नई दिल्ली, 18 मई। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनियाभर के नौकरीपेशा लोगों, खासकर युवा पीढ़ी को स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने के लिए सचेत किया है और साथ ही चेतावनी दी है कि काम के ज्यादा घंटे जानलेवा साबित हो सकते हैं।
गौरतलब है कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में ज्यादातर नौकरीपेशा लोगों का अधिकतर समय ऑफिस के कामकाज में ही निकल जाता है। इस चक्कर में वे अपनी सेहत का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखते और शारीरिक श्रम व एक्सरसाइज से दूर ही रहते हैं। ऐसे लोगों पर डब्ल्यूएचओ की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़े भयभीत करने वाले हैं।
वस्तुतः डब्ल्यूएचओ और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार वर्ष 2016 में पाया गया कि लगातार कई घंटों तक काम करने के कारण स्ट्रोक और हार्ट डिजीज से दुनियाभर में 7,45,000 मौतें हुईं। ऐसी मौतों में वर्ष 2000 के बाद से 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है।
डब्ल्यूएचओ और आईएलओ के अनुसार वर्ष 2016 में सप्ताह में कम से कम 55 घंटे काम करने की वजह से 3,98, 000 लोगों की स्ट्रोक से और 3,47,000 लोगों की हृदय रोग से मृत्यु हुई। वर्ष 2016 से 2000 के बीच देखा गया कि लंबे समय तक काम करने के कारण हृदय रोग से होने वाली मौतों की संख्या में 42% और स्ट्रोक से होने वाली मौतों में 19% की वृद्धि हुई।
लगातार कई घंटे काम करने की वजह से हो रहीं बीमारियां ज्यादातर पश्चिमी प्रशांत और दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और मध्यम उम्र वाले या बुजुर्गों में दर्ज की गई। इसके साथ ही 72% मौतें पुरुषों में देखी गई। ज्यादातर मौतें 60 से 79 और 45 से 74 के उम्र के लोगों में दर्ज की गई, जिन्होंने प्रति सप्ताह 55 घंटे या उससे अधिक समय तक काम किया था।
- प्रति सप्ताह 55 या उससे अधिक घंटे काम करना खतरनाक
एक तरफ जहां दुनियाभर में काम का बोझ बढ़ता जा रहा है वहीं इन बीमारियों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। यह मानव स्वास्थ्य के लिए एक मनोवैज्ञानिक सामाजिक, व्यावसायिक जोखिम जैसे कारणों की ओर संकेत कर रहा है। इसका सीधा असर लंबे समय तक काम करने वाले लोगों के दिमाग पर पड़ सकता है।
अध्ययन के अनुसार, सप्ताह में 35-40 घंटे काम करने की तुलना में प्रति सप्ताह 55 या उससे अधिक घंटे काम करने से स्ट्रोक का खतरा 35% से ज्यादा और इस्केमिक हार्ट डिसीज से मरने का खतरा 17% से ज्यादा होता है। इस तरह की आदतें ज्यादातर लोगों में काम से संबंधित बीमारियों और उम्र से पहले मृत्यु के खतरे को बढ़ाती हैं।
यह नया विश्लेषण ऐसे समय आया है, जब कोविड-19 की महामारी के दौरान ज्यादा घंटे काम करने के चलन पर प्रकाश डाला गया। इसके अनुसार, महामारी में ज्यादा घंटे काम करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है।
- डब्ल्यूएचओ प्रमुख बोले – कोई नौकरी, स्ट्रोक या हृदय रोग के खतरे से बढ़कर नहीं
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रस एडनॉम घेब्रेयिसस ने कहा, ‘कोविड-19 महामारी ने कई लोगों के काम करने के तरीके को काफी बदल दिया है। कई उद्योगों में टेली वर्किंग यानी (वर्क फ्रॉम होम) को आदर्श मान लिया गया है, जो अक्सर घर और काम के बीच की सीमाओं को कमजोर कर देता है। इसके अलावा, कई व्यवसायों को पैसे बचाने के लिए या काम करने या बंद करने के लिए मजबूर किया गया है और जो लोग अब भी पेरोल पर हैं, वे घंटों तक लंबे समय तक काम करते हैं। कोई नौकरी, स्ट्रोक या हृदय रोग के खतरे से बढ़कर नहीं है। स्वास्थ्य की देखभाल के लिए सरकारों, नियोजकों और कर्मचारियों को मिलकर काम के घंटों की समय सीमा तय करनी चाहिए।’