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वित्त मंत्री सीतारमण बोलीं- भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में ‘स्थिरता लाने वाली शक्ति’, बाहरी झटकों को झेलने में सक्षम

वित्त मंत्री सीतारमण बोलीं- भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में ‘स्थिरता लाने वाली शक्ति’, बाहरी झटकों को झेलने में सक्षम

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नई दिल्ली, 3 अक्टूबर। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि विश्व, व्यापार एवं ऊर्जा सुरक्षा में ‘‘गंभीर असंतुलन’’ का सामना करने के साथ ही संरचनात्मक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और ऐसे समय में भारत ‘स्थिरता कायम करने वाली शक्ति’ के रूप में सामने आया है जो बाहरी झटकों को झेलने में सक्षम है।

सीतारमण ने यहां कौटिल्य आर्थिक शिखर सम्मेलन 2025 में कहा कि भू-राजनीतिक संघर्ष बढ़ रहे हैं और प्रतिबंध व शुल्क वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को नया रूप दे रहे हैं। ‘‘ऐसे में भारत को सतर्क रहना होगा और परितोष की कोई जगह नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ युद्ध एवं रणनीतिक प्रतिद्वंद्विताएं सहयोग व संघर्ष की सीमाओं को नए सिरे से परिभाषित कर रही हैं। जो गठबंधन कभी मजबूत दिखते थे, उनकी परीक्षा हो रही है और नए गठबंधन सामने आ रहे हैं। भारत के लिए ये गतिशीलताएं, संवेदनशीलता एवं लचीलेपन दोनों को उजागर करती हैं। झटकों को सहने की हमारी क्षमता मजबूत है। साथ ही हमारी आर्थिक क्षमता भी बढ़ रही है।’’

सीतारमण ने कहा कि विश्व अभूतपूर्व वैश्विक अनिश्चितता एवं अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है और देशों के समक्ष चुनौती केवल अनिश्चितता से निपटने की नहीं बल्कि व्यापार, वित्तीय एवं ऊर्जा असंतुलन से निटपने की भी है।

मंत्री ने ‘अशांत समय में समृद्धि की तलाश’ विषय पर आयोजित सत्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘इसलिए, हमारे सामने चुनौती केवल अनिश्चितता से नहीं बल्कि असंतुलन से निपटने की भी है। हमें खुद से सवाल करना होगा कि हम एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था कैसे बना सकते हैं जहां व्यापार निष्पक्ष हो, ऊर्जा सस्ती एवं टिकाऊ हो और जलवायु परिवर्तन से निपटने की कार्रवाई विकास की अनिवार्यताओं के अनुरूप हो…?’’

उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को ऐसे विचारों पर काम करने की जरूरत है, जो कल के पदानुक्रमों के बजाय आज की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करें। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि विकासशील देशों की आवाज नियम-निर्माण में हाशिए पर न रहे, बल्कि भविष्य को आकार देने में उनकी आवाज को बल मिले।

सीतारमण ने इसके अलावा कहा कि अव्यवस्थाएं इस नए वैश्विक युग को परिभाषित करती हैं, जिसमें व्यापार प्रवाह को नया रूप दिया जा रहा है। गठबंधनों का की परीक्षा ली जा रही है, भू-राजनीतिक सीमाओं के साथ निवेश को फिर से शुरू किया जा रहा है और साझा प्रतिबद्धताओं पर फिर से गौर किया जा रहा है। सीतारमण ने कहा, ‘‘ हम जिस परिस्थिति का सामना कर रहे हैं वह कोई अस्थायी व्यवधान नहीं बल्कि एक संरचनात्मक बदलाव है।’’

उन्होंने कहा कि वैश्विक व्यवस्था की नींव बदल रही है, क्योंकि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद उभरी दुनिया, जिसने वैश्वीकरण, खुले बाजारों और बहुपक्षीय सहयोग के विस्तार को जन्म दिया था, यह अब अतीत की बातें प्रतीत होती हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्तमान में बढ़ते व्यापार तनाव, उच्च शुल्क, बढ़ती वैश्विक नीति अनिश्चितता और जारी रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रही है। सीतारमण ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था कम निवेश, उच्च पूंजी लागत, अस्थिर ऊर्जा कीमतों और वृद्धि, स्थिरता एवं सततता के बीच तनाव का सामना कर रही है।

इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि स्थिरता कायम करने वाली शक्ति के रूप में भारत का उदय न तो आकस्मिक और न ही क्षणिक है…बल्कि, यह कारकों के एक शक्तिशाली संयोजन का परिणाम है। सीतारमण ने कहा कि पिछले एक दशक में सरकार ने राजकोषीय समेकन, पूंजीगत व्यय की गुणवत्ता में सुधार और मुद्रास्फीति के दबावों पर लगाम लगाने पर ध्यान केंद्रित किया है।

उन्होंने कहा, ‘‘ पिछले कई वर्ष से समग्र सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में उपभोग और निवेश की स्थिर हिस्सेदारी के साथ भारत की वृद्धि घरेलू कारकों पर दृढ़ता से टिकी हुई है। इससे समग्र विकास पर बाहरी झटकों का प्रभाव न्यूनतम रहता है। परिणामस्वरूप, भारतीय अर्थव्यवस्था जुझारू है और निरंतर वृद्धि कर रही है।’’

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