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गुजरात : भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बनास डेयरी का अमूल्य योगदान

गुजरात : भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बनास डेयरी का अमूल्य योगदान

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अहमदाबाद, 31 जुलाई। पूरा देश आज सर्वांगीण विकास के लिए प्रयासरत है। भारत पारंपरिक ईंधन जैसे पेट्रोल, डीजल, केरोसीन आदि के उपयोग को कम करके और सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, सीएनजी या इलेक्ट्रिक वाहन, गोबर गैस आदि के उपयोग पर जोर देकर पर्यावरण को संरक्षित करने का प्रयास कर रहा है। दुनिया के कई देश अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पेट्रोलियम का आयात करते हैं। भारत को 80 फीसदी पेट्रोलियम भी आयात करना पड़ता है।

पेट्रोल, डीजल या केरोसिन जैसे जीवाश्म ईंधन से प्रदूषण की गंभीर समस्या

वस्तुतः पेट्रोल, डीजल या केरोसिन जैसे जीवाश्म ईंधन से भी प्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। डीजल से चलने वाले वाहन न सिर्फ वायु प्रदुषण बल्कि ध्वनि प्रदूषण भी फैलाते हैं, कार्बन उत्सर्जित करते हैं और इसका सीधा प्रभाव मानव और पशु स्वास्थ्य पर पड़ता है। फेफड़ों की बीमारी, आंखों की सूजन आदि बीमारियां बढ़ती हैं और इसका सीधा असर देश की श्रम उत्पादकता पर पड़ता है।

सरकार की योजनाओं और सहयोग की भावना के साथ आगे बढ़ना जरूरी

इन सभी मुद्दों के समाधान के लिए सरकार की योजनाओं और सहयोग की भावना के साथ आगे बढ़ना जरूरी है। कई संगठनों या कम्पनियों का कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व विभाग उसके लिए आवश्यक प्रयास भी करता है। टिकाऊ विकास लक्ष्य  यानी सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल को पूरा करना भी हमारा लक्ष्य होना चाहिए। इसके समाधान हेतु सरकार और विभिन्न संगठन अब सौर, पवन ऊर्जा के माध्यम से स्वच्छ और टिकाऊ विकास के प्रयास कर रहे हैं।

आज डीजल या पेट्रोल से धुआं उड़ाके चलने वाले वाहनों की जगह सीएनजी या इलेक्ट्रिक वाहनों ने ले ली है। ना सिर्फ टू ह्वीलर बल्कि कार, एवम पब्लिक ट्रांसपोर्ट बसें भी आज इलेक्ट्रिक से चलते हैं, जो न सिर्फ पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं बल्कि आवाज का प्रदूषण भी नहीं करते। अब तो सीएनजी और पेट्रोल से चलने वाली बाइक भी बाजार में आ गई हैं। हरे नंबर प्लेटवाली गाड़ियों की बिक्री में काफी इजाफा हुआ है।

देश के नागरिकों को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सोलर रूफ टॉप से बिजली पैदा करने की योजना भी क्रियान्वित की जा रही है ताकि कई वर्षों तक प्रदूषण मुक्त, स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा प्राप्त की जा सके। इन प्रयासों के माध्यम से कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में भी मदद मिलेगी।

बनासकांठा जिले में की गई पहल अनुकरणीय

ऐसी ही एक कोशिश हाल ही में बनासकांठा जिले में की गई है। इसे समझने से पहले बनासकांठा की भौगोलिक स्थिति और यहां के रोजगार के साधनों को समझना बहुत जरूरी है। बनासकांठा गुजरात के उत्तर-पूर्व में राजस्थान की सीमा से लगा एक जिला है। यह जिला पाकिस्तान की सीमा को भी छूता है। इस जिले का नाम बनास नदी के नाम पर रखा गया है, जो अरावली में गिरीमाला की घाटी से होकर बहती है। पालनपुर जिला मुख्यालय है। जिले के पूर्वी दिशा में प्रसिद्ध तीर्थ स्थल अम्बाजी है, जहां हर साल लाखों पर्यटक मां के दरबार में माथा टेकते हैं। फिर पश्चिम दिशा में कच्छ का रेगिस्तान है, जो आज दुनिया की पहचान बन गया है।

शुष्क क्षेत्र में किसानों ने खेती का तरीका ही बदल दिया

बनासकांठा क्षेत्र को शुष्क क्षेत्र माना जाता है। यहां पहले भी गर्मियों में पेयजल की गंभीर समस्या उत्पन्न हो चुकी है। कृषि न्यूनतम थी। चरवाहों की हालत इतनी खराब थी कि ज्यादातर चरवाहे गर्मी आते ही गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट आदि के साथ दूसरे जिलों में चले जाते थे और जून में मानसून आने पर लौट आते थे। पहले के समय में कृषि भी परम्परागत रूप से की जाती थी।

हालांकि, समय की मौजूदा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यहां के किसानों ने खेती का तरीका बदल दिया। कृषि में आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया गया। कृषि में ड्रिप सिंचाई प्रणाली तथा स्प्रिंकलर प्रणाली का प्रयोग किया जाने लगा। जल संरक्षण एवं वर्षा जल संचयन के प्रयास किए गए। कुओं को रिचार्ज करने, चेक डैम बनाने, नहरों की नियमित सफाई आदि पर ध्यान दिया गया।

आत्मविश्वास से ओतप्रोत महिलाएं भी कर कर रहीं प्रगति

खेती ओर पशुपालन के साथ साथ साफ-सफाई, शिक्षा, पौष्टिक आहार पर जो दिया गया, बचत समितियां या सखीमंडल बनाए गए ताकि महिलाएं बचत कर सकें और खुद का छोटा मोटा व्यवसाय कर पैसा कमा सकें। घर के पुरुष सदस्यों ने भी महिलाओ का साथ दिया। प्रगति इस हद तक हुई कि यहां की महिलाएं आत्मविश्वास से भर उठीं। आज इस जिले में ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने सफल पशुपालन के लिए राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर अवार्ड जीतकर अपने जिले और समाज का नाम रोशन किया है।

किसानों में वैचारिक सुधार देखने को मिल रहा

बनासकांठा के किसानों में भी वैचारिक सुधार देखने को मिल रहा है। बाजार की मांग के अनुसार वे पारंपरिक फसलें लेने के बजाय जीरा, इसबगोल, सौंफ, अजमो जैसी मसाले वाली फसलें, अरंडी, तिल, मूंगफली जैसी तेलीबिया फसलें और अनार, टेटी, ताड़बुच जैसी फल वाली फसलें और आलू, ककड़ी टमाटर जैसी सब्जियां उगाते हैं। इसके अलावा ज्वार बाजरा मक्का जैसे मिलेट धान भी उगाकर अच्छी-खासी कमाई कर लेते हैं।

कृषि संबंधी तकनीक एवं प्रशिक्षण हेतु आत्मा संस्था, कृषि विज्ञान केंद्रों एवं दांतीवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय का सहयोग भी यहां के किसानो को मिलता है। सरकार और सहयोग दोनों का संतुलन बनाकर बनासकांठा जिला प्रगति के पथ पर चल रहा है। आज यह जिला गुजरात में पशुपालन और दूध उत्पादन में अग्रणी है। कृषि क्षेत्र में किसानों की आय में काफी वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री के किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प को पूरा करने के लिए आज पूरा जिला प्रयासरत है और उसका फल भी ले रहा है। इतना ही नहीं, कभी दूधक्रांति के नाम से याद किए जाने वाले खेड़ा और आणंद की जगह आज बनासकांठा ने ले ली है। बनासकांठा के लाखों किसानों और पशुपालकों  और सम्बंधित व्यवसायों से जुड़े लोगों की आय में इजाफा हुआ है।

बनास डेयरी स्थानीय स्तर पर सर्वांगीण विकास के लिए तत्पर

अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर। एशिया की सबसे बड़ी सहकारी डेयरी बनास डेयरी है। यहां प्रतिदिन 85 लाख लीटर से अधिक दूध का उत्पादन होता है। बनास डेयरी स्थानीय किसान एवमं पशुपालक भाई-बहनों के सर्वांगीण विकास के लिए तत्पर है। इसका दूध और अन्य उत्पाद अमूल और बनास ब्रांड के नाम से बेचे जाते हैं। अमूल ब्रांड ने न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्धि हासिल की है। बनास दही, बनास शहद, बनास मूंगफली तेल और बनास घी भी बाजार में उपलब्ध हैं। बनास डेयरी गुजरात को-ओपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन का एक प्रभाग है। बनास डेयरी का मुख्य प्लांट पालनपुर में स्थित है। इसके अलावा एक डिसा में है जबकि दूसरा प्लांट पाटन जिले के राधनपुर में स्थित है।

बायोगैस सीएनजी प्लांट के लिए जापान की सुजुकी कम्पनी से समझौता

हाल ही में, बनासकांठा जिले के दियोदर तहसील के साणादार गांव में स्थित बनास डेयरी में “गोबर से गोवर्धन” कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें पांचवें बायोगैस सीएनजी प्लांट के लिए बनास डेयरी और जापान की सुजुकी कम्पनी के बीच समझौता हुआ। इस अवसर पर बनास डेरी द्वारा बनास “भूमि अमृत” जैविक उर्वरक और बनास बायोगैस प्लांट के तरल उत्पाद “पावर प्लस” का ब्रांड लोगो लॉन्च किया गया। इस कार्यक्रम में बनास डेयरी के अध्यक्ष, एनडीडीबी के उच्च अधिकारी और जापान की सुजुकी मोटर कम्पनी के अध्यक्ष उपस्थित थे।

इसके तहत भारत में सुजुकी रिसर्च एंड डेवलपमेंट, नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड और बनास डेयरी बायोगैस टेक्नोलॉजी तकनीकी अनुसंधान के लिए जापान की टोयोहाशी यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों की मदद से प्लांट का बेहतरीन डिजाइन तैयार करेंगे। थराद क्षेत्र में प्लांट स्थापित करने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए।

बायोगैस प्लांट से जैविक खाद का उत्पादन किया जाएगा

इस समझौते के अनुसार, ग्रामीण गतिशीलता परियोजना के माध्यम से बनासकांठा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने के लिए, सुजुकी कम्पनी द्वारा दो मारुति सुजुकी गांवों को लीज मॉडल पर चुना जाएगा और प्रति गांव पांच मारुति सुजुकी इक्को को पट्टे पर दिया जाएगा। सीएनजी वाहनों के लिए ईंधन वितरण के लिए प्रत्येक संयंत्र में बायोगैस फिलिंग स्टेशन स्थापित किए जाएंगे। बायोगैस प्लांट से जैविक खाद का उत्पादन किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि जापान की सुजुकी कम्पनी ने बनासकांठा में बायो सीएनजी गैस स्टेशन को बढ़ाने के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल को जापान में आमंत्रित किया और था एक लाख किलो गोबर प्रतिदिन की क्षमता वाले चार नए प्लांट स्थापित करने के लिए छह सितम्बर, 2023 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था।

यहां के चरवाहे भी गोबर का दाम पाकर समृद्धि की ओर बढ़ रहे

इस बायोगैस प्लांट में आसपास के छह गांवों के 150 पशुपालकों से एक रुपये किलो में ताजा गोबर खरीदा जाता है। इस गोबर से प्रतिदिन 500 से 600 किलोग्राम बायो सीएनजी और 10 से 12 टन जैविक खाद का उत्पादन होता है। पहले पशुपालकों को सिर्फ दूध के पैसे मिलते थे, अब गोबर के भी पैसे मिल रहे हैं। इस प्रकार यहां के चरवाहे गोबर का दाम पाकर समृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं, जो जिले के लिए तो गौरव की बात है ही, साथ ही वे अन्य जिलों के पशुपालकों को भी ऐसा करने की प्रेरणा दे रहे हैं।

निकट भविष्य में बनास डेयरी और अधिक संयत्र स्थापित करेगा

बनास डेयरी निकट भविष्य में जिले में और अधिक संयंत्र स्थापित करने की भी इच्छुक है तो सुजुकी कम्पनी ने भी इसके लिए तैयारी दिखाई। बायोगैस संयंत्र के कारण किसान अपने खेतों में प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग करेंगे। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलेगा। लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होगा और किसानों की आय बढ़ेगी। एक बात तो तय है कि आने वाले समय में यह बायोगैस प्लांट जिले और राज्य का खूब विकास करेगा। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किए जाएंगे और विश्व को एक नई दिशा मिलेगी।

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