कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी कानून खत्म, कांग्रेस सरकार ने पलटा पूर्ववर्ती भाजपा शासनकाल का फैसला
बेंगलुरु, 15 जून। कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने गुरुवार को बड़ा फैसला करते हुए पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा पेश धर्मांतरण विरोधी कानून को रद कर दिया। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने इस आशय का प्रस्ताव पारित किया और जल्द ही इसे सदन के पटल पर लाए जाने की संभावना है।
राज्य सरकार 3 जुलाई से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में इस बाबत विधेयक लाएगी
राज्य सरकार आगामी तीन जुलाई से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में इस संबंध में एक विधेयक लाएगी। कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच के पाटिल ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कहा, ‘कैबिनेट ने धर्मांतरण विरोधी विधेयक पर चर्चा की। हमने 2022 में तत्कालीन (भाजपा) सरकार द्वारा किए गए परिवर्तनों को रद करने के लिए विधेयक को मंजूरी दे दी है। इसे 3 जुलाई से शुरू होने वाले सत्र में पेश किया जाएगा।’
कांग्रेस के विरोध के बीच पिछले वर्ष लागू हुआ था कानून
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के विरोध के बीच कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण कानून (धर्मांतरण रोधी कानून) 2022 में लागू हुआ था। मौजूदा अधिनियम में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा के साथ ही बलपूर्वक, अनुचित प्रभाव, जबर्दस्ती, प्रलोभन या धोखाधड़ी से धर्मांतरण पर रोक का प्रावधान है।
इसमें 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ तीन से पांच साल की कैद का प्रावधान है जबकि नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के संबंध में प्रावधानों के उल्लंघन पर दोषियों को तीन से 10 साल की जेल और न्यूनतम 50,000 रुपये का जुर्माना होगा।
कानून को दिसम्बर, 2021 में कर्नाटक विधानसभा द्वारा तैयार किया गया था। इसका मकसद था कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा प्रदान करना और गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबर्दस्ती, लालच या किसी भी धोखाधड़ी से एक धर्म से दूसरे धर्म में अवैध रूपांतरण पर रोक लगाना था।
पिछले वर्ष सितम्बर में बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने कांग्रेस और जद (एस) की आपत्तियों के बीच विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित किया था। हालांकि विधेयक विधान परिषद में पारित होने के लिए लंबित था, जहां तत्कालीन सत्तारूढ़ भाजपा बहुमत से कम थी।
सरकार ने बाद में विधेयक को प्रभावी बनाने के लिए मई में एक अध्यादेश जारी किया था। राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने कहा था कि लालच और बल के माध्यम से बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ है, जिससे शांति भंग हुई है और विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच अविश्वास पैदा हुआ है।
स्कूली पाठ्यपुस्तकों से हेगड़ेवार व सावरकर से जुड़े अध्यायों को भी हटाने का फैसला
राज्य कैबिनेट ने गुरुवार को वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के लिए राज्य में कक्षा छह से दस 10 की कन्नड़ और सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों के संशोधन को भी मंजूरी दे दी तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और हिन्दुत्व विचारक वी डी सावरकर सहित अन्य लोगों पर केंद्रित अध्यायों को हटाने का फैसला किया।
कैबिनेट की बैठक में यह भी फैसला किया गया कि सावित्रीबाई फुले, इंदिरा गांधी को लिखे गए नेहरू के पत्रों और बी आर आंबेडकर पर कविता को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पिछली सरकार द्वारा किए गए परिवर्तनों को हटाया जाएगा। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि वह स्कूली पाठ्यपुस्तकों में भाजपा सरकार द्वारा किए गए बदलावों को हटा देगी। कांग्रेस ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को भी खत्म करने का वादा किया था।
कानून एवं संसदीय मामलों के मंत्री एच के पाटिल ने कैबिनेट की बैठक के बाद कहा, ‘पाठ्यपुस्तकों में संशोधन के संबंध में, कैबिनेट ने विभाग द्वारा लाए गए प्रस्ताव पर चर्चा की और अपनी मंजूरी दे दी।’ प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा ने कहा कि कांग्रेस ने पाठ्य पुस्तकों में संशोधन करने का वादा किया था और मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने इस संबंध में लगातार मार्गदर्शन किया है।