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शराबबंदी कानून में ढील पर बोले सीएम नीतीश – शराब पीने वाले भारतीय नहीं, महापापी और महाअयोग्य हैं

शराबबंदी कानून में ढील पर बोले सीएम नीतीश – शराब पीने वाले भारतीय नहीं, महापापी और महाअयोग्य हैं

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पटना, 31 मार्च। बिहार में जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत पर आलोचनाओं का सामना कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि शराब पीने वाले लोग महापापी होते हैं और जहरीली शराब पीकर मरने वालों को राहत पहुंचाने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है।

उल्लेखनीय है कि बिहार विधानसभा ने बुधवार को मद्य निषेध एवं उत्पाद शुल्क संशोधन विधेयक, 2022 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। इसके तहत राज्य में पहली बार शराबबंदी कानून को कम सख्त बनाया गया है।

संशोधित कानून के अनुसार, पहली बार अपराध करने वालों को जुर्माना जमा करने के बाद ड्यूटी मजिस्ट्रेट से जमानत मिल जाएगी और यदि अपराधी जुर्माना राशि जमा करने में सक्षम नहीं है तो उसे एक महीने की जेल का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि जब किसी को शराबबंदी कानूनों का उल्लंघन करते हुए पुलिस पकड़ेगी तो आरोपित को उस व्यक्ति का नाम बताना होगा, जिसने शराब उपलब्ध कराई।

शराब पीकर मरने वालों को राहत पहुंचाने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि जो बापू जी की बात को नहीं मानते हैं… वे हिन्दुस्तानी नहीं हैं। वो महापापी और महाअयोग्य हैं और उनके लिए कोई सहानुभूति नहीं है। उन्होंने कहा कि लोग यह जानते हुए भी कि शराब का सेवन हानिकारक है, शराब का सेवन करते हैं और इस प्रकार, वे इसके परिणामों के लिए खुद जिम्मेदार हैं, राज्य सरकार नहीं। उन्होंने कहा कि शराब पीकर मरने वालों को राहत पहुंचाने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है।

नीतीश कुमार ने कहा, ‘दुनियाभर में शराब का कितना बुरा असर है। राज्य में शराबबंदी के कारण लोग अब सब्जी खरीद रहे हैं। पहले राज्य में सब्जी का इतना उत्पादन नहीं होता था। जो पहले पैसे शराब पीने में बर्बाद करता था, वो अब पैसा बर्बाद नहीं करेगा और यही सब काम में लाएगा। देखिए उनके घर में कितना अच्छा भोजन होगा। जरा महिलाओं से पूछें।’

नीतीश सरकार ने 2016 में लागू किया था शराबबंदी कानून

ज्ञातव्य है कि नीतीश कुमार सरकार ने बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम के तहत अप्रैल 2016 में राज्य में शराबबंदी लागू कर दी थी। प्रतिबंध के बाद से बड़ी संख्या में लोग केवल शराब पीने के आरोप में जेलों में बंद हैं। उल्लंघन करने वालों में अधिकतर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और गरीब लोगों में से हैं।

भारत के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने भी पिछले साल कहा था कि 2016 में बिहार सरकार के शराबबंदी जैसे फैसलों ने अदालतों पर भारी बोझ डाला है। अदालतों में ऐसे तीन लाख मामले लंबित हैं। इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने शराबबंदी कानून में तनिक ढील देने का फैसला किया है।

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