विदेश मंत्री जयशंकर का ड्रैगन पर आरोप – समझौते का पालन नहीं करता चीन
टोक्यो, 7 मार्च। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने 2020 में सीमाओं पर हिंसा के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए गुरुवार को आरोप लगाया कि उसने भारत के साथ लंबे समय से कायम लिखित समझौतों का पालन नहीं किया। यहां एक ‘थिंक टैंक’ के कार्यक्रम ‘रायसीना गोलमेज सम्मेलन’ में जयशंकर ने यह भी कहा कि कैसे उन्हें दुनिया के बाकी हिस्सों के प्रति रूस की दिशा में बदलाव की उम्मीद है और वह संभवतः एशिया में कई विकल्प चाहता है।
जापान की दो दिवसीय यात्रा पर आए जयशंकर ने बदलती विश्व व्यवस्था पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा, ‘हिंद-प्रशांत में एक बहुत बड़ा शक्ति परिवर्तन वास्तविकता है। जब क्षमताओं और प्रभाव तथा संभवतः महत्वाकांक्षाओं में बहुत बड़े बदलाव होते हैं, तो सभी महत्वाकांक्षाएं और रणनीतिक परिणाम भी जुड़े होते हैं। अब, यह कोई मुद्दा नहीं है कि आपको यह पसंद है या आपको यह पसंद नहीं है। वहां एक वास्तविकता है, आपको उस वास्तविकता से निपटना होगा।’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘आदर्श रूप से, हम मानते हैं कि हर कोई कहेगा, ठीक है, चीजें बदल रही हैं, लेकिन इसे जितना संभव हो, उतना स्थिर रखना चाहिए। दुर्भाग्य से, हमने चीन के मामले में पिछले दशक में ऐसा नहीं देखा है। उदाहरण के लिए, 1975 से 2020 के बीच, 45 वर्षों में सीमा पर कोई हिंसा नहीं हुई और 2020 में हालात बदल गए।’
जयशंकर ने एक सवाल पर कहा, ‘हम कई चीजों पर असहमत हो सकते हैं, लेकिन जब कोई देश किसी पड़ोसी के साथ लिखित समझौतों का पालन नहीं करता है, तो मुझे लगता है… तब रिश्ते की स्थिरता पर सवालिया निशान खड़ा हो जाता है और ईमानदारी से कहूं तो इरादों पर सवाल उठता है।’
Delighted to speak at the Inaugural Raisina Roundtable in Tokyo today.
Made three observations:
➡️ World is heading for re-globalization with building of resilient and reliable supply chains and trusted and transparent digital transactions. India and Japan are natural partners… https://t.co/0CZG58DchV pic.twitter.com/vRsi83Pa4O
— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) March 7, 2024
उल्लेखनीय है कि पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पांच मई, 2020 को पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध पैदा हो गया। जून, 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद दोनों देशों के संबंधों में काफी गिरावट आई, जो दशकों में दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष था।
भारत कहता रहा है कि जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति नहीं होगी, तब तक चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते। जयशंकर ने कहा, ‘हम इसे यूरोप में संघर्ष में, एशिया में अंतरराष्ट्रीय कानून की अवहेलना में और मध्य पूर्व में घटनाक्रम में देखते हैं।’ उन्होंने 1993 के सीमा पर शांति समझौते और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य क्षेत्र में ‘‘विश्वास बहाली उपायों’ से जुड़े 1996 के समझौते का जिक्र किया।
विदेश मंत्री ने कहा, ‘लंबे समय से कायम समझौतों का आवश्यक रूप से पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे उस हालात की स्थिरता पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं, जिसमें हम सभी काम करते हैं।’ अपने संबोधन के बाद एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘इसलिए भारत के लिए, बदलती दुनिया में, हमारा अपना संतुलन, दूसरे देशों के साथ हमारा अपना संतुलन भी बदल रहा है। उन्हें कटु होने की जरूरत नहीं है, लेकिन संतुलन बदल रहा है।’
विदेश मंत्री ने गत दो मार्च को दिल्ली में एक ‘थिंक टैंक’ के संवाद सत्र में संबोधन के दौरान इसी तरह का मुद्दा उठाया था। पूर्वी लद्दाख में लंबे समय से जारी सैन्य टकराव के बीच जयशंकर ने कहा, ‘चीन को सीमा प्रबंधन समझौतों का पालन करना चाहिए और भारत-चीन संबंधों में सुधार के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति होनी चाहिए।’
उन्होंने रूस और उसके बदलते दृष्टिकोण के बारे में भी टिप्पणी की। उन्होंने उल्लेख किया कि पिछले दो वर्षों के दौरान, यूक्रेन संघर्ष के कारण पश्चिमी देशों के साथ रूस के संबंध टूट गए हैं। उन्होंने कहा, ‘तो आज आपके पास वास्तव में यह संभावना है कि रूस अधिक से अधिक एशिया की ओर रुख कर रहा है। वह अन्य महाद्वीपों की ओर भी रुख कर सकता है, लेकिन मैं कहूंगा कि एशिया में उनके लिए सबसे बहुआयामी संभावना है।’