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पीएम मोदी की वाराणसी यात्रा से पहले कांग्रेस ने पूछे 9 सवाल, नमामि गंगे योजना में लगाया भ्रष्टाचार का आरोप

पीएम मोदी की वाराणसी यात्रा से पहले कांग्रेस ने पूछे 9 सवाल, नमामि गंगे योजना में लगाया भ्रष्टाचार का आरोप

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नई दिल्ली, 18 जून। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के पहले वाराणसी दौरे को लेकर निशाना साधा है और पार्टी महासचिव जयराम नरेश ने एक्स पर एक लंबी पोस्ट लिखकर कई सवाल पूछे हैं और आरोप लगाए हैं। जयराम नरेश ने अपनी पोस्ट में कहा है, ‘प्रधानमंत्री फिर से वाराणसी का दौरा कर रहे हैं। ये वाराणसी पर केंद्रित नौ सवाल हैं, जो हमने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान उनसे पूछे थे। हम आज उन्हें फिर से याद दिलाना चाहते हैं।’

  1. 20,000 करोड़ रुपये के बावजूद भी गंगा भारत की सबसे प्रदूषित नदी क्यों है?

नरेंद्र मोदी ने गंगा नदी में पानी की गुणवत्ता में सुधार के वादे के साथ 2014 में नमामि गंगे योजना शुरू की थी। इसके तहत 2014 और 2019 के बीच 20,000 करोड़ के खर्च को मंजूरी दी गई थी और 2021 तक 815 नए सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) बनाए या प्रस्तावित किए गए। जल शक्ति मंत्रालय का दावा है कि नदी की स्थिति में काफ़ी सुधार हुआ है, लेकिन जैसा कि इस सरकार के मामले में अक़्सर होता है, वह दावा भी झूठा निकला। संकट मोचन फाउंडेशन ने पाया कि सुधार के बजाय, गंगा में पानी की गुणवत्ता वास्तव में लगातार ख़राब हो रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी पाया कि पानी की गुणवत्ता उनके मानकों के अनुरूप नहीं है।

जल शक्ति मंत्रालय का दावा है कि नए एसटीपी ठीक काम कर रहे हैं। लेकिन आईआईटी वाराणसी के एक प्रोफेसर ने कहा कि सरकार की योजनाएं पूरी तरह से ‘फर्जी’ थीं। इसके अलावा, 2017 के शुरुआत में, परियोजना की एक सीएजी ऑडिट रिपोर्ट में ‘वित्तीय प्रबंधन, कार्यान्वयन और निगरानी में खामियों’ का उल्लेख किया गया था। इस स्थिति को और बदतर बनाने के लिए, एसटीपी के ठेके उन कंपनियों को दिए गए हैं जिनका भाजपा से गहरा संबंध है। 2017 में, पूर्व भाजपा सांसद सुभाष चंद्रा की अध्यक्षता वाली कंपनी को 150 करोड़ से अधिक का एसटीपी कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था, जिसका सीवेज उपचार में काम करने का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

एक अन्य संयंत्र अडानी समूह द्वारा संचालित है, और 5 करोड़ वैल्यू का ‘वैज्ञानिक’ अध्ययन का ठेका पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इंस्टीट्यूट को दिया गया है। पिछले वर्ष केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगा को भारत की सबसे प्रदूषित नदी घोषित किया था। ऐसे में एक तिहाई प्रधानमंत्री को स्पष्ट करना चाहिए कि उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल की शुरुआत में देश के लोगों से किए गए सबसे महत्वपूर्ण वादों में से एक को कैसे पूरा किया है?

  1. 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान वाराणसी में 33 उम्मीदवारों के नामांकन क्यों खारिज कर दिए गए थे?

2024 लोकसभा चुनाव के दौरान वाराणसी लोकसभा सीट के लिए केवल सात उम्मीदवारों के नामांकन पत्र स्वीकार किए गए जबकि 2019 में 26 और 2014 में 42 किए गए थे। जिस दिन एक तिहाई प्रधानमंत्री ने अपना नामांकन दाखिल किया था, 33 अन्य नामांकन ख़ारिज कर दिए गए। जिन उम्मीदवारों के नामांकन खारिज कर दिए गए, उन्होंने खुलासा किया है कि चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कई मौकों पर प्रक्रियाओं का खुलेआम उल्लंघन किया और जान बूझकर नामांकन प्रक्रिया में बाधा डाली।

भारतीय चुनाव आयोग की हैंडबुक में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अधिकारियों को संभावित उम्मीदवारों को समय पर शपथ लेने की सलाह देनी चाहिए, कई आवेदकों को कभी भी शपथ लेने की सलाह नहीं दी गई, और जिन्होंने अधिकारियों से शपथ दिलाने का अनुरोध किया, उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। उम्मीदवारों को भी सामान्य से अधिक समय तक प्रतीक्षा करना पड़ा, उनके हलफनामों को मनमाने ढंग से खारिज कर दिया गया। प्रक्रिया पूरी होने तक उनमें से आठ ने आरोप लगाया कि प्रक्रिया में धांधली हुई थी। क्या नरेंद्र मोदी ने यह जानते हुए धांधली करने का प्रयास किया कि यह चुनाव उनके लिए कठिन था?

  1. क्यों BHU के कार्डियोलॉजी विभाग में 47 में से 41 बिस्तर पिछले दो वर्षों से इस्तेमाल में नहीं हैं?

कार्डियोलॉजी के मरीजों के लिए बेड की कमी और बीएचयू अस्पताल के कुप्रबंधन के विरोध में पिछले महीने तक बीएचयू के कार्डियोलॉजी के प्रमुख डॉ. ओमशंकर भूख हड़ताल पर थे। कार्डियोलॉजी विभाग में 47 में से 41 बिस्तर पिछले दो वर्षों से इस्तेमाल में नहीं हैं, जिससे हजारों गरीब मरीजों का इलाज़ नहीं हो पा रहा है। चिकित्सा अधीक्षक को इन बिस्तरों के आवंटन का अधिकार भी नहीं है। लापरवाही के कारण डॉ. ओमशंकर को अपनी आवाज उठाने के लिए भूख हड़ताल पर जाने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा? क्या इसी तरह प्रधानमंत्री की ‘डबल-अन्याय’ सरकार उत्तर प्रदेश के लोगों की सेवा कर रही है?

  1. BHU में महिलाओं के खिलाफ यौन शोषण के मामले में भाजपा के IT सेल के सदस्यों पर एक्शन होगा?

नवम्बर, 2023 में भाजपा के आईटी सेल के सदस्यों द्वारा बीएचयू की एक छात्रा का यौन उत्पीड़न किया गया था। इसके अपराधी फि मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए प्रचार करने चले गए। इन लोगों के भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से संबंध हैं, जिनमें जेपी नड्डा, सीएम योगी, अनुराग ठाकुर और खुद पीएम शामिल हैं। वे महिलाओं के उत्पीड़न के आरोपित उन भाजपा नेताओं की लंबी सूची में शामिल हैं – जिनमें बृज भूषण सिंह, प्रज्वल रेवन्ना और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल भी हैं। एक तिहाई प्रधानमंत्री इन आरोपितों की रक्षा करते हुए ‘नारी शक्ति’ की बातें कैसे कर सकते हैं? क्या मोदी के भारत में महिलाएं कभी सुरक्षित रहेंगी?

  1. वाराणसी पोर्ट क्यों फेल हुआ? अब इसे अडानी को क्यों बेचा जा रहा है?

2019 की शुरुआत में वाराणसी पोर्ट का उद्घाटन किया गया था। इसमें हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए और 3.55 मिलियन मीट्रिक टन कार्गो हैंडलिंग का अनुमान था। लेकिन मार्च 2020 तक, यहां 0.008% से भी कम कार्गो हैंडलिंग हो रहा था! सबसे पहले तो वाराणसी के लोगों को बताया गया कि यह परियोजना उनके लिए ‘गिफ्ट’ है। लेकिन इसके लिए फंड तो जनता के टैक्स के पैसे से आया – किसी को उसी के पैसे से गिफ्ट दिया जाता है क्या, वो भी ऐसा घटिया जो किसी काम का न हो? 2021 में डबल अन्याय सरकार ने अपनी इस विफलता का निजीकरण करने का निर्णय लिया और किसी को आश्चर्य नहीं हुआ कि इसके लिए अडानी पोर्ट्स एकमात्र बोली लगाने वाला था। प्रधानमंत्री हर एक राष्ट्रीय संसाधन को अडानी को सौंपने के लिए इतने उतावले क्यों हैं? इस बंदरगाह की पूर्ण विफलता और इसमें धन के बंदरबांट की कोई जांच क्यों नहीं की जा रही है?

  1. प्रधानमंत्री वाराणसी में एक भी नए स्कूल या अस्पताल खोलने में क्यों विफल रहे?

10 साल तक सांसद और प्रधानमंत्री रहने के बाद वाराणसी को एक भी नया सरकारी अस्पताल नहीं मिला। न ही इसे एक भी नया जवाहर नवोदय विद्यालय या केंद्रीय विद्यालय मिला है। पिछले दशक में, ज़िले की जनसंख्या में अनुमानित रूप से 15-20%, या 6 लाख नए निवासियों की वृद्धि हुई होगी। जनसंख्या में हुई इस वृद्धि के लिए आवश्यक नए स्कूल और अतिरिक्त हॉस्पिटल बेड्स कहां हैं? एक तिहाई प्रधानमंत्री ने अपने मतदाताओं की इन बुनियादी जरूरतों की उपेक्षा क्यों की है?

  1. वाराणसी में मैला ढोने के कारण 25 लोगों की जान क्यों गई?

10 साल तक प्रधानमंत्री के सांसद रहने के बाद भी वाराणसी के सीवर और नालों की स्थिति ठीक नहीं है। वाराणसी में स्थानीय लोगों की रिपोर्ट है कि मैला ढोने की कुप्रथा के कारण 25 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। स्वच्छ भारत योजना शुरू करने के 10 साल बाद भी प्रधानमंत्री मोदी अपने खुद के निर्वाचन क्षेत्र में मैला ढोने की प्रथा को खत्म क्यों नहीं कर पाए। शायद यह आश्चर्य की बात न हो – अपनी पुस्तक ‘कर्मयोग’ में मोदी जी ने मैला ढोने की प्रथा को उचित ठहराया है और इसे वाल्मीकि समुदाय के लिए आध्यात्मिक कर्म बताया था। क्या एक तिहाई प्रधानमंत्री बता सकते हैं कि उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र में 25 मैला ढोने वालों के परिवारों के साथ अन्याय क्यों हुआ? क्या भाजपा कभी इस संकट से छुटकारा दिलाने और परिवारों को उनके नुकसान का मुआवजा देने की योजना बनाएगी?

  1. प्रधानमंत्री ने वाराणसी के उन गांवों को उनके हाल पर क्यों छोड़ दिया, जिन्हें उन्होंने ‘गोद लिया था?

वाराणसी शहर के बाहर आठ गांव हैं, जिन्हें एक तिहाई प्रधानमंत्री द्वारा ‘गोद लिए जाने’ का दुर्भाग्य प्राप्त हुआ है। मार्च 2024 की ग्राउंड रिपोर्ट में पाया गया कि ‘स्मार्ट स्कूल’, स्वास्थ्य सुविधाओं एवं आवास के बड़े-बड़े वादों के बावजूद, उन गांवों में 10 वर्षों में कोई प्रगति नहीं हुई है। डोमरी गांव में लोगों के पास पक्के आवास तक नहीं है। नागेपुर गांव की सड़कें बेहद घटिया हैं। जोगापुर और जयापुर में दलित समुदायों के पास न तो शौचालय है और न ही पानी। परमपुर गांव तो लगता है जैसे ‘नल जल योजना’ से पूरी तरह छूट गया है। एक तिहाई प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गोद लिए गए गांवों की स्थिति हमें उनकी सेवा भावना के बारे में बहुत कुछ बताती है। एक तिहाई प्रधानमंत्री ने अपने ‘गोद लिए हुए’ गांवों को क्यों छोड़ दिया है? क्या यही ‘मोदी की गारंटी’ का असली रूप है?

  1. प्रधानमंत्री वाराणसी में महात्मा गांधी की विरासत को नष्ट करने पर क्यों तुले हुए हैं?

यह तो सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री की विचारधारा गांधी की नहीं, गोडसे की है। उन्होंने हमारे राष्ट्रपिता के प्रति अपनी नफरत को इस हद तक बढ़ा दिया है कि उन्होंने आचार्य विनोभा भावे द्वारा शुरू किए गए और डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री और जयप्रकाश नारायण जैसी हस्तियों से जुड़े सर्व सेवा संघ को नष्ट कर दिया। 1955 से देश सेवा के क्षेत्र में काम में लगा सर्व सेवा संघ, काशी रेलवे स्टेशन के क़रीब 13 एकड़ भूमि पर चल रहा था। इसके पास पूर्ण स्वामित्व के पूरे कागजात थे, फिर भी अगस्त, 2023 में इसे बेदखल कर दिया गया और जमीन भारतीय रेलवे ने अपने कब्जे में ले ली। जहां गांधी विद्या संस्थान है, उसके परिसर का केवल एक कोना इससे अछूता रह गया है क्योंकि उस पर पहले से ही आरएसएस का कब्जा है।

एक तिहाई प्रधानमंत्री अपनी छवि चमकाने के लिए विदेशों में गांधीजी की प्रशंसा करते हैं जबकि अपने ही देश में गांधीवादी संस्थाओं को नष्ट कर रहे हैं, ऐसी हिप्पोक्रेसी क्यों? क्या वह खुले तौर पर इसे स्वीकार कर सकते हैं वह गांधी के बजाए गोडसे को मानते हैं?

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