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UCC को लेकर पीएम मोदी के बयान पर उखड़ा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, कहा – ‘शरिया कानून से समझौता नहीं करेंगे’

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नई दिल्ली, 18 अगस्त। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर दिए गए बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है और उसका कहना है कि मुसलमान शरिया कानून से समझौता नहीं करेंगे, इसलिए समान या सेक्युलर नागरिक संहिता स्वीकार नहीं होगी।

दरअसल, स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले पर आयोजित मुख्य समारोह में पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा था, ‘समाज का एक बड़ा वर्ग मानता है और इसमें सच्चाई है कि मौजूदा नागरिक संहिता एक तरह से सांप्रदायिक नागरिक संहिता है। यह एक ऐसा नागरिक कानून है, जो भेदभाव को बढ़ावा देता है। यह देश को धार्मिक आधार पर बांटता है और असमानता को बढ़ावा देता है।’

पीएम के बयान से हैरान मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

AIMPLB के प्रवक्ता एस. क्यू. आर. इलियास ने ‘धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता’ लाने संबंधी प्रधानमंत्री की टिप्पणी को लेकर हैरानी जताई। उन्होंने इसे ‘एक सोची-समझी साजिश बताया जिसके गंभीर परिणाम होंगे।’ इलियास ने एक बयान में कहा, ‘बोर्ड यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण समझता है कि भारत के मुसलमानों ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि उनके पारिवारिक कानून शरिया कानून पर आधारित हैं, जिससे कोई भी मुसलमान किसी भी कीमत पर विचलित नहीं हो सकता।’

ऐसी निरंकुश शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए

बयान में कहा गया, “देश की विधायिका ने स्वयं ‘शरीयत एप्लीकेशन एक्ट, 1937’ को मंजूरी दी है और भारत के संविधान ने अनुच्छेद 25 के तहत धर्म को मानने, उसका प्रचार करने और उसका पालन करने को मौलिक अधिकार घोषित किया है। देश के निर्वाचित प्रतिनिधियों को ऐसी निरंकुश शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।”

केवल शरिया कानून को ही निशाना बना रहे हैं

उन्होंने कहा कि संविधान में एक संघवादी राजनीतिक संरचना और बहुलवादी समाज की परिकल्पना की गई है, जहां धार्मिक संप्रदायों और सांस्कृतिक इकाइयों को अपने धर्म का पालन करने और अपनी संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है। उन्होंने प्रधानमंत्री की ओर से संवैधानिक शब्द समान नागरिक संहिता के स्थान पर ‘सेक्युलर सिविल कोड’ का प्रयोग करने की आलोचना की। इलियास ने प्रधानमंत्री की मंशा पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि वह केवल शरिया कानून को ही निशाना बना रहे हैं।

देश के बहुसंख्यक लोगों का भी अपमान किया

उन्होंने कहा, ‘धर्म आधारित पारिवारिक कानूनों को सांप्रदायिक बताकर प्रधानमंत्री ने न केवल पश्चिम की नकल की है बल्कि देश के बहुसंख्यक लोगों का भी अपमान किया है, जो धर्म का पालन करते हैं। यह धार्मिक समूहों के लिए अच्छा संकेत नहीं है।’

इलियास ने कहा कि ‘शरीयत एप्लीकेशन एक्ट’ और हिन्दू कानूनों में बदलाव करके धर्मनिरपेक्ष संहिता लाने का कोई भी प्रयास ‘निंदनीय और अस्वीकार्य’ होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त विधि आयोग के अध्यक्ष की टिप्पणी को कायम रखना चाहिए, जिन्होंने 2018 में स्पष्ट रूप से कहा था कि समान नागरिक संहिता ‘न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है’।

पीएम मोदी ने UCC को सांप्रदायिक नागरिक संहिता कहा था

पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में समान नागरिक संहिता और इसके बारे में उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लेख किया था और इस विषय पर देश में गंभीर चर्चा की जरूरत पर बल दिया था। उन्होंने कहा था, ‘देश का एक बहुत बड़ा वर्ग मानता है कि जिस नागरिक संहिता को लेकर हम लोग जी रहे हैं, वह सचमुच में साम्प्रदायिक और भेदभाव करने वाली संहिता है। मैं चाहता हूं कि इस पर देश में गंभीर चर्चा हो और हर कोई अपने विचार लेकर आए।’

उन्होंने कहा था, ‘जो कानून धर्म के आधार पर देश को बांटते हैं, ऊंच-नीच का कारण बन जाते हैं… उन कानूनों का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता। अब देश की मांग है कि देश में धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता हो।’