
Eminent Distorians’: भारतीय इतिहास से खिलवाड़ को उजागर करती उत्पल कुमार की नई किताब
नई दिल्ली, 22 मार्च । लेखक और पत्रकार उत्पल कुमार अपनी नई किताब ‘एमिनेंट डिस्टोरियंस : ट्विस्ट्स एंड ट्रुथ्स’ से इतिहास के कुछ नए और अनछुए पहलुओं के साथ पाठकों से रूबरू हो रहे हैं। इससे पहले उत्पल कुमार की किताब ‘Bharat Rising: dharma democracy diplomacy’ काफी चर्चा में रही है। नई किताब एमिनेंट डिस्टोरियंस में उत्पल कुमार ने कई ऐतिहासिक साक्ष्यों और किताबों के उद्धरणों के जरिए इतिहास के तथ्यों के साथ हुई छेड़छाड़ का वर्णन किया है।
उत्पल कुमार ने ‘इतिहास के साथ छेड़छाड़’ का संदेश किताब के नाम में ही दे दिया है। ‘Distorians’ का मतलब अंग्रेजी में ‘किसी घटना को तोड़-मरोड़कर पेश करने वाला’ होता है। उत्पल कुमार का तर्क है कि भारत के ‘प्रसिद्ध इतिहासकारों’ ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर परोसा है। नई किताब में उत्पल कुमार ने कई घटनाओं के जरिए यह बताने की कोशिश की है कि कैसे लोगों के सामने भारतीय इतिहास को गलत तरीके से परोसा गया है।
किताब की शुरुआत इंदिरा गांधी के समय की प्रसिद्ध टाइम कैप्सूल की घटना से करते हैं। इस घटना के जरिए वह उस समय के इतिहासकारों के दोहरे चरित्र का प्रमाण भी देते हैं। यह भी बताया गया है कि कैसे इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए एक इतिहास की किताब लिखवाई गई और उसे लाल किले में गड़वा दिया था। इस इतिहास की किताब में केवल इंदिरा गांधी और जवाहरलाल नेहरू का ही जिक्र मिलता है।
किताब में जिक्र है कि इतिहासकार बिपिन चंद्रा ने इंदिरा गांधी की लगाई गई इमरजेंसी का भी समर्थन किया था और जयप्रकाश नारायण को दोषी ठहराया गया था। अपनी किताब के पहले चैप्टर में ही उत्पल कुमार कहते हैं कि भारतीय वैदिक संस्कृति और हड़प्पा सभ्यता अलग-अलग ना हो कर एक ही सिक्के के दो पहलू थे। वह डिस्टोरियंस यानी गलत इतिहसकारों के उस सिद्धांत का भी खंडन करते हैं जिसमें आर्यों के आक्रमण या पलायन करके भारत आने की बात की गई है।
उत्पल कुमार कहते हैं कि ऐसे इतिहासकारों के पास इस बात का कोई भी पुख्ता प्रमाण नहीं है कि आर्य आक्रमणकारी थे या पलायन करके भारत आए थे। अपनी किताब के जरिए उत्पल कुमार भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विशाल भौगिलिक क्षेत्र औप फैलाव की बात भी करते हैं। उनका तर्क है कि भारतीय संस्कृति का फैलाव मध्य एशियाई देशों से लेकर जापान तक में रहा है।
उनका कहना है कि भले ही कुषाण, हूड़ या कनिष्क ने भारत के कुछ इलाकों पर हमले किए हों लेकिन सांस्कृतिक तौर पर वह भारतीय ही थे। इसके अलावा वह मौर्य काल और गु्प्त काल पर भी अपनी राय सामने रखते हैं। गुप्त काल के बारे में बात करते हुए कुमार कहते हैं कि वामपंथी इतिहासकार कहते हैं कि गुप्त काल भारत का स्वर्ण काल नहीं था बल्कि वह तब आएगा जब जाति व्यवस्था खत्म हो जाएगा। ऐसे इतिहासकारों मे कुमार इरफान हबीब के नाम को सबसे ऊपर रखते हैं।
कुमार कहते हैं कि ऐसे ही इतिहासकारों ने लिखा है कि कैसे भारतीय राजा बड़ी ही आसानी से मुगलों से पराजित हो गए। बल्कि उत्पल कुमार का कहना है कि भारतीय राजाओं ने बड़ी ही बहादुरी के साथ मुगलों से लडाई लड़ी है और कई मौकों पर उनको हराया भी है। कुमार कहते हैं कि सन 1100 में मोहम्मद कासिम के हमले से पहले भी भारत पर मुसलमानों ने कई सारे हमले किए और सभी में उनको हार का सामना करना पड़ा।
1857 की लड़ाई और भारत का स्वतंत्रता संग्राम
प्राचीन और मध्यकाल के इतिहास के साथ-साथ उत्पल कुमार 1857 की लड़ाई और भारत का स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र भी अंत में अपनी किताब में करते हैं। उनका कहना है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी की बहुत सीमित भूमिका रही है। उस समय के ऐसे इतिहासकार जो सरकार के करीब रहे उन्होंने सावरकर, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह जैसे आजादी के नायकों की भूमिका को बहुत कम करके सामने रखा है।
अपनी किताब के आखिरी हिस्से में उत्पल कुमार यह कहते हैं कि अभी भी भारत का जो इतिहास है वह असल इतिहास नही है। बल्कि वह भारत पर हमला करने वाले बाहरी आक्रमणकारियों का इतिहास रहा है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका अंग्रेजी शासन की रही है। लेकिन आजादी के बाद भी भारत के असल इतिहास को सामने लाने की कोई कोशिश नहीं की गई है।
एमिनेंट डिस्टोरियंस के जरिए उत्पल कुमार इन तथ्यों को सामने लाने की कोशिश करते हैं कि कैसे चंद इतिहासकारों ने भारत के असल इतिहास को कम करके आंका है और बाहरी आक्रमणकारियों को इतिहास का नायक सिद्ध किया है। अगर आप इतिहास को अलग और भारतीयता के चश्मे से देखने का इरादा रखते हैं तो यह किताब पढ़ी जा सकती है।