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‘सीएम इन वेटिंग’ अजित पवार ने बनाया रिकॉर्ड, छठी बार बने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम

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मुंबई, 5 दिसम्बर। महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री को लेकर पिछले 10 दिनों से चल रहा सस्पेंस अंततः गुरुवार को खत्म हो गया, जब देवेंद्र फडणवीस ने तीसरी बार राज्य के सीएम के रूप में शपथ ले ली। उनके साथ दो डिप्टी सीएम – एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने भी पद एवं गोपनीयता की शपथ ली।

4 मुख्यमंत्रियों के अधीन डिप्टी सीएम रहे हैं जूनियर पवार

फिलहाल इन सबमें चर्चा के केंद्र बिंदु अजित दादा पवार ही रहे, जिन्होंने अपने राजनीतिक करिअर में कई बार सीएम पद के लिए निगाहें गड़ाई थीं। लेकिन एक बार फिर उन्हें दूसरे सबसे महत्वपूर्ण पद (डिप्टी सीएम) से ही संतोष करना पड़ा।

चाचा शरद पवार के संरक्षण में पले-बढ़े व राजनीति के गुर सीखे

इस सचाई से भी कोई इनकार नहीं कर सकता कि अजित पवार अपने चाचा व मराठा छत्रप शरद पवार के संरक्षण में पले-बढ़े और उनकी छत्रछाया में ही राजनीति के गुर सीखे, लेकिन अपने जीवन के शुरुआती दिनों में ही महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी जगह बनाने में सफल रहे।

कुशल प्रशासक के रूप में जाने जाते हैं बारामती से 8 बार के विधायक

वस्तुतः अजित पवार राजनीति के तूफानों में कई बार मुश्किलों में फंसे हैं, लेकिन उन्हें बारामती से आठ बार के विधायक और एक कुशल प्रशासक के रूप में जाना जाता है। चुनाव मैनेजमेंट और लीडरशिप में उनके अनुभव ने उन्हें जबर्दस्त लोकप्रियता दिलाई है।

महाराष्ट्र में 1978 से शुरू हुई डिप्टी सीएम की परंपरा

देखा जाए तो महाराष्ट्र में उप मुख्यमंत्री पद की परंपरा 1978 से शुरू हुई। नासिकराव तिरपुडे महाराष्ट्र के पहले उप मुख्यमंत्री थे। उसके बाद कई नेताओं ने अलग-अलग समय पर डिप्टी सीएम के तौर पर काम किया। हालांकि अजित पवार ने छठी बार यह पद संभालने के साथ नया रिकॉर्ड बना दिया।

10 नवम्बर, 2010 को पहली बार ली थी उप मुख्यमंत्री पद की शपथ 

नवम्बर 2004 में, आरआर पाटिल ने उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और चार वर्ष से ज्यादा समय तक इस पद पर रहे। उन्होंने 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद इस्तीफा दे दिया। इसके बाद छगन भुजबल को उप मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया, जो 10 नवम्बर 2010 तक पद पर रहे। भुजबल के बाद सख्त प्रशासक की छवि रखने वाले अजित पवार ने पहली बार उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और तब से वह छह बार उप मुख्यमंत्री रहे हैं।

दरअसल, नवम्बर 2010 में अजित पवार ने चाचा शरद पवार के खिलाफ जाकर छगन भुजबल को उप मुख्यमंत्री बनाने का विरोध किया था। सितम्बर 2012 में 70,000 करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले में नाम आने के बाद भुजबल को इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि, तीन महीने बाद ही वह ‘क्लीन चिट’ के साथ सरकार में लौट आए।

चार मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में एक उप मुख्यमंत्री

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