जम्मू, 8 अक्टूबर (पीटीआई)। जम्मू में 24 अक्टूबर के दशहरा के मौके पर रावण और उसके भाईयों के पुतले दहन करने की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। इन्हें तैयार करने के लिए उत्तर प्रदेश से कई कारीगर जम्मू आए हैं। इनमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के कारीगर हैं। ये कारीगर करीब चार दशकों से इस काम में लगे हुए हैं। एक कारीगर ने कहा“मैं गीता भवन में 38 सालों से रावण के पुतले बना रहा हूं।”
कारीगर ने विस्तार से बताया “टीम में मुश्किल से 10-12 मुसलमान हैं। 50 में से करीब 40 हिन्दू कार्यकर्ता हैं। इनमें से कुछ तो ये काम करते-करते बूढ़े हो गए हैं। वे कभी 150 रुपये में काम करते थे और परंपरा को निभाते आ रहे हैं। अगर मैं काम कर रहा हूं तो मेरे बच्चे भी काम करते रहेंगे। पीढ़ियां दर पीढ़ियां इस कला को सीख रही हैं और बढ़ा रही हैं।”
कारीगरों का कहना है कि वे पूरी तरह मिलजुलकर काम करते हैं। उनके बीच किसी तरह का मतभेद नहीं होता।”हमारे साथ हिन्दू भाई और मुस्लिम भी हैं। हम सब मिलकर काम करते हैं। हम साथ खाते हैं और साथ रहते हैं, इसमें कोई दिक्कत नहीं है। हां, हम सब साथ मिलकर काम करते हैं और सब कुछ अच्छा है।””हम सब अच्छे दोस्त हैं। हिन्दू-मुस्लिम सब एक परिवार की तरह हैं।”
“हमारा खाना बनाने वाला रसोइया कश्यप-राजपूत है और हम सब एक ही जगह खाना खाते हैं। हम किस समुदाय से हैं, इसके आधार पर हमारे बीच कोई भेदभाव नहीं है, बस भाईचारा है।”ये कारीगर 50 से 65 फीट ऊंचे दर्जनों पुतले तैयार कर रहे हैं। इन पुतलों को जम्मू कश्मीर में अलग-अलग जगहों पर भेजा जाएगा।कारीगरों का कहना है कि हर साल जम्मू आने पर काफी उत्साह के साथ उनका स्वागत किया जाता है।लोगों में उत्साह है कि रावणवाले आ गए हैं। सभी देखते हैं कि रावण का पुतला बनाने के लिए बांस आया है। बाद में लोगों ने देखा कि कैसे हम बांस से रावण, कुम्भकरण और मेघनाद की आकृतियाँ बनाते हैं और जो पुतले हम बनाते हैं वे कई स्थानों पर जाते हैं।’
जम्मू में मुख्य दशहरा समारोह परेड ग्राउंड में होगा। दूसरी जगहों के अलावा अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास भी कई जगहों पर राक्षस राजा के पुतले जलाए जाएंगे।पुतलों को जलाना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। आपसी सहयोग के साथ एक-दूसरे के साथ मिल-जुल कर काम करना इसी अवधारणा की खूबसूरती है।