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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – बिहार मतदाता सूची की अवैधता साबित हुई रद होंगे SIR के परिणाम

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – बिहार मतदाता सूची की अवैधता साबित हुई रद होंगे SIR के परिणाम

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नई दिल्ली, 12 अगस्त। बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विपक्ष के प्रबल विरोध के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि मतदाता सूची में गड़बड़ी पाई जाती है और अवैधता साबित होती है और तो सितम्बर तक SIR के परिणामों को रद किया जा सकता है।

याचिककर्ताओं ने उठाए सवाल

शीर्ष अदालत ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की SIR प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया के संवैधानिक आधार पर सवाल उठाया और कहा कि चुनाव आयोग के, जिसने नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेजों की मांग की थी, पास इस मामले पर निर्णय लेने का अधिकार ही नहीं है।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि नागरिकता का मामला भारत सरकार खासकर केंद्रीय गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है। उन्होंने कहा, ‘चुनाव आयोग कहता है कि नागरिकता तय करने के लिए आधार पर्याप्त नहीं है, लेकिन उनके पास नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा था कि उन्हें सिर्फ मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित करने की जरूरत है।’

वोटर को हटाना और जोड़ना ECI के अधिकार क्षेत्र में

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के तर्क पर कहा कि मतदाता सूची से नागरिकों और गैर नागरिकों को बाहर करना और शामिल भारत निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है। जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की बेंच ने चुनाव आयोग के आधार कार्ड और नागरिकता के तर्क को भी सही माना। आयोग ने कहा था कि आधार कार्ड नागरिकता का सबूत नहीं है। खास बात है कि कोर्ट ने इस बात पर असहमति जताई कि SIR के दौरान चुनाव आयोग की तरफ से मांगे गए कई दस्तावेज बिहार के लोगों के पास नहीं थे।

नहीं माना दस्तावेजों वाला तर्क

सुप्रीम कोर्ट में SIR के दौरान पहचान के तौर पर शामिल किए गए दस्तावेजों का भी मुद्दा उठा। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल का कहना था कि सूची में शामिल कई दस्तावेज बिहार के लोगों के पास नहीं हैं। इसपर जस्टिस कांत ने ऐसे कई दस्तावेजों की ओर इशारा किया, जो लोगों के पास मौजूद होंगे।

कोर्ट ने कहा, ‘वे नागरिक हैं या नहीं, इसे देखने के लिए कुछ तो पेश करना पड़ेगा। फैमिली रजिस्टर, पेंशन कार्ड आदि हैं… यह कहना बहुत सामान्य सी बात है कि लोगों के पास ये दस्तावेज नहीं हैं।’ सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि चुनाव अधिकारी आधार कार्ड और राशन कार्ड स्वीकार नहीं कर रहे हैं। सुनवाई के दौरान जस्टिस कांत ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग का यह कहना ठीक है कि आधार को नागरिकता का एकमात्र सबूत नहीं माना जा सकता।

याचिकाओं में क्या है?

उल्लेखनीय है कि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया है कि SIR में बगैर तय प्रक्रिया के लाखों नागरिक अपने प्रतिनिधि नहीं चुन पाएंगे। कहा गया है कि इसका असर देश के लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पर पड़ेगा।

चुनाव आयोग की ये दलील

वहीं चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया है कि उसके पास संविधान के अनुच्छेद 324 और रिप्रेजेंटेशन ऑफ दि पीपुल एक्ट 1950 की धारा 21(3) के तहत मतदाता सूची के निरीक्षण का अधिकार है। आयोग ने कोर्ट को बताया कि शहरी क्षेत्रों से लोगों का अन्य राज्यों में जाना, जनसांख्यिकी में बदलाव और मौजूदा सूची में गलतियां होने की चिंताओं के कारण SIR किया गया। साथ ही कोर्ट को यह भी बताया गया कि मतदाता सूची का गहन परीक्षण करीब 20 वर्षों से नहीं हुआ है।

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