श्रीनगर, 28 दिसम्बर। जम्मू-कश्मीर के कई हिस्सों में 30 दिसम्बर से एक जनवरी तक हल्की बारिश और बर्फबारी की संभावना है। मौसम विभाग ने रविवार को जारी एक बुलेटिन में यह जानकारी दी है। इसी क्रम में सोमवार तक बादल छाए रहने का अनुमान है। 31 दिसंबर और एक जनवरी को कई जगहों पर हल्की बारिश/बर्फबारी और कश्मीर घाटी के मध्य और उत्तरी हिस्सों में मध्यम बर्फबारी होने की उम्मीद है।
श्रीनगर शहर में रविवार को न्यूनतम तापमान शून्य से ऊपर
इस बीच श्रीनगर शहर में रविवार को न्यूनतम तापमान शून्य से ऊपर चला गया। श्रीनगर में न्यूनतम तापमान 0.8 डिग्री सेल्सियस, गुलमर्ग में माइनस 2.2 और पहलगाम में माइनस 1.8 डिग्री सेल्सियस रहा। वहीं, जम्मू शहर में न्यूनतम तापमान 8.1 डिग्री सेल्सियस, कटरा में 8.2, बटोटे में 6.9, बनिहाल में 4.5 और भद्रवाह में 1.6 डिग्री सेल्सियस रहा।
‘चिल्लई कलां’ 30 जनवरी तक, भारी बर्फबारी से जलाशय भरते हैं
स्थानीय रूप से ‘चिल्लई कलां’ के नाम से जाना जाने वाला 40 दिनों के कड़ाके की ठंड का दौर 21 दिसम्बर को शुरू हुआ है, जो 30 जनवरी को खत्म होगा। चिल्लई कलां में होने वाली भारी बर्फबारी ही पहाड़ों में जम्मू-कश्मीर के बारहमासी पानी के जलाशयों को भरती है। ये बारहमासी जलाशय गर्मियों के महीनों में कई नदियों, झरनों और झीलों को पानी देते हैं। चिल्लई कलां के दौरान बर्फबारी न होना एक आपदा है, क्योंकि यह गर्मियों के महीनों में सूखे का संकेत देता है।
नए वर्ष पर घाटी में बर्फबारी का उत्साह, होटल भर गए
‘चिल्लई कलां’ के दौरान लोग बर्फबारी का बेसब्री से इंतजार करते हैं। चूंकि इन दिनों नए वर्ष की शाम मनाने वाले लोग घाटी में आ रहे हैं, इसलिए श्रीनगर, गुलमर्ग और पहलगाम के सभी होटल पूरी तरह से बुक हो चुके हैं। लोग अपनी छुट्टियों को यादगार बनाने के लिए नए वर्ष की शाम को अच्छी बर्फबारी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
वो लंबी रातें.. जब भारी बर्फबारी से सड़कें कई दिनों तक बंद रहती थीं
कश्मीर के बड़े-बुजुर्गों को आज भी चिल्लई कलां की वो लंबी रातें याद हैं, जब वे सुबह उठकर बाहर भारी बर्फबारी देखते थे। छत के किनारों से लटकती बर्फ की बूंदें एक इंद्रधनुषी नजारा बनाती थीं क्योंकि उन बूंदों से गुजरने वाली सूरज की रोशनी अलग-अलग रंगों में बंट जाती थी। उन दिनों भारी बर्फबारी से सड़कें कई दिनों तक बंद रहती थीं और स्थानीय लोग अपने घरों में उगाई गई सब्जियों, हर घर में मौजूद छोटी मुर्गियों के अंडों और खुद पाली हुई गाय के दूध पर निर्भर रहते थे।
