सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के असामान्य आदेश पर लगाई रोक – ‘बलात्कार पीड़िता लड़की मांगलिक है या नहीं’
नई दिल्ली, 3 जून। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस असामान्य आदेश पर शनिवार को रोक लगा दी, जिसमें लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रमुख को यह तय करने को कहा गया था कि कथित बलात्कार पीड़िता लड़की ‘मांगलिक’ है या नहीं।
शीर्ष अदालत ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए विशेष सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह समझ में नहीं आ रहा है कि उच्च न्यायालय ने जमानत अर्जी पर सुनवाई करते समय यह पता लगाने के लिए दोनों पक्षों को अपनी कुंडली जमा करने के लिए क्यों कहा कि लड़की ‘मांगलिक’ है या नहीं।
उच्च न्यायालय ने शादी का झूठा वादा कर लड़की से बलात्कार करने के आरोपित व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए 23 मई को संबंधित आदेश पारित किया था। उच्च न्यायालय के समक्ष व्यक्ति के वकील ने तर्क दिया था कि चूंकि लड़की ‘मांगलिक’ है, इसलिए दोनों के बीच विवाह नहीं हो सकता। हालांकि, लड़की की ओर से पेश वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष जोर देकर कहा था कि वह ‘मांगलिक’ नहीं है।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने मामले में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, ‘श्री मेहता, आपने इसे देखा है?’ मेहता ने कहा, ‘मैंने इसे देखा है। यह परेशान करने वाला है। मैं आपसे इस आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करता हूं।’
शिकायतकर्ता की ओर से पेश एक वकील ने पीठ को बताया कि उच्च न्यायालय ने पक्षकारों की सहमति से आदेश पारित किया है। पीठ ने कहा, ‘लेकिन यह पूरी तरह से संदर्भ से बाहर है। इसका विषय वस्तु से क्या लेना-देना है। इसके अलावा, इसमें कई अन्य चीजें शामिल हैं… निजता के अधिकार में बाधा उत्पन्न हुई है, तथा हम कहना नहीं चाहते, और भी कई पहलू हैं।’
यह उल्लेख करते हुए कि ज्योतिष एक विज्ञान है, मेहता ने कहा, ‘सवाल यह है कि न्यायिक मंच द्वारा किसी आवेदन पर विचार किए जाते समय क्या यह एक विचार हो सकता है।’ पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि ज्योतिष एक विज्ञान है, लेकिन मामले में कई पहलू हैं। इसने कहा, ‘हम मामले के गुण-दोष में नहीं पड़ रहे हैं।’
पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा, ‘यह अदालत इस मामले का स्वत: संज्ञान लेती है, जिसे हमारे सामने रखा गया है।’ इसने रजिस्ट्री को राज्य सहित सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 10 जुलाई से शुरू होने वाले सप्ताह तक के लिए टाल दी। इसने कहा, ‘हमने आदेश पर रोक लगा दी है और अदालत को जमानत अर्जी पर इसके गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेने की अनुमति दी है। हमें समझ नहीं आता कि यह ज्योतिष संबंधी रिपोर्ट क्यों मांगी गई।’
गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 23 मई के अपने आदेश में कहा था, ‘लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रमुख को यह तय करने दें कि लड़की मांगलिक है या नहीं और संबंधित पक्ष आज से 10 दिन के भीतर लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष के समक्ष कुंडली पेश करेंगे। विभागाध्यक्ष (ज्योतिष विभाग), लखनऊ विश्वविद्यालय को निर्देश दिया जाता है कि वह तीन सप्ताह के भीतर इस न्यायालय को सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट प्रस्तुत करें। इस मामले को 26 जून, 2023 के लिए सूचीबद्ध किया जाता है।’