मुंबई, 29 मई। कोरोनाकाल में संक्रमण की जांच व महामारी से बचाव को लेकर लगातार नए शोध चल रहे हैं और उसके निष्कर्ष भी सामने आ रहे हैं। इसी क्रम में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के तहत नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई) के वैज्ञानिकों ने एक नया मील का पत्थर हासिल करते हुए कोरोना जांच की नई विधि प्रस्तुत की है। ‘सलाइन गार्गल आरटी-पीसीआर’ नामक इस जांच पद्धति को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) से भी मंजूरी मिल गई है। इस विधि से तीन घंटे में कोरोना संक्रमण की जांच का पता लगाया जा सकेगा।
बीते दिनों कोरोना जांच की होम किट भी हुई थी लॉन्च
गौरतलब है कि पिछले दिनों कोविड-19 टेस्ट की एक होम किट भी लॉन्च की गई थी, जिससे महज 15 मिनट में ही आपको निगेटिव और पॉजिटिव का पता चल जाता है। पुणे में ‘माई लैब’ ने घर पर ही कोरोना टेस्ट करने वाली किट कोविसेल्फ बनाई है। यह रैपिड एंटीजन टेस्ट किट थी। आईसीएमआर ने इस किट को मंजूरी देने के साथ नई एडवाइजरी भी जारी की थी।
अब नीरी की टीमें देशभर की लैब को ट्रेनिंग देंगी
फिलहाल नई जांच विधि को आईसीएमआर से मंजूरी मिलने के बाद नीरी (एनईईआरआई) की टीमें अब देशभर में जाएंगी और मौजूदा लैब को नई पद्धति में ट्रेनिंग देंगी। इस जांच विधि के अनुसार किसी रोगी को खारा घोल से गरारा करने के बाद एक सामान्य कलेक्शन ट्यूब में थूकने की आवश्यकता होती है। कलेक्शन ट्यूब में यह सैंपल एक लैब में ले जाया जाता है। वहां इसे कमरे के तापमान पर नीरी की तरफ से तैयार एक विशेष बफर सॉल्यूशन में रखा जाता है। जब इस सॉल्यूशन को गर्म किया जाता है तो एक आरएनए टेम्पलेट तैयार होता है। सॉल्यूशन को आगे रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) के लिए प्रोसेस्ड किया जाता है।
आमजन खुद से भी कर सकते हैं कोरोना संक्रमण का टेस्ट
नीरी के पर्यावरण वायरोलॉजी सेल के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कृष्णा खैरनार ने कहा कि इस नए तरीके से सैंपल कलेक्ट करने और प्रोसेस्ड करना काफी सस्ता पड़ता है। लोग खुद से भी कोरोना संक्रमण का टेस्ट कर सकते हैं क्योंकि यह विधि सेल्फ सैंपलिंग की अनुमति देती है। इसके लिए कलेक्शन सेंटर पर लाइन में लगने या भीड़ लगाने की जरूरत नहीं होती है। इस प्रकार बहुत समय की बचत होती है। साथ ही इससे संक्रमण का खतरा कम होता है। यहां तक कि इस पद्धति में कचरा भी कम से कम होता है।
दूसरी तरफ नाक और गले से स्वैब लेने में अधिक समय लगता है। इतना ही नहीं सैंपल लेने के इस तरीके से मरीज असहज हो जाता है। कई बार तो नमूना एक स्थान से दूसरी जगह ले जाने में नष्ट भी हो जाता है जबकि स्लाइन गार्गल आरटी-पीसीआर तुरंत हो जाता है। यह आसान और पेशेंट फ्रेंडली भी है। चूंकि इसमें कचरा कम निकलता है तो यह पर्यावरण के अनुकूल भी है। साइंटिस्टों का कहना है कि यह तरीका ग्रामीण इलाकों के लिए अधिक फायदेमंद है, जहां इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है।