इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला – आर्य समाज से जारी वैवाहिक प्रमाण पत्र को कानूनी मान्यता नहीं
प्रयागराज, 6 सितम्बर। इलाहाबाद हाई कोर्ट आर्य समाज पद्धति से होने वाली शादियों को लेकर का बड़ा फैसला सुनाया है। उसका कहना है कि आर्य समाज से जारी होने वाले वैवाहिक सर्टिफिकेट को कानूनी मान्यता नहीं है और उसके आधार पर किसी को विवाहित नहीं माना जा सकता।
आर्य समाज संस्था ने विवाह को लेकर मिले अधिकारों का दुरुपयोग किया है
गाजियाबाद से जुड़े एक मामले में हाई कोर्ट ने आर्य समाज के वैवाहिक प्रमाण पत्रों पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि आर्य समाज संस्था ने विवाह को लेकर मिले अधिकारों का दुरुपयोग किया है। आर्य समाज से विवाह प्रमाण पत्र जारी होने की बाढ़ सी आ गई है। सिर्फ आर्य समाज के प्रमाण पत्र के आधार पर किसी को भी विवाहित नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने आर्य समाज के प्रमाण पत्र के आधार पर याचिकाकर्ता को विवाहित नहीं माना
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की सिंगल बेंच ने गाजियाबाद से जुड़े मामले में भोला सिंह की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई की और आर्य समाज के प्रमाण पत्र के आधार पर याचिकाकर्ता को विवाहित नहीं माना।
याचिकाकर्ता का आरोप था कि उनकी पत्नी को उसके मायके वालों ने अवैध रूप से बंदी बनाकर रखा है। अपनी बात साबित करने के लिए याचिकाकर्ता की ओर से गाजियाबाद के आर्य समाज मंदिर की ओर से जारी प्रमाण पत्र और कुछ तस्वीरें भी प्रस्तुत की गईं। इस पर कोर्ट ने कहा कि कोर्ट में विभिन्न आर्य समाज समितियों की ओर से जारी किए गए प्रमाण पत्रों की बाढ़ आ गई है, जिन पर इस अदालत के साथ-साथ उच्च न्यायालयों के सामने विभिन्न कार्रवाई के दौरान गंभीरता से पूछताछ की गई है। उक्त संस्था ने दस्तावेजों की वास्तविकता पर विचार किए बिना विवाह आयोजित करने में अपने विश्वास का दुरुपयोग किया है।
अदालत ने कहा कि चूंकि, विवाह पंजीकृत नहीं किया गया है, इसलिए केवल आर्य समाज की ओर से जारी प्रमाण पत्र के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि पार्टियों ने शादी कर ली है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका खारिज भी कर दी।
सुप्रीम कोर्ट भी आर्य समाज की शादियों को लेकर कर चुका है टिप्पणी
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट भी आर्य समाज की शादियों को लेकर टिप्पणी कर चुका है। हाई कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद अब आर्य समाज से होने वाली शादियों और उनकी वैधता पर सवाल उठने लगे हैं।