संदेश दिया।
चौधरी के पिता यहां तक चाहते थे कि वह भावे के वर्धा आश्रम में जाकर रहें, लेकिन सरनिया आश्रम में उनके वरिष्ठों ने उन्हें इसके खिलाफ राजी कर लिया क्योंकि उन्हें राज्य में कई जिम्मेदारियों को पूरा करना था।
भावे ने अलग-अलग भाषाई समूहों के लोगों के बीच देवनागरी लिपि को बढ़ावा देने के लिए अपनी खुद की लिपि के साथ पहल की थी और उन्हें एक मासिक पत्रिका ‘असोमिया विश्व नगरी’ शुरू करने के लिए कहा था, जिसे उन्होंने कुछ साल पहले तक संपादित किया था।
‘गाय वध सत्याग्रह‘ व ‘स्त्री शक्ति जागरण‘ में भी सबसे आगे थीं
चौधरी 1978 में भावे द्वारा शुरू किए गए ‘गाय वध सत्याग्रह’, ‘स्त्री शक्ति जागरण’ में भी सबसे आगे थीं और उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर केजीएनएमटी के ट्रस्टी के रूप में भी काम किया। वह सूत कातना पसंद करती थी और हमेशा खादी ‘मेखला-सदोर’ (महिलाओं के लिए पारंपरिक असमिया पोशाक) पहनती थी।
प्रार्थना और संगीत उनके लिए जीविका का स्रोत रहा
चौधरी एक उत्साही पाठक थीं। गांधी पर एक किताब हमेशा उनकी बेडसाइड टेबल पर रहा करती थी जबकि दीवारों को चित्रों और तस्वीरों से सजाया होता था। दीवारों पर गांधी के सफर से जुड़ी तस्वीरें होती थीं। प्रार्थना और संगीत उनके लिए जीविका का स्रोत रहा है, जिसमें रवींद्रनाथ टैगोर के गाने पसंदीदा थे।