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दिल्ली हाई कोर्ट की बाबा रामदेव को नोटिस, एलोपैथी के खिलाफ भ्रामक बयानों से बचने की दी नसीहत

दिल्ली हाई कोर्ट की बाबा रामदेव को नोटिस, एलोपैथी के खिलाफ भ्रामक बयानों से बचने की दी नसीहत

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नई दिल्‍ली, 3 जून। कोरोनाकाल के दौरान पिछले माह एलोपैथी चिकित्सा पद्धति के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देने वाले बाबा रामदेव गुरुवार को आखिर दिल्ली हाई कोर्ट के निशाने पर आ गए। उच्च न्यायालय ने योग गुरु को नोटिस जारी करते हुए उन्हें नसीहत दी कि वह एलोपैथी को लेकर ऊलजुलूल बयानों से बचें। हालांकि अदालत ने इस मामले में मुकदमा दायर करने वाली दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) के उस अनुरोध को खारिज कर दिया, जिसमें बाबा रामदेव को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपत्तिजनक बयान देने या सामग्री प्रकाशित करने से रोकने की मांग की गई थी।

कोरोनिल का प्रचार करें, लेकिन ऐलोपैथी के खिलाफ ऐसे बयान न दें

हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान बाबा रामदेव से कहा, ‘आप कोरोनिल का प्रचार करें,  उसमें कोई दिक्कत नहीं, लेकिन एलोपैथी को लेकर ऐसे बयान देने से बचें।’ हाई कोर्ट ने बाबा रामदेव और अन्‍य से जवाब मांगा है। अदालत ने इसके अलावा ट्विटर, कुछ मीडिया चैनल सहित कई सोशल मीडिया संस्‍थाओं से भी जवाब-तलब किया है। इस मामले में अगली सुनवाई अब 13 जुलाई को होगी।

गौरतलब है कि दिल्ली में डॉक्टरों के निकाय डीएमए ने मुकदमें में बाबा रामदेव पर उनके  बयान के लिए एक रुपये का सांकेतिक नुकसान और बिना शर्त माफी की भी मांग की थी। लेकिन हाई कोर्ट ने डीएमए को मुकदमे की जगह जनहित याचिका दाखिल करने के लिए कहा है।

डॉक्टरों को भी नसीहत – समय बर्बाद न करें, महामारी का इलाज खोजें

दरअसल  मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट में लंबी और तीखी बहस हुई।  अदालत ने डीएमए से कहा, ‘आप लोगों को अदालत का समय बर्बाद करने की बजाय महामारी का इलाज खोजने पर समय बिताना चाहिए।’

हालांकि डीएमए ने अदालत की टिप्पणियों पर आपत्ति दर्ज कराई। उसने कहा, ‘रामदेव की टिप्पणी डीएमए के सदस्यों को प्रभावित कर रही है। वह डॉक्टरों के नाम बुला रहे हैं। वह कह रहे हैं कि यह विज्ञान (एलोपैथी) नकली है। रामदेव जीरो प्रतिशत मृत्यु दर के साथ कोविड के इलाज के रूप में कोरोनिल दवा का झूठा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यहां तक कि सरकार ने उनसे इसका विज्ञापन नहीं करने के लिए कहा है। इस बीच, उन्होंने  250 करोड़ रुपये की कोरोनिल दवा बेच दी।’

डीएमए के तर्क का अदालत ने तीखे अंदाज में जवाब दिया। कोर्ट का कहना था, ‘कल, मुझे लग सकता है कि होम्योपैथी नकली है। यह एक राय है। इसके खिलाफ मुकदमा कैसे दायर किया जा सकता है। भले ही हम मान लें कि वह (रामदेव) जो कह रहे हैं, वह गलत या भ्रामक है, जनहित के तहत मुकदमा इस तरह दायर नहीं किया जा सकता है। यह एक जनहित याचिका (पीआईएल) होनी चाहिए।’

नियमों के उल्लंघन पर काररवाई सरकार का काम
अदालत ने कहा, कहा, ‘अगर पतंजलि नियमों का उल्लंघन कर रहा है तो कार्रवाई सरकार को करनी है। आप मशाल क्यों लेकर चल रहे हैं? यह एक जनहित याचिका है, एक मुकदमे के रूप में। बेहतर होगा कि आप एक जनहित याचिका दायर करें कि उन्होंने इसे इलाज कहा और फिर इसे इम्युनिटी बूस्टर में बदल दिया और इस बीच लाखों लोगों ने इसे खरीदा।’

हाई कोर्ट ने कहा, ‘रामदेव को एलोपैथी में विश्वास नहीं है। उनका मानना है कि योग और आयुर्वेद से सब कुछ ठीक हो सकता है। वह सही या गलत हो सकते हैं, लेकिन यह अदालत नहीं कह सकती कि कोरोनिल एक इलाज है या नहीं। यह चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा किया जाना है। हालांकि बेवकूफ विज्ञान जैसे उनके शब्द गलत हो सकते हैं, लेकिन यह मुकदमे का कारण नहीं हो सकता।’

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