इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी – ‘महिलाओं द्वारा पॉक्सो और एससी/एसटी एक्ट का बेजा इस्तेमाल चिंताजनक’
प्रयागराज, 13 अगस्त। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने समाज में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) और एससी/एसटी एक्ट के बढ़ते दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस दिशा में बेहद गंभीरता से साथ विचार करने की आवश्यकता है कि अपराध की जद में निर्दोष को फंसाने के लिए इनका प्रयोग बढ़ता जा रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि पॉक्सो के साथ-साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) के तहत फर्जी शिकायतों और ऐसे कानूनी प्रावधानों का बढ़ता दुरुपयोग बेहद चिंताजनक है।
कई मामलों में महिलाएं पैसे हड़पने के लिए इसे बतौर हथियार इस्तेमाल कर रहीं
यौन अपराध के एक केस में आरोपित को जमानत देते हुए जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा, “पॉक्सो और एससी/एसटी एक्ट के तहत निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज करने के प्रकरण बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन इसमें सबसे दुर्भाग्यपूर्ण भाग्य यह है कि आजकल ज्यादातर मामलों में महिलाएं पैसे हड़पने के लिए इसे बतौर हथियार इस्तेमाल कर रही हैं, जिसे रोका जाना चाहिए।”
कोर्ट ने यह टिप्पणी आरोपित अजय यादव द्वारा अग्रिम जमानत मांगे जाने के केस में की थी। आरोपित पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार), 313, 504, 506 और पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत 2011 में उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले में एफआईआर दर्ज हुई थी।
राज्य व केंद्र सरकारों को इस गंभीर मुद्दे के प्रति संवेदनशील होना चाहिए
जस्टिस शेखर कुमार यादव ने 10 अगस्त के आरोपित अजय यादव को जमानत देते हुए अपने आदेश में कहा, ‘मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि राज्य और यहां तक कि भारत सरकार को भी इस गंभीर मुद्दे के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।’
शिकायत फर्जी पाए जाने पर पीड़िता के खिलाफ आपराधिक काररवाई शुरू की जाए
इसके साथ जस्टिस यादव ने अपने आदेश में कहा कि यदि जांच में यह पाया जाता है कि पीड़िता द्वारा आरोपित अजय यादव के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत झूठी है तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में दिये प्रावधानों के तहत पीड़िता के खिलाफ आपराधिक काररवाई शुरू की जाए।
शिकायत निराधार पाए जाने की सूरत में वित्तीय मुआवजा भी वसूला जाए
जस्टिस शेखर यादव ने अपने आदेश में यह भी कहा कि शिकायत निराधार पाए जाने की सूरत में राज्य द्वारा शिकायतकर्ता को दिया गया कोई भी वित्तीय मुआवजा वसूला जाए। कोर्ट ने जांच अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि यौन अपराधों के वास्तविक पीड़ितों को जरूर न्याय मिले।
कोर्ट में आरोपित अजय यादव की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि उन्हें झूठे केस में फंसाया गया है और जैसा कि एफआईआर में घटना के बारे में उल्लेख किया गया है, वैसी कोई घटना कभी नहीं हुई । इसके साथ ही आरोपित के वकील ने पीड़िता के बयानों में विरोधाभासी बातों पर प्रकाश डाला और बताया कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान ‘सहमति’ के साथ शारीरिक संबंध बनाने की ओर इशारा कर रहे हैं।