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भोपाल गैस त्रासदी: पीथमपुर पहुंचा जहरीला कचरा, पुलिस बल तैनात, नागरिकों का विरोध जारी

भोपाल गैस त्रासदी: पीथमपुर पहुंचा जहरीला कचरा, पुलिस बल तैनात, नागरिकों का विरोध जारी

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इंदौर, 2 जनवरी। भोपाल गैस त्रासदी के 40 वर्ष बाद यूनियन कार्बाइड कारखाने का 337 टन जहरीला कचरा बृहस्पतिवार तड़के इंदौर के पास स्थित पीथमपुर की एक औद्योगिक अपशिष्ट निपटान इकाई में पहुंचा दिया गया। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। अधिकारियों ने बताया कि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में ‘‘ग्रीन कॉरिडोर’’ बनाकर जहरीले अपशिष्ट को 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में भोपाल से 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र की अपशिष्ट निपटान इकाई में भेजा गया।

अधिकारियों ने बताया कि एक निजी कंपनी द्वारा संचालित इस इकाई के आस-पास बड़ी तादाद में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। इस बीच, स्थानीय नागरिक समूहों ने यूनियन कार्बाइड कारखाने के जहरीले कचरे को पीथमपुर में नष्ट नहीं किए जाने की मांग को लेकर इस औद्योगिक कस्बे में विरोध प्रदर्शन जारी रखने की घोषणा की है। करीब 1.75 लाख की आबादी वाले पीथमपुर में शुक्रवार को बंद का आह्वान भी किया गया है। नागरिकों ने जहरीले कचरे को पीथमपुर में नष्ट किए जाने से इंसानी आबादी और पर्यावरण पर दुष्प्रभावों की आशंका जताई है।

प्रदेश सरकार ने इस कचरे के सुरक्षित निपटान के पक्के इंतजामों का भरोसा दिलाते हुए हुए इन आशंकाओं को खारिज किया है। पीथमपुर, धार लोकसभा क्षेत्र में आता है। इस क्षेत्र की लोकसभा में नुमाइंदगी करने वाली सावित्री ठाकुर केंद्र सरकार में महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री हैं। ठाकुर ने बताया,‘‘हम जन प्रतिनिधि राज्य के मुख्यमंत्री मोहन यादव तक पीथमपुर के नागरिकों का पक्ष पहुंचाएंगे और मुख्यमंत्री से उचित कदम उठाए जाने का आग्रह किया जाएगा।’’

पीथमपुर, राज्य के प्रमुख शहर इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर है। इंदौर के नागरिक भी यूनियन कार्बाइड कारखाने का जहरीला कचरा पीथमपुर में जलाए जाने का विरोध कर रहे हैं। इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने मांग की है कि इस कचरे को पीथमपुर में नष्ट किए जाने की योजना पर फिर से विचार किया जाना चाहिए और इस सिलसिले में राज्य सरकार की ओर से मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर की जानी चाहिए।

भोपाल में दो और तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड कारखाने से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का रिसाव हुआ था। इससे कम से कम 5,479 लोग मारे गए थे और हजारों लोग अपंग हो गए थे। इसे दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है।

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने तीन दिसंबर को इस कारखाने के जहरीले कचरे को स्थानांतरित करने के लिए चार सप्ताह की समय-सीमा तय की थी और सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर उसके निर्देश का पालन नहीं किया गया, तो अवमानना की कार्यवाही की जाएगी।

राज्य के गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में शुरुआत में कचरे के कुछ हिस्से को जलाकर देखा जाएगा और इसके ठोस अवशेष (राख) की वैज्ञानिक जांच की जाएगी ताकि पता चल सके कि इसमें कोई हानिकारक तत्व तो बचा नहीं रह गया है। उन्होंने बताया कि भस्मक में कचरे के जलने से निकलने वाले धुएं को चार स्तरों वाले विशेष फिल्टर से गुजारा जाएगा ताकि आस-पास की वायु प्रदूषित न हो और इस प्रक्रिया के पल-पल का रिकॉर्ड रखा जाएगा।

सिंह ने बताया कि कचरे के भस्म होने और हानिकारक तत्वों से मुक्त होने के बाद इसके ठोस अवशेष (राख) को दो परतों वाली मजबूत ‘मेम्ब्रेन’ (झिल्ली) से ढक कर ‘लैंडफिल साइट’ में दफनाया जाएगा ताकि यह अपशिष्ट किसी भी तरह मिट्टी और पानी के संपर्क में न आ सके। सिंह ने बताया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की निगरानी में विशेषज्ञों की एक टीम इस प्रक्रिया को अंजाम देगी।

कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने दावा किया है कि 2015 के दौरान पीथमपुर में परीक्षण के तौर पर यूनियन कार्बाइड के 10 टन कचरे को नष्ट किया गया था जिसके बाद आस-पास के गांवों की मिट्टी, भूमिगत जल और जल स्रोत प्रदूषित हो गए। सिंह ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि 2015 के परीक्षण की रिपोर्ट और सभी आपत्तियों की जांच के बाद ही पीथमपुर में इस कचरे के निपटान का फैसला किया गया है और चिंता की कोई बात नहीं है।

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