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CJI गवई ने बुलडोजर एक्शन पर फिर उठाए सवाल, कहा – कानून से चलती है भारतीय न्याय व्यवस्था, बुलडोजर शासन से नहीं

CJI गवई ने बुलडोजर एक्शन पर फिर उठाए सवाल, कहा – कानून से चलती है भारतीय न्याय व्यवस्था, बुलडोजर शासन से नहीं

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नई दिल्ली, 3 अक्टूबर। भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई ने 10 दिनों के भीतर दूसरी बार बुलडोजर एक्शन पर सवाल उठाते हुए कहा है कि भारतीय न्याय व्यवस्था बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन से संचालित होती है। हालांकि इस बार सीजेआई गवई ने भारत से बाहर बुलडोजर एक्शन पर टिप्पणी की है।

दरअसल, सीजेआई गवई तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर मॉरीशस में हैं, जहां उन्होंने शुक्रवार को यूनिवर्सिटी ऑफ मॉरीशस में ‘सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन’ विषय पर सर मौरिस रॉल्ट स्मृति व्याख्यान 2025 का उद्घाटन करते हुए ये बातें कहीं। इस दौरान उन्होंने ‘बुलडोजर न्याय’ की निंदा करने वाले अपने ही फैसले का उल्लेख किया। प्रख्यात न्यायविद सर मौरिस रॉल्ट 1978 से 1982 तक मॉरीशस के प्रधान न्यायाधीश थे।

कानून के शासन का सिद्धांत और सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसकी व्यापक व्याख्या पर प्रकाश डालते हुए चीफ जस्टिस गवई ने कहा, ‘इस फैसले ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि भारतीय न्याय व्यवस्था बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन से संचालित होती है।’

बुलडोजर न्याय कानून का उल्लंघन

उल्लेखनीय है कि ‘बुलडोजर न्याय’ मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कथित अपराधों को लेकर अभियुक्तों के घरों को गिराना कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करता है, कानून के शासन का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि यह भी माना गया कि कार्यपालिका अन्य भूमिका नहीं निभा सकती।

विभिन्न ऐतिहासिक फैसलों का उल्लेख

इस मौके पर मॉरीशस के राष्ट्रपति धर्मबीर गोखूल, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम और प्रधान न्यायाधीश रेहाना मुंगली गुलबुल आदि भी उपस्थित थे। अपने संबोधन में, प्रधान न्यायाधीश ने 1973 के केशवानंद भारती मामला सहित सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न ऐतिहासिक फैसलों का उल्लेख किया।

सीजेआई गवई ने कहा कि सामाजिक क्षेत्र में, ऐतिहासिक अन्याय के निवारण के लिए कानून बनाए गए हैं और हाशिए पर पड़े समुदायों ने अपने अधिकारों का दावा करने के लिए अक्सर इनका और कानून के शासन की भाषा का सहारा लिया है। उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक क्षेत्र में, कानून का शासन सुशासन और सामाजिक प्रगति के मानक के रूप में कार्य करता है, जो कुशासन और अराजकता के बिल्कुल विपरीत है…।’

महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. आंबेडकर के योगदान का उल्लेख करते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि उनकी दूरदर्शिता ने प्रदर्शित किया कि भारत में ‘कानून का शासन केवल नियमों का समूह नहीं है। उन्होंने हाल के उल्लेखनीय फैसलों का उल्लेख किया, जिनमें मुसलमानों में तीन तलाक की प्रथा को समाप्त करने वाला फैसला भी शामिल है। जस्टिस गवई ने उस फैसले के महत्व पर भी जोर दिया, जिसमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है।

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