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‘ब्रेकअप के बाद लड़कियों की शादी में होती है दिक्कत, लड़के मूव ऑन कर जाते हैं,’ जानिए हाई कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा?

‘ब्रेकअप के बाद लड़कियों की शादी में होती है दिक्कत, लड़के मूव ऑन कर जाते हैं,’ जानिए हाई कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा?

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प्रयागराज, 28 जून। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने शादी का झूठा वादा करके शारीरिक शोषण करने के मामले में आज लिव इन रिलेशन का जिक्र किया। हाईकोर्ट के जज ने कहा कि मध्यम वर्गीय समाज के स्थापित कानून के खिलाफ है लिव इन रिलेशन की धारणा। साथ ही कोर्ट ने इस तरह के बढ़ते मामलों पर चिंता भी जाहिर की है। दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ एक मामले की सुनवाई कर रहे थे।

शान ए आलम नाम के एक शख्स की जमानत याचिका उनके कोर्ट में पहुंची थी। आरोपी शान ए आलम के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत कई मामले में दर्ज है। उस पर आरोप है कि उसने शादी का वादा करके युवती के साथ शारीरिक संबंध बनाया और फिर बाद में उस युवती से शादी करने से इनकार कर दिया।

कोर्ट ने क्या कहा?

आरोपी 25 फरवरी के बाद से ही जेल में बंद है। इसके अलावा कोई पुराना आपराधिक मामला न होने और आरोपों की प्रवृति और जेल में भीड़ होने के मद्देनजर कोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा, ‘एपेक्स कोर्ट की तरफ से लिव इन रिलेशन को कानूनी मान्यता दिए जाने के बाद कोर्ट में ऐसे मामले आते ही जा रहे हैं। ये मामले में अदालत में इसलिए आ रहे हैं, क्योंकि लिव इन रिलेशन मध्यम वर्गीय स्थापित कानूनों के खिलाफ हैं।’

अदालत ने आगे कहा कि लिव रिलेशन महिलाओं को अनुपातहीन नुकसान पहुंचाते हैं। पुरुष तो ब्रेकअप के बाद आगे बढ़ जाते हैं और ऐसे रिश्तों के खत्म होने के बाद वो शादी कर लेते हैं लेकिन महिलाओं के लिए ब्रेकअप के बाद शादी के लिए एक जीवनसाथी की तलाश करना मुश्किल होता है।

भारत में लिव इन रिलेशन को लेकर क्या है कानून?

बता दें कि इस दौरान वकील ने कोर्ट में बताया कि आरोपी शान ए आलम की हरकतों की वजह से पीड़ित महिला का पूरा जीवन बर्बाद हो चुका है और अब उस लड़की से कोई भी शादी करने के लिए तैयार नहीं है। कोर्ट ने वकील की इन बातों पर ध्यान देते हुए कहा कि लिव इन रिलेशन का असर युवा पीढ़ी पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है। इसके दुष्परिणाम मौजूदा जैसे मामलों में देखने को मिलते हैं। बता दें कि भारत में लिव इन रिलेशन को लेकर कोई विशेष कानून नहीं है। हालांकि इसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानूनी रूप से वैध माना गया है। साथ ही ये वैधता केवल बालिगों के लिए ही लागू है।

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