नई दिल्ली, 28 सितम्बर। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी एक टिप्पणी में कहा है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले वर्ष की शुरुआत में फैली हिंसा अचानक नहीं वरन एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा थी और उस दौरान दिल्ली पुलिस के जवानों को बेरहमी से पीटा गया था।
कानून-व्यवस्था प्रभावित करने के लिए की गई थी हिंसा
हाई कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हिंसा के एक आरोपित की जमानत याचिका रद करते हुए यह अहम टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने इस दौरान हिंसा की कुछ वीडियो का हवाला भी दिया और कहा कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था को प्रभावित करने के लिए इस तरह सुनोयोजित ढंग से हिंसा की गई थी।
अदालत ने कहा कि वीडियो के अनुसार प्रदर्शनकारियों का आचरण स्पष्ट रूप से दिखाता है कि ये सरकार के कामकाज को अस्त-व्यस्त करने के साथ-साथ शहर के सामान्य जीवन को बाधित करने के लिए पहले से प्लान किए बैठे थे, यानी पूरी तरह सोची-समझी साजिश थी।
योजना के तहत ही सीसीटीवी कैमरे भी तोड़े गए थे
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ‘सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्थित रूप से तोड़फोड़ भी शहर में कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए पहले से प्लान की गई साजिश को कन्फर्म करता है।
हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ये इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि सैकड़ों दंगाइयों ने बेरहमी से पुलिस के एक दल पर लाठियों डंडों, हॉकी स्टिक और बैट से हमला किया। विरोध प्रदर्शन के दौरान आरोपी कथित तौर पर तलवार लिए हुए था।
हालांकि, आरोपित के वकील ने तर्क दिया था कि रतन लाल की मौत तलवार के वार से नहीं हुई थी। जैसा कि रिपोर्ट में उनकी चोटों को लेकर बताया गया था और आरोपित ने केवल अपनी और परिवार की रक्षा के लिए तलवार उठाई थी।
पिछले वर्ष 23 फरवरी को भड़की हिंसा में 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे
गौरतलब है कि राजधानी दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में 23 फरवरी, 2020 को हिंसा शुरू हुई थी। यह हिंसा करीब तीन दिन तक जारी रही थी और उस दौरान 50 से अधिक लोगों की मौत हुई थी जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए थे।