इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम आदेश – ‘जाली दस्तावेजों से हासिल की गई नौकरी नियुक्ति के समय से ही शून्य’
प्रयागराज, 25 अगस्त। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को एक अहम आदेश में कहा कि जाली दस्तावेजों के आधार पर हासिल की गई सरकारी नौकरी नियुक्ति के स्तर से ही शून्य मानी जाएगी। ऐसी नौकरी करने वाला व्यक्ति वेतन और अन्य परिलाभों पर दावा नहीं कर सकता और उसे नौकरी के दौरान प्राप्त वेतन वापस करना होगा। न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने कमलेश कुमार निरंकारी की याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।
बेसिक शिक्षा अधिकारी ने रद की थी नियुक्ति
याची बलिया में प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत था। एक शिकायत पर जांच के बाद वह जाली दस्तावेज के आधार पर नियुक्ति पाने का दोषी पाया गया। पुष्टि होने के बाद बेसिक शिक्षा अधिकारी ने छह अक्टूबर, 2022 के आदेश से उसकी नियुक्ति रद कर दी। साथ ही भुगतान किए गए वेतन की वसूली का आदेश दिया। याची ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
सहायक शिक्षक के पद पर किया गया था नियुक्त
याची के अधिवक्ता ने कहा कि याची को 10 अगस्त, 2010 को सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्त किया गया था और उसने कभी कोई जालसाजी नहीं की। उसने सभी शैक्षिक दस्तावेज जमा किए थे, लेकिन बिना उचित सुनवाई के उसकी नौकरी रद कर दी गई। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है। उसके पैन कार्ड, आधार कार्ड और शैक्षिक प्रमाणपत्रों में नाम में अंतर था। यह संबंधित प्राधिकारियों की त्रुटि के कारण थीं। इसमें याची की कोई भूमिका नहीं है।
जाली मार्कशीट और प्रमाणपत्रों के आधार पर प्राप्त की नौकरी
प्रतिवादी अधिवक्ता की ओर से दलील दी गई कि याची ने जाली मार्कशीट और प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी प्राप्त की थी। उसने एक अन्य व्यक्ति कमलेश कुमार यादव के दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था। पुलिस सत्यापन रिपोर्ट में भी पुष्टि हुई कि याची की ओर से दिए गए पते पर उस नाम का कोई व्यक्ति नहीं रहता। उसे कई बार मौका देने के बाद भी वह अपने मूल दस्तावेज पेश नहीं कर पाया।
हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि विभाग के तर्क सही हैं। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि धोखाधड़ी से प्राप्त नियुक्ति शुरू से ही शून्य होती है और ऐसे में विस्तृत जांच की आवश्यकता नहीं होती। नाम में गंभीर विसंगतियां और मूल दस्तावेजों को पेश न कर पाना धोखाधड़ी का सबूत है। अतः नौकरी रद करने और वेतन वापस लेने का आदेश वैध है। कोर्ट ने बीएसए के आदेश को बरकरार रखा और याचिका खारिज कर दी।
