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अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से राजद्रोह कानून खत्म न करने की सिफारिश की

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नई दिल्ली, 5 मई। भारत के अटॉर्नी जनरल (महान्यायवादी) के.के. वेणुगोपाल ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राजद्रोह कानून को खत्म नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि दुरुपयोग के संबंध में केवल दिशानिर्देश निर्धारित किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि किसकी मंजूरी है, क्या अस्वीकार्य है और क्या देशद्रोह के तहत आ सकता है, यह देखने की जरूरत है।

शीर्ष अदालत 10 मई को करेगी मामले की सुनवाई

शीर्ष अदालत ने अब मामले की सुनवाई के लिए 10 मई की तारीख निर्धारित की है, जिसमें यह देखा जाएगा कि क्या भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर एक बड़ी पीठ द्वारा सुनवाई की जानी चाहिए अथवा नहीं।

शीर्ष अदालत इस विषय पर 1962 के फैसले के मद्देनजर फैसला लेगी। पीठ ने केंद्र से नौ मई तक मामले पर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता और केंद्र सरकार दोनों को अपनी दलीलें देने को कहा कि क्या इसे सात मई तक एक बड़ी पीठ को सौंपने की जरूरत है।

सीजेआई ने पूछा था – क्या स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी औपनिवेशिक कानून आवश्यक

गौरतलब है कि सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ सेना के पूर्व सेवानिवृत्त अधिकारी एसजी वोम्बटकेरे और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा दायर दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। पिछले वर्ष जुलाई में याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए सीजेआई रमना ने प्रावधान के कथित दुरुपयोग का जिक्र करते हुए पूछा था कि क्या औपनिवेशिक कानून स्वतंत्रता के 75 साल बाद अब भी आवश्यक है।

सीजेआई ने पूछा था कि इस कानून को लेकर विवाद इस बात से संबंधित है कि यह एक औपनिवेशिक कानून है। यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था। महात्मा गांधी, तिलक आदि को चुप कराने के लिए अंग्रेजों ने उसी कानून का इस्तेमाल किया था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है?

उन्होंने कहा कि इस कानून की विशाल शक्ति की तुलना एक बढ़ई से की जा सकती है, जिसे एक वस्तु बनाने के लिए आरी दी जाती है, लेकिन वह इसका उपयोग एक पेड़ की बजाय पूरे जंगल को काटने के लिए करता है। यह इस प्रावधान का प्रभाव है।