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कोवैक्सीन से दुष्प्रभाव का दावा करने वाले बीएचयू के शोधार्थी बुरे फंसे, ICMR ने दी नोटिस

कोवैक्सीन से दुष्प्रभाव का दावा करने वाले बीएचयू के शोधार्थी बुरे फंसे, ICMR ने दी नोटिस

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वाराणसी, 19 मई। कोरोनारोधी टीके – कोविशील्ड की भांति कोवैक्सीन से पड़ने वाले दुष्प्रभाव का दावा करने वाले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के शोधार्थी बुरे फंस गए हैं और उन पर काररवाई की तलवार लटक गई है। दरअसल, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने बीएचयू वैज्ञानिकों के शोध पर कड़ी आपत्ति जताई है और उन्हें नोटिस भेजकर जवाब मांगा है।

शोधार्थियों को दी गई नोटिस में कहा गया है कि ICMR किसी भी रूप में इस अध्ययन या इसकी रिपोर्ट से नहीं जुड़ा है। अध्ययन करने वालों से पूछा गया है कि क्यों न इस मामले में उनके विरुद्ध कानूनी और प्रशासनिक काररवाई की जाए।

उल्लेखनीय है बीएचयू के फार्माकोलॉजी और जीरियाट्रिक विभाग की ओर से पिछले दिनों किए गए अध्ययन में बताया गया था कि कोवैक्सीन लेने वाले किशोरों और वयस्कों में इसका काफी दुष्प्रभाव हुआ है। अध्ययन के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया कि 30 फीसदी से ज्यादा लोगों को इससे स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी झेलनी पड़ी। इस रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद काफी खलबली मची और लोग सशंकित होने लगे।

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प्रो. शुभ शंख चक्रवर्ती और डॉ. उपिंदर कौर ने किया था यह शोध

यह अध्ययन जीरियाट्रिक विभागाध्यक्ष प्रो. शुभ शंख चक्रवर्ती और फार्माकॉलोजी विभाग की डॉ. उपिंदर कौर ने किया था। इसमें बताया था कि कोवैक्सीन के प्रभाव से लोगों में स्ट्रोक, खून का थक्का जमना, बाल झड़ना, त्वचा की खराबी जैसी समस्याएं हो रही हैं।

ICMR महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने भेजी है नोटिस

फिलहाल आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने शनिवार को प्रो. चक्रवर्ती और डॉ. कौर को भेजी नोटिस में स्पष्ट तौर पर कहा है कि इस रिपोर्ट से परिषद से जुड़ा हिस्सा तत्काल हटाया जाए और इस संदर्भ में खेद प्रकाश किया जाए।

रिपोर्ट से परिषद से जुड़ा हिस्सा हटाएं और खेद प्रकाश करें

डॉ. बहल ने यह भी कहा है कि इस अध्ययन के लिए आईसीएमआर से कोई स्वीकृति नहीं ली गई थी। यह भी संज्ञान में आया है कि पूर्व में प्रकाशित कुछ रिपोर्टों में भी आईसीएमआर को गलत तरीके से शामिल कर लिया गया था। ऐसी स्थिति में यह बताएं कि क्यों न परिषद की ओर से आपके विरुद्ध काररवाई की जाए।

आईसीएमआर ने चार सवाल उठाए

  1. रिपोर्ट में कहीं इस बात की कोई स्पष्टता नहीं है कि जिन लोगों ने वैक्सीन लगाई और जिन्होंने नहीं लगाई, उनके बीच तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। इस लिहाज से इस रिपोर्ट को कोविड वैक्सिनेशन से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।
  2. अध्ययन से यह नहीं पता चलता कि जिन लोगों में भी वैक्सीन के बाद कुछ हुआ, उन्हें पहले से कोई ऐसी परेशानी रही हो। इसका जिक्र नहीं है। ऐसे में यह कह पाना लगभग असंभव है कि उन्हें जो भी परेशानी हुई, उसकी वजह वैक्सिनेशन थी। जिन लोगों को अध्ययन में शामिल किया गया, उनके बारे में आधारभूत जानकारियों का रिपोर्ट में अभाव है।
  3. जिस एडवर्स इवेंट्स ऑफ स्पेशल इंटेरेस्ट (एईएसआई) का रिपोर्ट में हवाला दिया गया है, उससे अध्ययन के तरीके मेल नहीं खाते।
  4. अध्ययन में शामिल लोगों से वैक्सिनेशन के एक वर्ष बाद टेलीफोन के जरिये आंकड़े इकट्ठा किए गए। उन्होंने जो बताया, उसका क्लीनिकल या फिजीशियन से सत्यापन किए बिना रिपोर्ट तैयार कर दी गई। इससे लगता है कि यह सबकुछ पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किया गया है।

कुलपति को भेजी गई रिपोर्ट, जांच के लिए कमेटी गठित

इस बीच कोवैक्सीन पर रिपोर्ट के मामले में बीएचयू के कुलपति प्रो. सुधीर जैन ने भी चिकित्सा विज्ञान संस्थान (IMS) के निदेशक प्रो. एसएन संखवार से रिपोर्ट मांगी थी। इस पर निदेशक ने उन्हें रिपोर्ट भी सौंप दी है। निदेशक ने भी माना है कि शोध जल्दबाजी में किया गया है। इसके साथ ही उन्होंने इस शोध की जांच के लिए आईएमएस डीन रिसर्च प्रो. गोपालनाथ के नेतृत्व में चार सदस्यीय कमेटी गठित की है। कमेटी की जांच रिपोर्ट आने के बाद स्थिति और स्पष्ट होगी।

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