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सीजेआई चंद्रचूड़ की सीख – बोलने की हिम्मत देता है भारतीय संविधान, चुप रहने से समस्या का समाधान नहीं

सीजेआई चंद्रचूड़ की सीख – बोलने की हिम्मत देता है भारतीय संविधान, चुप रहने से समस्या का समाधान नहीं

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नागपुर, 11 जनवरी। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को छात्रों और लॉ ग्रेजुएट्स को सलाह दी कि चुप रहने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है और इस पर चर्चा करना और बोलना जरूरी है।

महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के पहले दीक्षांत समारोह में संबोधन

महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए सीजेआई ने कहा कि भारतीय संविधान एक ऐसा दस्तावेज है, जो स्वशासन, गरिमा और स्वतंत्रता का उत्पाद है। यह बोलने की हिम्मत देता है। उन्होंने कहा, ‘इस नेक पेशे (कानून के) को अपनाते हुए सभी को भारतीय संविधान के मूल्यों को बनाए रखना चाहिए। यह नहीं भुलाया जा सकता कि संविधान ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय लाने की जिम्मेदारी दी है। हमें इन अधिकारों के लिए बोलना होगा।’

न्याय का लक्ष्य हासिल करने के लिए निडर होकर बदलाव की आवाज उठाएं युवा वकील

पूर्व सीजेआई शरद बोबडे, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज भूषण गवई, बॉम्बे हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय जीए गापुरवाला, वीसी विजेंद्र कुमार और कई कानूनी दिग्गजों की मौजूदगी में जस्टिस चंद्रचूड़ ने युवा वकीलों से न्याय के लक्ष्य को हासिल करने के लिए निडर होकर बदलाव की आवाज उठाने को कहा। उन्होंने कहा, ‘यथास्थिति को बनाए रखने के लिए एक लाख बहाने खोजना आसान है क्योंकि कानून अपनी प्रकृति से सुस्त है, लेकिन जब आप चौराहे पर हों तो कम यात्रा करने वाले रास्ते को चुनने में संकोच न करें।’

भेदभाव और पुरातन प्रथाओं को दूर करने के लिए बहुत प्रयास की जरूरत

समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले अपने फैसले का हवाला देते हुए, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि बहुत कुछ हासिल किया गया है, लेकिन सभी प्रकार के भेदभाव और पुरातन प्रथाओं को दूर करने के लिए बहुत कुछ हासिल करने की जरूरत है, जो समकालीन समाज में टिकाऊ नहीं हैं।

लॉ ग्रेजुएट्स को अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में संविधान को मार्गदर्शक के रूप में मानने का आह्वान करते हुए सीजेआई ने उन्हें संस्थापक द्वारा निर्धारित उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करने का आह्वान किया।

बाबासाहेब अंबेडकर का उदाहरण दिया

उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का उदाहरण देते हुए कहा कि असफलता और विपरीत परिस्थितियों से निराश न हों। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि लाखों लोगों के लिए एक आइकन बनने के लिए सभी कठिन बाधाओं को कैसे बाबासाहेब ने पार किया।

सीजेआई ने कहा, ‘भारतीय संविधान की सफलता को आम तौर पर स्पेक्ट्रम के दो बिल्कुल छोरों से देखा जाता है। कुछ लोग हमारे संविधान की पूरी तरह से प्रशंसात्मक शब्दों में बात करते हैं, जबकि अन्य इसकी सफलता के बारे में निंदक हैं। वास्तविकता न तो यहां है और न ही वहां है। एक सरकारी दस्तावेज के रूप में, संविधान की क्षमता सूचनात्मक है। संविधान ने अधिक न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की दिशा में जबर्दस्त कदम उठाए हैं।’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘लेकिन अब भी काम पूरा करना बाकी है… गहरी जड़ें वाली असमानता, जिसने आजादी के समय हमारे समाज को खंडित कर दिया था, आज भी बनी हुई हैं। इस असमानता को एक दूर करने के लिए सबसे अच्छा और पक्का तरीका संविधान की भावना को हमारे समाज में आंतरिक रूप से लागू करना है।’

जस्टिस और चैरिटी के बीच करना चाहिए अंतर

उन्होंने यह भी कहा कि वकीलों को जस्टिस और चैरिटी के बीच अंतर करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हम चैरिटी करके किसी का दुख पलभर के लिए मिटा सकते हैं, लेकिन ऐसा करके हम उसे उसके न्याय के अधिकार से वंचित कर देते हैं। इसलिए, हमारी लड़ाई सिर्फ चैरिटी नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए होनी चाहिए कि न्याय हो।’

 

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