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Gandhi Jayanti : जब गांधीजी सिर्फ 4 रुपये के लिए कस्तूरबा से नाराज हो गए थे

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नई दिल्ली, 2 अक्टूबर। आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 153वीं जयंती है। पूरी दुनिया गांधीजी के आदर्शों का पालन करती है। उनका सबसे बड़ा हथियार था अहिंसा। उन्होंने आजीवन सत्य और अहिंसा को अपने जीवन में उतारा। मोहन दास कमरचंद गांधी से जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जो शायद सभी को मालूम हो। एक ऐसा ही किस्सा है, जब गांधीजी सिर्फ 4 रुपये के लिए अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी से नाराज हो गए थे। चलिए जानते हैं वो किस्सा…

महात्मा गांधी ने 1929 में एक लेख में इस घटना का खुद खुलासा किया था। घटना का उल्लेख उनके द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र नवजीवन में छपा था। गांधी जी बताते हैं कि एक बार वो अपनी पत्नी कस्तूरबा से इसलिए नाराज हो गए थे क्योंकि उन्होंने गैरकानूनी तौर पर अपने पास चार रुपये रखे थे।

एक समाचार एजेंसी के अनुसार, गांधीजी कहते थे कि जहां कस्तूरबा में कई खूबियां थीं, वहीं उनकी “कमजोरियां” भी थीं, जिसने उनके गुणों को प्रभावित किया। गांधी कहते हैं, “हालांकि उन्होंने पत्नी का कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाया और अपने पास सारे पैसों की जानकारी देती थी, लेकिन फिर भी सांसारिक इच्छा उनमें बनी हुई थी।”

अजनबियों ने भेंट किए थे 4 रुपये

गांधी जी बताते हैं कि कुछ अजनबियों ने कस्तूरबा को चार रुपये भेंट किए थे। लेकिन ऑफिस में पैसे देने के बजाय, उन्होंने उस रकम को अपने पास रख लिया। हालांकि गांधी आगे यह भी कहते हैं कि, “एक या दो साल पहले, उसने (कस्तूरबा) अपने पास एक या दो सौ रुपये रखे थे जो विभिन्न अवसरों पर विभिन्न व्यक्तियों से उपहार के रूप में प्राप्त हुए थे। आश्रम के नियम हैं कि किसी द्वारा मिली कोई भेंट कोई भी ऐसे ही अपने पास नहीं रख सकता। इसलिए उस वक्त उन चार रुपयों को अपने पास रखना गैरकानूनी था।”

कैसे खुला भेद

अपने लेख में गांधी जी आगे कहते हैं, “पत्नी के ‘अपराध’ का खुलासा तब हुआ जब चोर आश्रम में घुसे। सौभाग्य से वे जिस कमरे में घुसे, उन्हें कुछ नहीं मिला। हालांकि जब यह बात आश्रमवासियों को मालूम हुई तो कस्तूरबा काफी घबरा गई और अपने द्वारा छिपाई उस रकम को देखने के लिए उत्सुक हो गई।”

गांधी जी आगे बताते हैं कि पता चलने के बाद, पूरी विनम्रता के साथ कस्तूरबा ने पैसे वापस कर दिए और कसम खाई कि वह ऐसा कभी नहीं दोहराएगी। बकौल गांधी, “मेरा मानना ​​​​है कि उसकी ईमानदारी पश्चाताप था। उसने संकल्प लिया है कि यदि पूर्व में कोई चूक हुई या भविष्य में फिर वही कार्य करते हुए पकड़ी गई तो वह मुझे और आश्रम को छोड़ देगी।

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