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मिजोरम : जोरमथांगा का 33 वर्षों बाद एमएनएफ अध्यक्ष पद से इस्तीफा, पार्टी की करारी हार की नैतिक जिम्मेदारी ली

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आइजोल, 5 दिसम्बर। मिजोरम के निवर्तमान मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने विधानसभा चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) की करारी हार के चलते मंगलवार को 33 वर्षों के लंबे कार्यकाल के बाद पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि एमएनएफ के एक नेता ने कहा कि जोरमथांगा का इस्तीफा स्वीकार करना है या नहीं, यह तय करने के लिए पार्टी बुधवार को एक बैठक करेगी।

एमएनएफ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तावंलुइया को भेजे गए अपने त्यागपत्र में जोरमथांगा ने कहा कि वह पार्टी के अध्यक्ष के रूप में चुनावी हार के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हैं। उन्होंने पत्र में कहा, ‘एमएनएफ राज्य विधानसभा चुनाव जीतने में विफल रही। इस संबंध में मैं पार्टी प्रमुख के रूप में नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं। यह मानते हुए कि एमएनएफ अध्यक्ष के रूप में यह मेरा दायित्व है, मैं अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहा हूं और आपसे अनुरोध करता हूं कि इसे स्वीकार करें।’

पार्टी बुधवार को फैसला करेगी कि जोरमथांगा का इस्तीफा स्वीकार हो या नहीं

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1990 में लालडेंगा के निधन के बाद जोरमथांगा एमएनएफ के अध्यक्ष बने थे। पार्टी के मीडिया प्रकोष्ठ के महासचिव क्रॉस्नेहजोवा ने कहा कि एमएनएफ की राष्ट्रीय कोर कमेटी और उसके राजनीतिक मामलों की कमेटी की बुधवार को बैठक होगी, जिसमें यह तय किया जाएगा कि जोरमथांगा का इस्तीफा स्वीकार किया जाए या नहीं।

उल्लेखनीय है कि मिजोरम में तीन बार – 1998, 2003 और 2018 के चुनाव जीतकर सत्ता हासिल करने वाले एमएनएफ को इस चुनाव में केवल 10 सीटों पर जीत मिली है जबकि 2018 में पार्टी को 26 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। जोरमथांगा खुद भी अपनी आइजोल ईस्ट-1 सीट पर जेडपीएम के उपाध्यक्ष लालथनसांगा से 2,101 वोटों के अंतर से हार गए।

साठ वर्षों से अधिक पुरानी पार्टी है एमएनएफ

साठ वर्षों से अधिक पुरानी पार्टी एमएनएफ को विपक्षी जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के हाथों करारी हार का सामना करना पडा है, जिसे 2019 में निर्वाचन आयोग से मान्यता मिली थी। 40 सदस्यीय राज्य विधानसभा में जेडपीएम को 27 सीटों पर जीत मिली है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सिर्फ दो सीट पर और कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर सकी। राज्य की 40 सदस्यीय विधानसभा चुनाव के लिए मतदान गत सात नवम्बर को हुआ था, जहां 8.57 लाख से अधिक मतदाताओं में से 82 प्रतिशत से अधिक ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था।

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