विदेश मंत्री जयशंकर बोले – चीन के साथ LAC पर गश्त समझौते का मतलब यह नहीं कि सब कुछ सुलझ गया
पुणे, 26 अक्टूबर। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गश्त को लेकर चीन के साथ हुए समझौते का यह मतलब नहीं है कि दोनों देशों के बीच सारे मुद्दे सुलझ गए हैं, हालांकि सैनिकों के पीछे हटने से अगले कदम पर विचार करने का मौका जरूर मिला है। उन्होंने साथ ही भारतीय सेना को इस समझौते का श्रेय देते हुए कहा कि उसने ‘बहुत ही अकल्पनीय’ परिस्थितियों में काम किया।
चीन से समझौते का श्रेय भारतीय सेना को दिया
जयशंकर ने शनिवार को पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, ‘ सैनिकों के पीछे हटने का 21 अक्टूबर को जो समझौता हुआ, उसके तहत देपसांग और डेमचोक में गश्त की जाएगी। इससे अब हम अगले कदम पर विचार कर सकेंगे। ऐसा नहीं है कि सबकुछ हल हो गया है, लेकिन सैनिकों के पीछे हटने का पहला चरण है और हम उस स्तर तक पहुंचने में सफल रहे हैं।’
संबंधों को सामान्य बनाने में अब भी समय लगेगा
विदेश मंत्री ने यहां छात्रों के साथ बातचीत के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा कि संबंधों को सामान्य बनाने में अब भी समय लगेगा। भरोसे को फिर से कायम करने और साथ मिलकर काम करने में स्वाभाविक रूप से समय लगेगा।
A pleasure interacting with the nation’s future @FLAMEUniversity in Pune today.
Happy to see our youth’s active interest in Bharat’s foreign policy. https://t.co/ZujsoAlue5 pic.twitter.com/21UJr9JD6p
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) October 26, 2024
जयशंकर ने कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए रूसी शहर कज़ान में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात की थी तो यह निर्णय लिया गया कि दोनों देशों के विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मिलेंगे और देखेंगे कि आगे कैसे बढ़ा जाए।
एलएसी पर सेना के साथ कूटनीति ने भी अपना काम किया
उन्होंने कहा, ‘यदि आज हम यहां तक पहुंचे हैं, तो इसका एक कारण यह है कि हमने अपनी बात पर अड़े रहने और अपनी बात रखने के लिए बहुत दृढ़ प्रयास किया है। सेना देश की रक्षा के लिए बहुत ही अकल्पनीय परिस्थितियों में वहां (एलएसी पर) मौजूद थी और सेना ने अपना काम किया तथा कूटनीति ने भी अपना काम किया।’
पिछले एक दशक में भारत ने अपने बुनियादी ढांचे में सुधार किया
जयशंकर ने कहा कि पिछले एक दशक में भारत ने अपने बुनियादी ढांचे में सुधार किया है। एक समस्या यह भी रही कि पहले के वर्षों में सीमा पर बुनियादी ढांचे की वास्तव में उपेक्षा की गई थी। उन्होंने कहा, ‘आज हम एक दशक पहले की तुलना में प्रति वर्ष पांच गुना अधिक संसाधन लगा रहे हैं, जिसके परिणाम सामने आ रहे हैं और सेना को वास्तव में प्रभावी ढंग से तैनात करने में सक्षम बना रहे हैं।’
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास से सैनिकों की वापसी और गश्त को लेकर समझौता हुआ था, जो चार साल से अधिक समय से जारी गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ी सफलता है। जून, 2020 में गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच भीषण संघर्ष के बाद संबंधों में तनाव आ गया था। यह पिछले कुछ दशकों में दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष था।
सैनिकों का पीछे हटना समस्या समाधान के प्रथम पहलू
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि भारत सितम्बर, 2020 से चीन के साथ समाधान निकालने के लिए बातचीत कर रहा था। उन्होंने कहा कि इस समाधान के विभिन्न पहलू हैं। सबसे जरूरी बात यह है कि सैनिकों को पीछे हटना होगा क्योंकि वे एक-दूसरे के बहुत करीब हैं और कुछ घटित होने की आशंका थी।’
उन्होंने कहा, ‘इसके बाद एक बड़ा मुद्दा यह है कि आप सीमा का प्रबंधन कैसे करते हैं और सीमा समझौते को लेकर बातचीत कैसे करते हैं। अभी जो कुछ भी हो रहा है, वह पहले चरण से संबंधित है, जो कि सैनिकों की वापसी है।’
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन 2020 के बाद कुछ स्थानों पर इस बात पर सहमत हुए कि कैसे सैनिक अपने ठिकानों पर लौटेंगे, लेकिन एक महत्वपूर्ण बात गश्त से संबंधित थी। उन्होंने कहा, ‘गश्त को बाधित किया जा रहा था और हम पिछले दो वर्षों से इसी पर बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे। इसलिए 21 अक्टूबर को जो हुआ, वह यह था कि उन विशेष क्षेत्रों देमचोक और डेपसांग में हम इस समझ पर पहुंचे कि गश्त फिर से उसी तरह शुरू होगी, जैसी पहले हुआ करती थी।’